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बुधवार, 22 जून 2011

कालसेन आश्रम बीसलपुर (पीलीभीत ) उप्र पर विश��व शान्ति के लिए

मंगलवार, 21जून 2011ई0.



बीसलपुर (पीलीभीत ) उप्र के बाहर उत्तर दिशा मेँ स्थित कालसेन आश्रम पर विश्व में शांति स्थापित करने,भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खात्मे के लिए हवन पूजन और भंडारा किया गया . कार्यक्रम की व्यवस्था में धाराजीत गुप्ता,अनिल कुमार,मोहित कुमार,राकेश कुमार बाथम,आशाराम,नन्हे लाल,अरुण कुमार,गौरव कुमार ,रानू गंगवार,माधव,योगेन्द्र कुमार,नंदकिशोर,ऋषभ कुमार,नत्थू लाल गंगवार,जगदीश गंगवार,अजय गंगवार,राज कुमार,प्रेमराज वर्मा,अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु', सुजाता देवी शास्त्री,अवनीश वर्मा,आदि हजारों लोग उपस्थित थे.आश्रम के लिए को रास्ता न होने पर प्रशासन के विरोध में प्रदर्शन भी किया गया.प्रदर्शन करने वालों में धाराजीत गुप्ता,अनिल कुमार ,मोहित कुमार,राकेश कुमार बाथम , आशाराम, नन्हे लाल,अरुण कुमार, गौरव कुमार,मिंटू, रानू गंगवार,माधव,योगेन्द्र कुमार , भानु प्रताप, राजीव कुमार, ऋषभ कुमार,आदि श्रद्धालु शामिल थे.



सांयकाल छ: बजे मैँ पुन: कालसेन आश्रम पहुंचा.मेरे साथ थे राजकुमार.महिलाओं की बहुतायत ऐसे कार्यक्रम में ज्यादा रहती है.इस पर संवाद प्रारम्भ होगये.कहां है धार्मिकता?कौन है धार्मिक?संसार की नजर में जो बेहतर जीना चाहते हैं,वे क्या धार्मिक हैं?या जो महापुरुषों की नजर मेँ बेहतर जीना चाहते हैं?धर्मस्थलों पर भी जाते हैं तो क्यों जाते हैं?सांसारिक सुख पाने के लिए कि आध्यात्मिक आनन्द या आत्मिक शान्ति के लिए ? सन्त कबीर तक को कहना पड़ा था कि मैं इस दुनिया में जो देने आया हूँ वह कोई लेने ही नहीं आता.सब सांसारिक सुख की लालसा से ही आते हैं.




ये स्त्रियां.....?!चर्चा चल रही थी स्त्रियोँ की धार्मिकता पर . स्त्रियोँ की संख्या यहां ऐसे कार्यक्रमों में ज्यादा नजर आती है लेकिन इनकी धार्मिकता संदिग्ध नजर आती है.स्त्रियां ही क्या पुरुष भी........भौतिक लालसा के लिए ही जीवन जीने वाले या भौतिक लालसाओं के लिए घर व बाहर अशान्ति ,कलह,दूसरों को कष्ट,आदि परोसने वाले क्या धार्मिक भी हो सकते हैं?दया, त्याग व समर्पण के बिना धार्मिकता कहाँ? धर्म के पथ पर व्यक्ति को अकेले ही चलना होता है.इतिहास गवाह है कि महापुरुषों के जिन्दा रहते कितने लोग उनके साथ थे ?
खैर....


लगभग सवा सात बजे हम वहाँ से चलने को हुए तो मेरे सैण्डल गायब.अब नंगे पैर कैसे जाना होगा ?एक बोले कि ऐसे कार्यक्रमों में चप्पलें जूते गायब होना मामूली बात है .

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