tag:blogger.com,1999:blog-19806528017953570092024-03-12T19:19:02.028-07:00SAMAJIKATA KE DANSH !(मानवता प्रकृति व सार्वभौमिक ज्ञान पर समाजिकता का दबाव व चोट!)ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.comBlogger423125tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-55560599679067425692023-03-07T16:24:00.004-08:002023-03-07T16:26:38.561-08:00हमारे ग्रन्थों में धर्म क्या?!#अशोकबिन्दु”परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अघमाई।।
सड़कों ,गलियों, सोशल मीडिया आदि में धर्म को बचाने की बात होती है।हमारे नजदीक जो ऐसे हैं वे भी हमें धर्म में नहीं लगते। ग्रन्थों का अध्ययन हमें बताता है कि कर्मकांड, रीति रिवाज और धर्म के नाम पर जो भी समाज में हो रहा है वह धर्म है ही नहीं।हम लोगों से पूंछ देते है कि हमारे ग्रन्थों में धर्म क्या है,तो खामोश हो जाते हैं। हमारा ज्ञान कहता है धर्म काASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-69000102964490310302023-03-07T16:23:00.001-08:002023-03-07T16:23:05.753-08:00हमारे ग्रन्थों में ब्राह्मण कौन?क्षत्रिय कौन?#अशोकबिन्दुतुम अपने को ब्राह्मण,क्षत्रिय समझते हो ,हमें इससे मतलब नहीं है।वास्तव में तुम हमें लगते क्या हो?महसूस क्या होते हो यह महत्वपूर्ण है। फिर भी...
श्रीमद्भागवदगीता के 18 अध्याय के 41वे श्लोक में क्या कहा गया है?
ब्राह्मणक्षत्रियविशांशुद्राणां च परन्तप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुनै : ।।४१।।
आगे का 42 वां श्लोक ब्राह्मण के गुणों को व्यक्त करता है..
शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-23645700743059997422022-09-22T07:16:00.001-07:002022-09-22T07:16:11.699-07:0022सितम्बर 1539!!गुरुनानक पुण्य तिथि के याद में!!#अशोकबिन्दुसन्त परंपरा में हमें जीवन के सहजता नजर आती है। संत परंपरा में गुरु नानक को हम भुला नहीं सकते ।आज हम उनको याद कर रहे हैं । हमें उनकी शिक्षाएं याद आ रही हैं ।
उन्होंने कहा था जिंदगी में तीन चार नियम काफी महत्वपूर्ण है - ईश्वर से प्रेम करना, मिल जुल कर रहना , मिल बांट कर भोजन करना।
हमें सिख अर्थात शिष्य पंथ अर्थात अभ्यास पंथ काफी महत्वपूर्ण लगता है । जीवन में इस धरती पर कोई भी प्राणी स्वयं में ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-37303175623135018102022-07-09T06:53:00.001-07:002022-07-09T06:53:12.234-07:00समाज व उसकी सामजिकता तो कायर व पाखंड?!#अशोकबिन्दु हम कहते रहे हैं अब मानवता व प्रकृति अभियान को वर्तमान समाज व उसकी सामजिकता नहीं चाहिए। पांच हजार वर्ष पहले ही श्रीकृष्ण कह गए कि " दुनिया के धर्मों को त्याग मेरी शरण में आ।" यदि वर्तमान में जिंदा महापुरुषों को सम्मान नहीं, उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं तो समझो कि समाज व उसकी सामजिकता में धर्म व ईश्वर की बात बेईमानी है।::#अशोकबिन्दु
समाज व उनकी सामजिकता कायर व पाखंड!! #अशोकबिन्दु
