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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

रोज मर्र में 'राम राम सत्य '-कहना क्यों नहीं:::अशोकबिन्दु भईया

इसके पीछे भी सुप्रीम साइंस है।
कि लाश को लेजाते वक्त 'राम राम सत्य है' कहा जाता है लेकिन उपासना के वक्त नहीं।
हम तो कहेंगे कि उनकी उपासना झूठ है पाखण्ड है। वे उप आसन में नहीं है । आसन में है। सिर्फ हाड़ मास शरीर की लालसाओं ,आवश्यकताओं,ऐंद्रिक आवश्यकताओं आदि के साथ खड़े है।कोई उप आसन प्रेमी नहीं है आसन प्रेमी है।हाड़ मास शरीर की स्थिति को  समाज की नजर में बेहतर रखना चाहते हैं।अपने नजर में भी नहीं।आराम नहीं।मिल रहा है जो कर रहे है लेकिन करना है क्योंकि समाज की नजर में बेहतर करना है।अपनी निजता को नहीं जीता।अपनी आत्मियता को नहीं जीता।
मन्दिर में जाता है तो किस लिए जाता है?क्या परम् आत्मा से प्रेम है?आत्मा से ही प्रेम नहीं है।आत्मा के लिए कुछ करना नहीं चाहता।आत्मा की ही आवश्यकताएं नहीं जानता।परम् आत्मा की आवश्यकताएं क्या जाने गा? यदि मन्दिर की मूर्ति बोलने लगे तो वहाँ भी जाना छोड़ दे।मूर्ति बोलने लगे और कहने लगे तो खतरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी उसके लिए।उसकी भक्ति विदा हो जाएंगी।वह फिर जो चाहेगी वह भक्त पूर्ण नहीं कर पायेगा।वैसे भी वह उसकी ख्वाईश के लिए नहीं संसार में अपनी ख्वाइशें चमकना चाहता है।वह मूर्ति तो चाहता है जिसके सामने उपासना कर सके।अब वह लाश भी मूर्ति ही है, उसके सामने कह रहा है-राम राम सत्य है। बस फर्क इतना है कि इसके अतिरिक्त अन्यत्र उपासना में ये कहने को तैयार नहीं।ऐसा इसलिए क्योकि  वह तैयार नहीं है जीवन में ,आचरण में ,व्यवहार में सत्य को स्वीकार करने के लिए।वह वास्तव में उपासना चाहता ही नहीं, वह वास्तव में आत्मा, परम् आत्मा चाहता ही नहीं।वह सिर्फ परम्परा को ढोह रहा है।वह अपने को, जीवन को, अपने अस्तित्व को,आत्मा को,परम् आत्मा को या अपनी चेतना को महसूस ही नहीं करना चाहता। जीवन।में यदि उसने स्वीकार कर लिया-'राम राम सत्य है' तो गड़बड़ हो जाएगा। पुरोहितवाद ढह जाएगा।धर्म स्थल वाद ढह जाएगा। इस भक्त का जीवन भी गड़बड़ा जाएगा।क्योकि सारी धारणाएं ढह जाएगी।

एक कहता है-आचार्य है-मृत्यु। योग का पहला अंग है-मृत्यु।।मुख्य बात है कि इस जिंदा शरीर को लाश मान कर या इस शरीर को ही मंदिर मान कर इसे सम्मान देना,पूजा देना गड़बड़ हो जाएगा।इसे राम को समर्पित कर देना मुश्किल हो जाएगा।शरणागति बड़ी मुश्किल है।समर्पण बड़ा मुश्किल है।कुर्बानी बड़ी मुश्किल है।जिओ रोटी कपड़ा, मकान के लिए ही सिर्फ, हाड़ मास शरीर के लिए लिए ही सिर्फ।आत्मा की आवश्यकताओं में जीने पर खतरा है।अनेक सन्तों का शरीर ये जिया है सिर्फ लाश बन महानताओं के लिए, मानवता के लिए, आत्मा के लिए। राम क्या है?दशरथ पुत्र राम नहीं वरन जो सभी में भी रमा है।उसमें रमने से वर्तमान धारणाएं विखर जाएगी।पुरोहितवाद,धर्म स्थल वाद विदा हो जाएगा।हृदय ही मन्दिर बन जायेगा।ये शरीर ही मन्दिर बन जायेगा। तब काम भी विदा होने लगेगा।सारे धर्म भय व प्रलोभन पर टिके हैं।जब रोज मर्रे की जिंदगी में 'राम सत्य'-हो जाएगा तो फिर धंधेबाजों का क्या होगा?





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