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रविवार, 6 जनवरी 2013

इण्डिया बनाम भारत !

आजकल सोशल मीडिया मेँ इण्डिया बनाम भारत की बहस छिड़ी हुई है .मैँ तो
वर्तमान को देख रहा हूँ .इण्डिया हो या भारत दोनोँ की दिशा विकार युकार
युक्त है .इस दुनियां मेँ भारत तो हर्षवर्धन के शासन तक उपस्थित था.इसके
बाद भारत समाज से विदा होने लगा.हर्षवर्धन तक जो शासन मेँ थे ,वे या
वंशज आज आज कहाँ हैँ ?वे कहीँ जंगलोँ मेँ नहीँ भटक रहे ?वे कहीँ पिछड़ी
जातियोँ मेँ तो विचरण नहीँ कर रहे .जिनका स्वाभिमान मर गया वे क्या
पंथपरिवर्तन या आगे आने वाले शासकोँ की सिर्फ चापलूसी या विदेशी संस्कृति
से तो प्रभावित नहीँ होते रहे ?गुरुगोविन्द सिँह ,महाराणा प्रताप ,बंदा
बैरागी ,वीर हकीकत ,भगत सिंह ,चंद्र शेखर आजाद आदि या फिर उनके पग
चिह्नोँ पर आज कौन चलना चाहता है ?कहाँ है क्षत्रियत्व ?कहाँ है
ब्राहमणत्व ? हमेँ तो हर जगह वैश्वत्व व शूद्रत्व दिखायी दे रहा है .एक
मैकाले आया तो इतना हो गया यदि हजार मैकाले आते तो देश का क्या हो जाता
?जो हमारे पास था वो छिन गया.आजादी आयी ,उम्मीदेँ जगीँ .सन 1947 से ही
उम्मीदेँ खाक होने लगीँ.सुभाष की मृत्यु को एक रहस्य बना दिया गया .नौ
देशोँ की संस्तुति पर दो साल पहले ही सुभाष जी ने सरकार गठित कर ली थी
,जिसे हम भूल गये .


खैर !इण्डिया हो या भारत ,दोनोँ का वर्तमान मेरी नजर मेँ ठीक नहीँ है
.भारत को जगाने वाले बढ़ते जा रहे है .सोशल मीडिया भी अपना योगदान कर रहा
है .लेकिन ?
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लेकिन अब भी देशबासी निष्पक्ष रुप से देश के हित का नहीँ सोँच पा रहे .
यदि हम देश व भारत का हित चाहते हैँ तो देश व भारत का हित चाहने वाले एक
मंच पर क्योँ नहीँ ?जरुर अभी दाल मेँ कुछ काला है .

भारत हॅ या इण्डिया दोनोँ विचलित हैँ .दो ओर से दो प्रतिशत भी 'सादा जीवन
व उच्च विचार' या 'उच्च जीवन उच्च विचार' पर अपना जीवन केन्द्रित नहीँ
कर पाये है .हिन्दुत्व की ही वकालत करने वाले नारीशक्ति को मातृशक्ति व
सेक्स को सिर्फ सन्तान उत्पत्ति के लिए स्वीकार नहीँ कर पाये हैँ .इनके
पुरोहित ,धर्मनेता ,धर्म स्थल माया मोह लोभ मेँ फंसेँ हैँ .क्योँ धर्म
माया ,मोह ,लोभ से मुक्ति की बात करता हो.जिन्हेँ हम बहिष्कृत करते गये
,अछूत मानते रहे ,भयानक रोगियोँ को दूर भगते गये ,दुर्गम क्षेत्रोँ की ओर
देखना पसंद नहीँ किया ,ऐ भारत ! उधर इण्डिया गया .तुम्हारे पुरोहित अब भी
सेवा करवाते हैँ करते नहीँ .उनके पुरोहितोँ ने सेवा मेँ अपना जीवन
कुर्वान कर दिया .विवेकानन्द सेवा भाव से उठे ,उन्हेँ तुम्हारे पुरोहितोँ
न मंदिरोँ मेँ तक नहीँ घुसने दिया .क्या उन्हेँ भगिनी निवेदिता के साथ
दलितोँ ,अछूतोँ ,कुष्ठ रोगियोँ आदि की सेवा नहीँ करना चाहिए थी ?

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

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