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एकASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-34130431131151381442022-06-28T08:24:00.001-07:002022-06-28T08:24:55.817-07:00दुनियाबी धर्म अपने नहीं हैं।आत्मा से ही है आत्मियता!#अशोकबिन्दुASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-17749098199461966442022-05-02T17:02:00.005-07:002022-05-02T17:06:19.720-07:00समाज में तो टूटे हैं, विखरे है।मानवता व कुदरत ने स्वर जोड़े हैं::#अशोकबिन्दु कुछ और....एक फाइल से प्राप्त पुरानी यादें/निशां!!"एक दिन हम इस जहां से गुजर जाएंगे,मगर निशां अपने यहां छोंड़ जाएंगे। #अशोकबिन्दुASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-17861432481239903902022-03-22T18:37:00.002-07:002022-03-22T18:39:17.451-07:00समाज...?!समाज तो कायर है!::अशोकबिन्दु "समाज तो कायर है वह दहेज प्रथा, जातिवाद आदि के खिलाफ बगावत की हमें प्रेरणा नहीं दे सकता।"सुबह - सुबह जब हम विद्यालय पहुंचे तो शिक्षक ने ओबीसी, पिछड़ा आदि की बात छेंड़ दी।हमने देखा है कि यह तथाकथित ब्राह्मण या पंडित या जन्मजात व्यवस्था आधारित जातिव्यवस्था के हिमायती कैसे कैसे जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं?बात आगे बड़ी,हमने कहा कि हम जाति व्यवस्था को नहीं मानते।हम अपने जीवन में अनुभव ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-49941635976307728142022-03-22T18:29:00.001-07:002022-03-22T18:29:10.166-07:00बड़प्पन?!::समाज ,देश, विश्व व मानव सभ्यता ,समाज में बड़ा कौन?!#अशोकबिन्दु " अरे, कैसी बात करते हो?यह तो आपका बड़प्पन है।" -यह वाक्य किन स्थितियों में कहा जाता है? समाज, देश व विश्व में हम किसे बड़ा माने?हमें अफसोस है इनके बड़े होने पर यदि यह प्रेम,ज्ञान,मानवता, रूहानी आंदोलन, प्रकृति संरक्षण, मानव संरक्षण की वकालत नहीं करते।ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-968765706506223772022-03-20T04:14:00.010-07:002022-03-20T05:06:25.851-07:00परिजनों, धर्मों, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिरूपों में पुनरावलोकन की आवश्यकता :: आत्महत्या या अस्वस्थ सामाजिक परिवेश सन 1996 ई0 तक हर 80 सेकंड में एक आत्महत्या हो रही थी।अर्थात वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार विश्व में 11000 आत्महत्याएं प्रतिदिन हो रही थीं। इन दो वर्षों में आत्महत्या करने की दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जब हम समाजशास्त्र से एम ए कर रहे थे तो आत्महत्या पर एक अध्याय हुआ करता था।जिसमें अध्ययन से हमें ज्ञात हुआ कि आत्महत्या का कारण परिवार, समाज, रिश्तेनातों ,आर्थिक, ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-30547083851624121022022-03-06T02:23:00.000-08:002022-03-06T02:23:03.630-08:00अकेला खड़ा इंसान व उसकी इंसानियत::अशोकबिन्दु आज कल सामजिकता व राजनीति इंसान व इंसानियत को ठग रही है।भीड़ में खड़ा इंसान व उसकी इंसानियत के बुरे दिन चल रहे हैं लेकिन सिर्फ इंसान समाज में। प्रकृति व ईश्वरता उसके साथ ही खड़ी है।समाज आज की तारीख में किसके साथ खड़ा है? जाति, मजहब, लोभ लालच, अपराध आदि के साथ। इंसान व उसकी इंसानियत भीड़ में नितांत अकेले है।