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शुक्रवार, 17 जून 2011

18 जून : बिटिया श्रुतिक��र्ति एक वर्ष की हुई.

मानव सत्ता के दो ध्रुव हैं-नर और नारी.नर यदि शिव है तो नारी शिवानी . शिवशक्ति यदि अन्तर्मुखी है तो शिवानीशक्ति वहिर्मुखी . श्रीअर्द्धनारीश्वर अवधारणा यहीं से प्रारम्भ होती है.जो देवी देवता व अवतारवाद के सगुण रुप को नहीं मानते उन्हें निर्गुण रुप को मानना चाहिए ही.चाहें किसी स्तर पर भी इसकी बात करो,प्रकृति या सूक्ष्म या अन्य ; बात की जा सकती है.शिव कल्याण है तो शिवानी कल्याणी.शिव यदि अल्लाह है तो शिवानी कुदरत.कुरुशान(गीता)में आत्मा व परमात्मा को स्व तथा शरीर,शरीरों व प्रकृति को ' पर ' कहा गया है.'स्व' व 'पर' का समभोग व समसम्मान ही अर्द्धनारीश्वर का सगुण रुप है.आज का विक्रत भौतिक भोगवाद भी क्या है? 'स्व' व 'पर' को नकार कर कृत्रिम वस्तुओं व शारीरिक ऐन्द्रिक आवश्यकताओं के लिए जीना व दोहन शोषण प्रदूषण का कारण है .मानव के लिए प्रकृति की ओर से सबसे सुन्दर कृति है-नारी. भारतीय संस्कृति में नारीशक्ति को मातृशक्ति माना गया है.जगत में भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन का कारण नर व नारी का संस्कारों से मुक्त हो सिर्फ माया ,मोह, लोभ ,काम ,आदि के लिए सिर्फ जीना है .
लिंगानुपात का कम होना नर नारी की संकीर्ण सोंच का कारण है.यह एक मजाकिया तथ्य है कि एक ओर कन्यापूजा का प्रावधान है व दूसरी ओर कन्याओं की जगह पुत्रों को महत्व है या फिर यौन शोषण या विभिन्न दबाव हैं.नारी को अपनी आधी शक्ति नारी होने के नाते व्यय हो जाती है.जन्म से लेकर मृत्यु व मृत्यु से लेकर जन्म तक प्रकृति के बिना सब शून्य है.यहां तक देवी देवता भी प्रकृति तक ही हैं.प्रकृति से शून्य होने के बाद ईश्वर है.ब्रह्मा विष्णु महेश भी शून्य से पहले के हैं.


प्रकृति में नर मादा श्रेष्ठ प्राकृतिक व ईश्वरीय मित्र हैं. दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं.नर मादा के बीच सम्बन्धों को लेकर समस्याएं ऋग्वैदिक काल के बाद तब पैदा होना प्रारम्भ हुईं जब दोनों के जीवन व परस्पर मित्रता का सम्बन्ध यौन इच्छाओं पर आकर टिकने लगा.फिर दोनों के बीच मित्रवत सम्बन्ध न हो कर कामुक होगया.अब वह दृष्टि खत्म हो चुकी है कि सन्तान उत्पत्ति की लालसा के बिना यौन सम्बन्धों की इच्छा पैदा न हो.कामान्धता व्यक्ति से मानवीय मूल्यों को अलग करने का कार्य करती है .स्त्रैणता के बिना मानवता कहाँ ? इसीलिए तो कहा गया है कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं .कौन सी स्त्रियां पूजा(सम्मान) का हकदार हैं ? जो अपनी स्त्रैणता से दूर नहीं हुई है. स्त्रैणता .... ? स्त्रैणता यानि कि सेवा,दया,सहनशीलता, ममता,लज्जा,नम्रता,प्रेम,आदि गुणों से युक्त स्वभाव.जिन पुरुषों में यह गुण जाग जाते हैं वह बुद्ध बन जाता है. हां,याद आया -आज झांसी रानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि भी है . जब किसी स्त्री में पुरुष के गुण (अहंकार,संघर्ष,परिश्रम,आदि) जाग जाते हैं तो वह लक्ष्मीबाई बन जाती हैं .अर्द्धनारीश्वर अन्तस्थ ऊर्जा की निर्गुण अवधारणा में यह तथ्य मौजूद है .मानव सत्ता के दो ध्रुव है-नर व नारी.ऐसे में उसकी पचास प्रतिशत भागीदारी होनी ही चाहिए लेकिन स्त्रैणता बनाए रखते हुए.अब भी लोग बेटी की अपेक्षा बेटा को महत्व ज्यादा दिए हुए हैं. आज भी बेटियां बोझ व दबाव बनी हुई हैं.इसके लिए परम्परागत समाज दोषी है.



' स्व ' अर्थात आत्मा या परमात्मा के बाद प्रकृति जीवन के दो प्रमुख तत्व हैं . प्रकृति के माध्यम से ही हम ब्रह्म के अस्तित्व पर मोहर लगा सकते हैं . जिसके प्रति हममें सधर्म सम्मान होना चाहिए न कि भोगवादी उसका इस्तेमाल ऐसे में बेटा बेटियों के मध्य भेद ईश्वरप्रद्त प्रकृति का अपमान है.


आज मेरी बेटी 'श्रुति कीर्ति ' एक वर्ष की हो गयी है.उसके जन्म दिन पर कुछ तैयारी करने के उद्देश्य से अब.......

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