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गुरुवार, 23 जून 2011

क्रान्ति पथ प्रति एक ��त : samajikata ke dansh

हालांकि मानव सामाजिक प्राणी है लेकिन मुझे उसकी सामाजिकता से शिकायत रही है.मैं बचपन से सामाजिक ता की दुहाई देने वालों के बीच दंश (DANSH) झेलता आया हूँ.अपने घर में ही मैं अलग थलग पड़ चुका था.अंधेरे व प्रकाश का कुरुक्षेत्र बन कर रह गया था.जहां न कोई अर्जुन था न ही कृष्ण .कक्षा छ: में आते आते कुरुशान (गीता )हाथ आयी जब तो कुछ संवरना सिखाया स्वयं को स्वयं ही . मानवाधिकारों,बालाधिकारों व महिलाधिकारों को मैने सामाजिकता के दबाव में देखा है,सार्वभौमिक ज्ञान , धार्मिकता व आध्यात्मिकता पर सामाजिकता का दबाव देखा है , इन्सानियत को दबाव में देखा है.सनातन धर्म की बात चाहें यह समाज कितना भी करे लेकिन सनातन धर्म की यात्रा पथ के पथिकों
पर पथ के दोनों ओर अपना अपना डेरा जमाये अपने चक्र में फंसाने का ही कार्य करते रहे हैं.ओशो ने कहा है कि धर्म पथ कोई राजपथ जैसा चौंड़ा नहीं है वरन एक पगडण्डी है . जिस पर भीड़ नहीं होती.भीड़ जब चलती है तो पगडण्डी ही क्या दोनों ओर की प्रकृति को उजाड़ कर रख देती है.फिर खो जाता है धर्म .सृजित हो जाते हैं-पंथ , जाति , सम्प्रदाय , आदि .फिर कोई नया आता है आगे सनातन धर्म को आगे बढ़ाने वाला तो उस पर कुषड़यन्त्रों की अंगुलियां उठती हैं . इतिहास उठा कर देखो,आज जो महापुरुष मान कर पूजे जाते हैं जब वे जिन्दा थे तो उनमें से कितनों के साथ समाज से बीस प्रतिशत लोग ही थे ?



15 अगस्त 1947 की आजादी क्या सिर्फ सत्तापरिवर्तन बन कर नहीं रह गयी ? आम आदमी की आजादी क्या अभी दूर नहीं ? देशहित में कुछ कठोर निर्णयों के विरोध में नहीं खड़ी देश की जनता ? देश की जनता....... ?! हाँ , देश की जनता.प्रजातन्त्र में प्रजा ही जिम्मेदार है देश के हालात बनाने व बिगाड़ने मेँ .यह जनता ही तो है जो ग्राम सभाओं, नगर पंचायतों, विधान सभाओं, संसद, आदि में अपने प्रतिनिधि भेजती है .आजकल अन्ना हजारे व बाबा रामदेव चाहें हमारे दुश्मन ही ठीक लेकिन उनके मुद्दों पर हमें समर्थन नहीं करना चाहिए?धर्म पथ पर अपना कोई नहीं होता.उठा लो अपने साहस रुपी गाण्डीव को.जब तक आत्मा रुपी कृष्ण आपके शरीर में है करते रहो संघर्ष.क्या यह बकवास मचा रखी है ? तुम,तुम क्या बकते थे उस दिन?सत्तावादियों व पूंजीवादियों से कौन जीत पाया है?न जाने कितनों को शीशा पीस कर पिला दिया गया,जहर दे दिया गया , शूली पर चढ़ा दिया गया .कालाधन व लोकपाल का मुद्दा बड़ा जटिल मुद्दा है.मौत के अलावा क्या नसीब होगा ? नीचे से लेकर ऊपर तक के सारे के सारे नेता क्या हैं?चोरों को भी क्या चोरी न करने का निर्णय लेते देखा गया है ?तुम ऐसी बातें करने वाले अपने आदि महापुरुषों के दर्शन पर तो जरा सोंचें.क्या अपने अपने महापुरुषों के बताये रास्ते पर हैं आप ?मुसलमानों से भी मेरा यही प्रश्न है. 'ईमान पर पक्के होने ' का मतलब क्या है ?गैरजातियों व अपने देश के साथ हो रहे अन्याय पर चुप रहना ? तुम्हारी नजर में अन्ना हजारे व बाबा रामदेव मुसलमान नहीं हैं,व उनका समर्थन हिन्दूवादी संगठनों ने किया है तो क्या तुम्हारे मुसलमान होने का मतलब क्या यह है कि अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का समर्थन न किया जाये ?



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