समाज में जो भी आचरण हैं वे सब जातिवाद, मजहबवाद,अंध विश्वसों आदि की ही जटिलता को बनाये रखना ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-58470563720708426392022-01-18T17:19:00.001-08:002022-01-18T17:19:57.258-08:00हम जीवित महापुरुषों का सम्मान करें, उनकी शरण में आएं::अशोकबिन्दु हम चाहें कोई भी हों , जीवित महापुरुषों का सम्मान करें। आज जो भीड़ में अकेला खड़ा है वह भी ईश्वर की बनायी श्रेष्ठ मूर्ति है जिसे स्वयं ईश्वर ने ही प्राण प्रतिष्ठित किया है। बहुमत के चक्कर में मत पड़ो वरन अपने कर्तव्य निभाते रहो। अपने जिंदा रहते सुकरात अल्पसंख्यक थे ,उनको जब जहर दिया गया वह बहुमत ने दिया था लेकिन आज वह बहुमत खलनायक है। ईसा को जब सूली पर लटकाया जा रहा था तब बहुमत उनके साथ न था ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-33231374748333778432022-01-18T16:25:00.005-08:002022-01-18T16:27:50.233-08:00भारतीयता ही हमारा धर्म::#अशोकबिन्दुमेरा कन्हैया भी बोले - मेरी शरण तू आ जा जग धर्म तज!! #मूला राम 7 वीं - 15 वीं सदी::उस वक्त के राजबाड़े अब जातबाड़े ?? अल्पसंख्यक का बजूद क्या?!#अशोकबिन्दु #लोहिया ने कहा था कि भीड़ में अकेला व्यक्ति भी जब #तन्त्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हो उसे भी आगे बढ़ने का अबसर हो,तभी सफल #लोकतन्त्र है।#दीनदयालउपाध्याय ने कहा था कि पीछे पंक्ति में खड़ा व्यक्ति तक सुविधाएं जाना चाहिए।#भीमरावअंबेडकर ने ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-69265815414471669942021-12-17T03:32:00.001-08:002021-12-17T03:32:04.397-08:00देशभक्ति .....?!#अशोकबिन्दु देश भक्ति !!हमें नहीं लगता कि वर्तमान नेता, दल ,संस्थाएं, समाज व देश के ठेकेदार समाज व देश का भला कर सकते हैं।देश की जनता, वनस्पति, जीवन जंतुओं के लिए जो आचरण, व्यापार, विनिमय आदि भविष्य के खतरनाक है वह के खिलाफ नेता, दल ,समाज व संस्थाओं के ठेकेदार क्यों नहीं बोलते?संसद ,विधानसभाओं आदि में उस पर आवाज क्यों नहीं उठाते?जो व्यवस्थाएं देश की जनता के लिए घातक हैं उसको खत्म करने का ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-4634163212000122452021-12-17T03:24:00.001-08:002021-12-17T03:24:12.993-08:00मानवता से बढ़ कर नहीं है सामजिकता ::अशोकबिन्दु समाज व सामजिकता तो कायर होती है क्योंकि वह अन्धविश्वसों, कुरीतियों के खिलाफ जंग नहीं लड़ती।वह सम्प्रदायों, जातिवाद में जीती है। उसका धर्म नहीं होता।धर्म तो व्यक्ति का होता है।व्यक्तित्व तो व्यक्ति का होता है। मानवता तो मानव का होती है।ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-88921127013396323842021-12-17T03:06:00.009-08:002021-12-17T03:13:32.965-08:00सत्यार्थी::दुर्योधन संस्कृति !?भाग 02 #कृष्णकांत शर्मा श्रीअर्द्धनारीश्वर अवधारणा व अन्य आध्यात्मिक चिंतन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चेतना हर बिंदु पर दो सम्भावनाएं रखती है। प्रकृति व उसकी विविधता में ऐसा है ही।ये जगत पक्ष - विपक्ष का सम्मिलन है। अकेला पक्ष या विपक्ष अराजकता को जन्म देता है इस भौतिक जीवन में।ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-70101537738635561932021-10-09T19:17:00.010-07:002021-12-17T03:01:05.416-08:00सत्यार्थी::दुर्योधन संस्कृति?!