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शुक्रवार, 10 जून 2011

सन्त का मतलब यह तो नही���....

भ्रष्टाचार में संलिप्त,भौतिकभोगवादी व तामसी प्रवृत्ति के लोग अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का समर्थन नहीं करने की सोंच तक नहीं रखते.जहां सही बात को सही कहने तक की सामर्थ्य नहीं है. लोग न जाने क्या क्या नगेटिव बातें करने वाले भी मिल जाते हैँ -अरे रामदेव को दुनियादारी से क्या मतलब,वे सिर्फ योग ही सिखायें तभी ठीक हैँ,वे तो आर एस एस व भाजपा का मुखौटा हैं,वे सन्त हैं तो रामलीला मैदान से वेष बदल भागने की कोशिस क्यों की,आदि.इस बीच जयगुरुदेव,आदि के अनुयायियों की ओर से भी इन आन्दोलनों के अपोजिट सुनने को मिल रहा है.मै तो बस इतना ही जानता हूँ कि सत के लिए संघर्ष दो प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने प्रारम्भ नहीं किया है.
आखिर सन्तों व गुरूओं को दुनियादारी मेँ पड़ने की जरुरत क्यों नहीं?हूँ,जब आज के शिक्षक गुरुत्व की ओर नहीं हैं,और दिमाग से पैदल होने जैसे व्यवहार साबित करते हैँ,जब ज्ञान केन्द्रों से ही ज्ञान का हेतु समाप्त होता जा रहा है,जिन युधिष्ठरों को अपना पाठ याद करने में वक्त लगता है ऐसे युधिष्ठरों की मजाक बनाने वालों की अब भी कमी नहीं है,आदि जैसों से पटे समाज व ऐसे की सामाजिकता व प्रतिष्ठतता के बीच लोगोँ से क्या उम्मीद की जा सकती है?वे शायद गौरवशालि अतीत को भूल मलेच्छों के समर्थन में लगे हैं.



सन्त होने का मतलब क्या समाज व देश का हित नहीं है ? यदि हां,तो बाबा रामदेव क्या गलत हैं? हाँ!सन्त अहिंसक आन्दोलन का समर्थक नहीं होता.उनके द्वारा युवकों की फौज का निर्माण करने की बात पचती नहीं.कुल मिला कर उनका आन्दोलन देश के हित में है .ऐसे में हर देशभक्त को हर हालत में उनकी मदद करनी चाहिए.

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