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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मैं असामाजिक ही ठीक!

किसी न किसी क्लास मेँ मेरा एक पीरियड नैतिक शिक्षा का रहता है.जिसमेँ मुझे अवसर मिलता रहता है -महापुरुषों व ग्रन्थों के आधार पर मानवीय मूल्यों को बच्चों के सामने रखने का.पांच सितम्बर को मैं सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन व अध्यापकों के महत्व पर प्रकाश डाल रहा था.क्लास मेँ चाहें किसी भी की जयन्ती पर बोलना हो,मेरा यह बोलना जरुर होता है कि बच्चों!हमारे दादा परदादा का जन्मदिन क्यों नहीं मनाया जाता?हम उनका नाम तक नहीं जानते .वहीं दूसरी ओर कुछ के दादा परदादा का जन्मदिन देश या विश्व भर मेँ मनाया जाता है.'अकेला चल रे' सिद्धान्त को स्वीकार करो.श्रीरामशर्मा ने कहा कि मानव के जीवनअकेलेपन का बड़ा महत्व रहा है.मैं बच्चों से कहता रहता हूँ कि तुम्हेँ अपने आराध्य महापुरूषों व ग्रंथों के आधार पर चलना चाहिए न कि अपने माता पिता परिवार या समाज के आधार पर...?गीता मेँ भी श्रीकृष्ण ने कहा है कि धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीं होता.कुछ वर्ष पहले मेरे स्टाप से एक अध्यापक ब्रह्माधार मिश्रा बोले थे -आप तो आसामाजिक हो.मैं भी अपने को आसामाजिक मानता हूँ लेकिन अन्ना आन्दोलन से मैं जितना खुश हूँ उतना ये लोग नहीँ..शेष.

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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

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