भाग 01#कृष्ण कांत शर्मा यह सत्य कि हाड़ मास शरीर, मांस हड्डी, आत्मा, दिल, दिमाग,मन, विचार, भाव आदि जातिवाद, मजहबवाद, धर्मस्थलवाद आदि का मोहताज नहीं है। इसकी आवश्यकताओं के लिए जीना प्राकृतिक, नैसर्गिक कर्तव्य है।हम सबका, जीव जंतुओं,प्रकृति के बीच अनेक स्तर, विभिन्नता, विविधता है।लेकिन इस सब विविधता के बीच एकत्व तन्त्र को समझना आवश्यक है, जिसके बिना जीवन निरर्थक है।नेतृत्व के लिए महत्वपूर्ण कार्य होता है-कैसे विविधताASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-9197753395254609232021-10-08T18:09:00.000-07:002021-10-08T18:09:35.606-07:00सामूहिक जीवन में स्वतन्त्रता ?!#अशोकबिन्दु किसी ने कहा है-उपदेश, आदेश महत्वपूर्ण नहीं है।वातावरण, कार्यक्रम, समय सारणी, दिनचर्या महत्वपूर्ण होती है।हम जिन आश्रमों, शिविरों में जाते हैं।वहां परस्पर सहयोग, सहकारिता,समय सारणी,कार्यक्रम आदि को महत्व होता है।आदेश उपदेश को नहीं।....मुंशी प्रेमचंद ने कहा है-सरकार निरर्थक है।दुनिया को इस पर आश्चर्य हो सकता है।देश के अंदर अनेक लोग कहते हैं, हम अपने परिवार व अपने बच्चों के लिए कर रहे हैं?वहींASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-68619018617315329692021-09-16T09:20:00.003-07:002021-10-08T18:10:41.141-07:00अंतर दम?!#अशोकबिन्दु अब ये तन?हालात हाड़ मास तन के,क्या हो रहे हैं?वक्त जिसमें गुजरा-वक्त जिन विचारों में गुजरा-वक्त जिन भावों में गुजरा-आज वो बोझ बन गया है।नानक कहा बिचारा-दुखिया है संसार सारा,बस, वही है सुख में जो खुदा में, दुखियारी तो सारी दुनिया है।हालात ये क्या हो रहे हैं?क्या है जज्बा अंदर?कभी कभी सच बो नहीं होता-जो दिखता है,असलियत तो अंदर थी,जो आज उभरता है।सम्बंध-अपने तन से!सम्बन्ध-अन्य तन से!ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-20819293439852710642021-09-03T19:53:00.003-07:002021-09-03T20:01:59.762-07:00समाजवाद::एक संक्षिप्त परिचय समाजवाद का परिचयसमाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों मेंASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-22069044081305853482021-08-24T18:21:00.001-07:002021-08-24T18:34:03.638-07:00व्यवहारिक रूप में समाज, संस्थाओं में कार्य करना मुश्किल::अशोकबिन्दु दुनिया भर की किताबें रट लेने से हम विद्वान नहीं हो जाते।परम्परा गत समाज में ये अच्छा हो सकता है। महत्वपूर्ण है कि हमारा चिंतन मनन, नजरिया,स्वप्न, कल्पना क्या है?आस्था क्या है?किताबों से जो रट कर हम कहते फिर रहे हैं, जरूरी नहीं वह हमारा चिन्तन मनन, नजरिया, आस्था, स्वप्न, कल्पना आदि हो?शोध करने वाले, डिग्री कालेज के प्रोफेसर आदि सेमिनार में पढ़ पढ़ कर अपना लेख पढ़ते हैं?उन्हें क्या पता?पढ़ पढ़ कर ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-61376247807892709532021-08-11T19:26:00.001-07:002021-08-11T19:26:06.466-07:00शिक्षा कोई व्यवसाय नहीं है:::अशोकबिन्दु शिक्षा के लिए समाज ,शासन को अपना 80 प्रतिशत बजट खर्च करना चाहिए।जिस देश में शिक्षा व्यवसाय है ,उस देश का भविष्य कभी भी उज्ज्वल नहीं हो सकता, जहां नशा व्यापार आदि को इस लिए बढ़ावा हो कि वह आय का बड़ा स्रोत है, ये विचार ही उस देश के निम्न शैक्षिक स्तर को प्रदर्शित करता है। जीवन की असलियत यह है कि इच्छाएं दुख का कारण है।