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सोमवार, 20 जून 2011

काला धन व लोकपाल विधे���क पर एक दृष्टि

मैं सिर्फ यह जानता हूँ,सारा देश यह जानता है कि ईमानदार व्यक्ति को काला धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनों से कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए.मेरा अनुभव तो यही कहता है कि नेताशाही व नौकरशाही के अलावा शेष जनता दबी जुबान अवश्य इन आन्दोलनों का समर्थन कर रही है या तटस्थ हैं.लोकपाल विधेयक को लेकर नागरिक समाज व सरकारी सदस्यों मेँ मतभेद का मतबल एक ग्रुप का ईमानदार होना व दूसरे ग्रुप का बेईमान होना भी हो सकता है ? क्या यह सत्य नहीं-बेईमान व ईमानदार में ही समझौते नहीं होते ,यदि समझौते होते भी हैं तो बिना न्याय के ? मैं तो यही कहूंगा कि काला धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन के विरोधी क्या देशद्रोही नहीं ?

अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के द्वारा उठाए गये मुद्दे महत्व हीन नहीं कहे जा सके.

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