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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

05सितम्बर शिक्षक दिवस:अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.

हालांकि विश्व शिक्षक दिवस 05 अक्टूबर का होगा.लेकिन भारत देश मेँ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को हम भी हम शिक्षक दिवस के रुप मेँ मनाते हैं.

डा राष्ट्रबंधु का कहना है कि राधाकृष्णन दर्शन शास्त्र के अधिकारी विद्वान थे.जब वे मैसूर से कोलकाता विश्वविद्यालय जाने लगे तो उनके शिष्य बहुत दुखी हुए.डा राधाकृष्णन से पढ़ने मेँ छात्रों को जो आनन्द मिलता था उसमेँ व्यवधान आसन्न था,बाधा आ गई थी.शिष्यों ने विदाई के लिए रथ सजाया और उसमेँ बैठने का आग्रह गुरु जी से किया.बारी बारी से शिष्य,घोड़ों के स्थान पर जुत गए.मैसूर रेलवे स्टेशन पर आकर उन्होने डा राधाकृष्णन को रेल मेँ बिठाया.जब रेल चली तो स्नेहातिरेक में वे फूट फूट कर रोने लगे.शिष्य और गुरु जी की विदाई का यह दृश्य अत्यन्त ही ह्रदयविदारक और अभूतपूर्व था.उनके अध्यापन की कीर्ती जब इंग्लैण्ड पहुँची तो तो आक्सफोर्ड वि वि से भी उनको पढ़ाने का निमंत्रण आया.वे विदेशों मेँ भी भारत की पोशाक पहनने मेँ गर्व महसूस करते थे.आदर्श अध्यापक के सभी गुण उनमेँ उपस्थित थे.युवकों!आज के आदर्श अध्यापक हैँ डा ए पी जे अब्दुल कलाम व.....अन्ना.....अन्ना हजारे... .


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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

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From: ashok kumar verma <akvashokbindu@gmail.com>
To: "admin" <admin@khabarindia.com>
Date: बुधवार, 31 अगस्त, 2011 2:57:07 पूर्वाह्न GMT-0700
Subject: 05सितम्बर शिक्षक दिवस:अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.

अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.वह आज स्वयं
युधिष्ठिर की मजाक बनाता है.महाभारत काल मेँ विद्यार्थी ही सिर्फ
युधिष्ठिर की मजाक बनाया करते थे . आज के भौतिक भोगवादी युग मेँ शिक्षक
मेँ शिक्षकत्व अर्थात ब्राह्मणत्व नजर नहीं आता.वैश्वत्व व शूद्रत्व नजर
आता है.पूंजीपतियों व सत्तावादियों ने मिल कर मनुष्य को शारीरिक व
एन्द्रिक लालसाओं के दलदल मेँ ला पटका.17-18वीं सदी से वैज्ञानिक
भौतिकवाद ने विश्व मेँ आधुनिक समस्याएं ला खड़ी कर दीं .वैज्ञानिक
अध्यात्मवाद के बिना सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकसित नहीं होने वाले.मानव
सत्ता के समक्ष सबसे बड़ी विडम्वना यही है कि आज का शिक्षक ही मानवीय
मूल्यों व सार्वभौमिक ज्ञान के लिए न जी कर भौतिक भोगवादी मूल्यों के लिए
जी रहा है.

जो राज्य व राष्ट्र पुरष्कृत शिक्षक हैं, वे भी कितने ज्ञान के
प्रति व्यवहारिक सजग हैँ ?बरेली मण्डल व आसपड़ोस जनपदों के ऐसे कुछ
शिक्षकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि उन्होंने सिर्फ अधिकारियों के
सहयोग से जैसे तैसे अपनी फाइल अच्छी करवा ली बस.
शिक्षक आज स्वभाव से शिक्षक नहीं है.वे शिक्षक इसलिए बने हैं कि ....उनके
ही कथनानुसार -"आजकल रुपया किसे प्यारा नहीँ ".शिक्षकों में भी
भौतिकभोगवादी मूल्य उद्वेलित करते हैँ न कि मानवीय व दर्शन मूल्य.


आज के शिक्षकों को देखकर हमेँ तो नहीं लगता कि शिक्षकों के पास
सर्वश्रेष्ठ दिमाग होता है?सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि देश के
शिक्षकों के पास सर्वश्रेष्ठ दिमाग हो.नई पीढी का उद्धार वास्तव मेँ
शिक्षकों के हाथों ही है.हम आप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शिक्षा
जगत से जुड़े हैं यह दुनियाँ मेँ एक सर्वश्रेष्ठ घटना है.वास्तव मेँ यदि
शिक्षक नियति सोंच व स्वभाव से ज्ञानवान हो जाये तो क्रान्ति घटित हो
जाए.ओशो ने कहा है कि वर्तमान शिक्षा संस्थाएं व शिक्षक सिर्फ स्मृति के
केन्द्र हैं न कि अन्वेशण चिन्तन सूझबूझ एवं संस्कारों के.मेरा तो अपना
विचार है कि शिक्षण का कार्य वही संभाले जिनका उद्देश्य सिर्फ अपने व
अपने परिवार का पालन पोषण देखरेख व भौतिक स्तर सुधारना नहीँ है.


किसी ने कहा है कि वास्तविक शिक्षक सिर्फ वही हो सकता है जो सिर्फ शिक्षक
है न ही किसी का पिता है न ही किसी का पति है और सिर्फ अपने बच्चों की न
सोंच कर सारे समाज की सोंचता है.इसलिए दुनिया से सूझबूझ व संस्कार विदा
हो ही रहे हैं शिक्षा जगत से भी शिक्षा दूर हो रही है.क्योंकि शिक्षा जगत
से वे लोग जुड़ रहे हैँ जो आम आदमी की ही तरह सोंच नियति व स्वभाव बनाए
पड़े हैं.आम आदमी की ही तरह आम आवश्यकताओँ के जाल मेँ उलझे हुए हैँ.धरती
का सबसे महान कार्य है शिक्षा लेकिन सोंच नियति मेँ आम आदमी की ही
बू.....?!कहां है वह महानता वह सूझबूझ ....?! वह शूद्र ही है जो सिर्फ
अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए ज्ञान चाहता है...?!आज जब ब्राहमण ही जब
ब्राहमण नहीं है तो किससे उम्मीद रखेँ?जाति,धन,बाहु,आदि बल से व्यक्ति
जरुरी नहीं अच्छा इंसान बन सके ? शिक्षा से कितने व्यक्ति नम्र बन रहे
है?वर्तमान मेँ देश के आदर्श शिक्षक हैं डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम.


जब शिक्षित भी आम आदमी की तरह निरा शारीरिक एन्द्रिक आवश्यकताओं के
लिए सिर्फ जिए तो ये देश व विश्व के समक्ष एक बिडम्बना है.

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