इच्छाओं की पूर्ति लोभ का कारण।शिष्यत्व! व गुरुत्व में अहसास की कल्पना काफी ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-54260798500692652982021-07-24T19:40:00.001-07:002021-07-24T19:40:50.522-07:00असन्तुष्टि का इतिहास में महत्व रहा है::अशोकबिन्दु कौटिल्य शिष्य चन्द्र गुप्त ने पंजाब व अन्य क्षेत्र के असंतुष्टों को एकजुट कर सेना बनाई थी। बाबर ने भी ऐसा ही किया। अन्य भी इस तरह के उदाहरण है। भविष्य नए दलों का होगा।वर्तमान दल समाज व देश की दिशा व काया नहीं बदल सकते।कुछ बीमारी ही हद पर यहां तक पहुंच जाते हैं कि दुनिया के डॉक्टर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं।
दुनिया व देश,सरकारों, नेताशाही, नौकरशाही का सिस्टम/तन्त्र उतना ही बीमार है कि वह ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-62237425193288611002021-07-23T06:32:00.006-07:002021-07-23T09:00:16.461-07:00गुरु-शिष्य परम्परा से वर्तमान शिक्षक व विद्यार्थी परम्परा::अशोकबिन्दु वास्तव में किसी का गुरु जाना दिल की अवस्था है, व्यक्ति के रुझान, रुचि ,आत्मीय अवस्था है।समर्पण, शरणागति की दशा है।दीवानगी की दशा है।जो वह होने, उसमें जीने के लिए संसार का सब कुछ त्यागने की अनजानी दशा रखता है।जैसे कि किसी की किसी में आदत पड़ जाती है तो हर हालत में उस आदत में जीता है। शिष्य गुरु से कुछ निचले स्तर पर होता है।जैसे कि चिकित्सा विद्यालय में चिकित्सा की ट्रेनिग करता ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-84750762742363845782021-07-20T18:47:00.004-07:002021-07-20T19:15:35.231-07:00प्रिय की कुर्बानी बनाम प्रिय की कुर वाणी ::अशोकबिन्दु कुरआन की शुरुआती सात आयतें हमें काफी प्रभावित करती रही है।उसके हिसाब से हमने जो चिंतन मनन करते हैं,उसको लिखने की कोशिश कर रहे हैं।आखिर प्रिय क्या है?हमारे जीवन में 'प्रिय' के भी अनेक स्तर हैं।उस स्तर के आधार पर ही हमारी बरक्कत होती है।'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर'- की स्थिति से पूर्व अनेक दशाएं हैं।उत्तरार्ध भी अनेक दशाएं हैं।चेतना के वर्तमान स्तर से नीचे व ऊपर अनन्त स्तर हैंASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1980652801795357009.post-82742301630910960132021-07-20T08:31:00.002-07:002021-07-20T08:32:15.102-07:00देश को अब ऐसे लोगों की जरूरत है जो देश के लिए हर हद से गुजरने के लिए तैयार हों:::अशोकबिन्दु देश को शायद उग्र राष्ट्रवाद की अब जरूरत है?!
देश को अब ऐसे लोगों की जरूरत है जो देश के लिए मरने तक को तैयार हो जाएं लेकिन देश सर्वोपरि रहे।
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जो सम्भवतः मानवता, आध्यत्म व संविधान व्यवस्था से ही सम्भव है। देश के लिए उस #गुरुग्रन्थसाहिब की जरूरत है जिसमें सभी मजहब के सन्तों व वाणियों को सम्मान है।इसी तरह विश्व स्तर पर #विश्वसरकारग्रन्थसाहिब ,संयुक्त राष्ट्रसंघ को एक #विश्वसरकार, एक #ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'http://www.blogger.com/profile/09709996339954572712noreply@blogger.com0