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सोमवार, 20 जून 2011

मानवता हिताय सेवा सम��ति में आपका स्वागत है.

'मानवता हिताय विकास मंच उ प्र समिति' का नाम परिवर्तित कर इस बार मैने 'मानवता हिताय सेवा समिति ' के नाम से पंजीकरण करवाया है.



उत्तर प्रदेश के युवक युवतियां अपने गांव मेँ टोली बना कर समाज सेवा के कार्य के इच्छुक हों या समाज सेवा कर रहे हों,वे हमारी समिति से जुड़ सकते हैं.



'अपने लिए जिए तो क्या जिए' -कहते लोग मिल जाते हैँ.वास्तव में हम न ही अपने लिए न ही दूसरों के लिए जी पाते हैं . क्यों ,ऐसा क्यों ? सब अंधेरे में तीर चलाते हैं.ज्ञानी भी ज्ञानपूर्ण आचरण से दूर नजर आते हैँ.'स्व' व 'पर' से लोग अन्जान हैं .आज अधिकाश व्यक्ति स्वभाव से वैश्य व शूद्र हैं.कुरुशान(गीता) में स्व का अर्थ आत्मा व परमात्मा से लगाया गया है तथा पर का अर्थ स्थूल शरीर व प्रकृति से लगाया गया है.इस सन्दर्भ में हम ईमानदारी से न ही स्व के लिए न ही पर के लिए जीते हैं.वास्तव मेँ हम न ही स्वार्थी होते हैं न ही परमार्थी .सिर्फ अवसरवादी होते हैं.यदि हमें परमार्थी होना है तो अपने शरीर के लिए कम से कम एक घण्टा का समय अवश्य देना चाहिए व प्रकृति एवं समाज के लिए भी इस एक घण्टा के अतिरिक्त एक घण्टा का समय देना चाहिए.यदि स्वार्थ (आत्मा व परमात्मा के लिए) के लिए जीना है तो इन दो घण्टा के अतिरिक्त कम से कम एक घण्टा अवश्य मेडिटेशन व आत्मसाक्षात्कार के लिए देना चाहिए . लेकिन न जाने हम किस तरह से अपने लिए जीते हैं व किस तरह दूसरों के लिए जीते हैं कि हमें अशान्ति व असन्तुष्टि ही हाथ लगती है ?दया,समर्पण व त्याग के बिना न ही हम स्व का न ही पर का भला कर सकते हैं.अन्य ग्रहों की अपेक्षा यह पृथ्वी अनुपम क्यों है?प्रकृति व मानवता को संरक्षण के बिना मानव के सारे कृत्य निरर्थक हैँ .


जय मानवता !

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