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रविवार, 4 अक्तूबर 2015

सहज ;स+हजअर्थात यात्रा:अन्तस्थ यात्रा

४ अक्टूवर २०१५ रविवार :: स्वामी श्रद्धानन्द जी सरस्वती का जन्म दिवस @
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मेडिटेशन की प्रतिक्रिया क्या हमारी प्रकृति(शरीर) पर पड़ती है?अंतर्मुखी स्थिति पर अनुभव/महत्व मिलता ही है.जैसा हमें तब ही मिलने लगा था जब हम स्नातक का छात्र था.लेकिन नियमितता नहीं थी.जगत/प्रकृति में नियमितता चाहिए.नहीं तो ये मन व इंद्रियाँ ....?हमारी इंद्रियों व मन से परे है अनन्त -शाश्वत.पिछले चार रविवार से असर महसूस हो रहा है --सुमरिन का/मेडिटेशन का.

मूलाधार बनाम सहस्राधार@
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ऊर्जा की गति के दो सिरे हैं- मूलाधार व सहस्राधार.
कुछ लोग जगत में ऐसे भी होते हैं जिनकी ऊर्जा या तो सहस्राधार पर होती है या मूलाधार पर.जिनमे से ही शायद हम हैं?आँख बन्द पर ऊपर व आँख खुले पर नीचे?ऐसे में कुर शान(गीता) की तटस्थता , बुद्ध की सम्यकता पर भी दृष्टि जाती है.लेकिन हम आँख खुले जीवन में मालिक के एहसास में निचले स्तरों से ऊपर उठ जाते हैं.

हज है यात्रा : अन्तस्थ यात्रा@
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आत्मा/चेतना ही स्वतन्त्रता है.जो सहजता में है.सहज अर्थात स+हज;हज सहित.हज है-यात्रा,कैसी यात्रा ?तीर्थयात्रा.तीर्थ क्या है-- जो हमें पाप से मुक्त करे  वह है-तीर्थ.

अन्तस्थ यात्रा :: धर्म
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धर्म है -- अन्तस्थ यात्रा .हमारा नजरिया/हमारा आंतरिक स्तर. जो निर्धारित करता है कि प्रकृति/प्रकृति अवयवों से हमारे सम्बन्ध हेतु हमारा नजरिया/आंतरिक स्तर.

अज्ञानी,ज्ञानी व अभ्यासी@
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अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-- आपकी बातें सिर ऊपर से उड़ जाती हैं,हम ग्रहण कर ही नहीं पाते.श्रीकृष्ण कहते हैं--"अभ्यास में रहो,अभ्यास में.श्रेष्ठ अभ्यासी बनो.ज्ञानी होने से क्या?ज्ञान पर प्रयोग करो,अभ्यास करो.

ashok kumar verma "bindu"

A00226525

श्री रामचंद्र मिशन

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