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रविवार, 3 मई 2020

आर्य या सुर से ऊपर भी एक असुर स्थिति:::अशोकबिन्दु भईया

आर्य व आर्यत्व बनाम सुर व सुरत्व!!
---------------------------------------------कबीरा पुण्य सदन/अशोकबिन्दु
हम अपने जीवन के प्रारंभिक पड़ाव में आर्य समाज बीसलपुर व #शांतिकुंज से संबद्ध रहे। ये हमारे लिए परिवार व स्कूल के बाद समाज की तीसरी इकाई रहा समाजीकरण के लिए,#मानवता के लिए,#धर्म के लिए,#आध्यत्म के लिए,अपने #आत्मिकविकास के लिए जहां से हम अपने अस्तित्व को समाज में अहसास कराते रह सके व हम स्वयं अपने अस्तित्व के अहसास के लिए कार्य कर सकें।जाति व्यवस्था, मजहब व्यवस्था से ऊपर उठ कर कार्य कर सके। लेकिन हम अपने अंदर असन्तुष्टि महसूस करते रहे।हम वह स्तर जरूर पा गए थे जहां पर हम जातिवादीहीन पुरोहितबाद के साथ खड़े रह सकते थे।लेकिन हम जातिवादी,मजहब वादी लोगों से यहां भी खड़े थे। यहाँ पर हम अपने पिता जी की भांति कुछ तो अंधविश्वासों से मुक्त तो हो ही रहे थे।जिस तरह पिता जी के द्वारा अपने पैतृक स्थान छोड़ने से वे अनेक जातीय, मजहबी अंधविश्वासों व कर्मकांडों से मुक्त हुए थे उसी तरह हम भी पैतृक गांव व नगर स्थान से दूर निकल जाने से पिताजी के से भी दो कदम आगे निकल गये।अपने व चेतना के स्तर को आगे बढ़ाने की अनन्त सम्भावनाएं हैं, जहां #निरन्तरता है, #विकासशीलता है। विकसितता नहीं। जहां विकसितता की समझ है वहां तो एक तालाब की तरह सन्ढाध है। गुलामी की जंजीरे यूं ही तुरंन्त नहीं छूटने वाली।उसके लिए पीढ़ियों को लगना पड़ता है, लगे रहना पड़ता है।हर कदम पर त्याग चाहिए होता है।#भूतगामी व #पितरगामी जरूरी नहीं आगे भी हर कदम पर आपके साथ हों।

#आर्य का अर्थ #श्रेष्ठ से लगाया जाता है।#देवत्व से लगाया जाता है न कि भूतगामी व पितरगामी बने रहने से। वेद कहते हैं-मनुष्य बनो।इसका मतलब है कि हम अभी मनुष्य नहीं हैं।#वेद आगे कहते है, मनुष्य होने के बाद देव मनुष्य बनो अर्थात  देवत्व को धारण करो।दिव्यताओं को धारण करो।सन्त परम्परा में पहुंचो।#धर्म से आध्यत्म में पहुंचो।यहां पर हम गीता में श्री कृष्ण के माध्यम से #महाकाल के इन दी सन्देशों की ओर जाना चाहेंगे कि-हे #अर्जुन(अनुरागी)!दुनिया के धर्मों जातियों को छोड़ मेरी शरण आ। दूसरा-हे अर्जुन!तू भूत को भजेगा तो बहुत को प्राप्त होगा, पितर को भजेगा तो पितर को प्राप्त होगा।मुझे भजेगा तो मुझे प्राप्त होगा।

"परिवर्तन को स्वीकार करने का माप ही #बुद्धिमत्ता की माप है"-ये है विकासशीलता, निरन्तरता न कि रुके पानी की तरह विकसितता।इसलिए आचार्य है-मृत्यु!#योग का पहला अंग '#यम'-मृत्यु!त्याग व सन्यास का मतलब है-मृत्यु! बाबू जी।महाराज भी कहते हैं-#अनन्त से पहले है-प्रलय! ये मृत्यु ये प्रलय क्या है?हमारी #चेतना/समझ/नजरिया जिस स्तर पर है, उसमें पक जाना और पक कर आगे के स्तर पर पहुंच जाना।यहाँ पूर्णता नहीं, विकसितता नहीं वरन निरन्तरता। ऐसे में आर्य होना क्या है?आर्यत्व क्या है?हमने अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में ही महसूस कर लिया कि सैद्धान्तिक आर्यसमाज नहीं मिशन विचार क्रांती शान्तिकुंज हरिद्वार नहीं अर्थात वहाँ जो लोग है वे जातिवादीविहीन पुरोहितबाद में जरूर खड़े हैं लेकिन जातिवाद मजहबवाद से मुक्त नहीं हैं।अपने बेटे बेटियों की शादी में जातिवाद मजहबवाद ही फैलाए हैं।
पैतृक स्थानों को त्याग कर हमें  इस चीज इसे छुटकारा मिलता, हम जैसा चाहते थे।वैसा जीवन जी सकते थे। हमने कोई भेद नहीं रखा कि सामने चमार/मेहतर है या #ब्राह्मण?रहे हम सदा तथाकथित ब्राह्मणों व क्षत्रियों के  बीच ताकि हम अध्ययन कर सकें इनमें ऐसा कौन सा आचरण है जो ये अपने को जन्मजात उच्च मानते है? हमारी आंतरिक कोशिस चलती रही-अपने चेतना व समझ को आगे बढ़ाने की। पैतृक स्थानों को त्याग हमें आगे बढ़ने का अवसर मिला। हम आर्य समाज, शांति कुंज ,#विद्याभारती, संघ आदि संस्थाओं के अलावा अन्य संस्थाओं को भी समझने का अवसर मिला लेकिन शांति व संतुष्टि नहीं।हम वर्तमान में #श्रीरामचन्द्रमिशन & #heartfulness के माध्यम से वर्तमान वैश्विक गुरु श्री #कमलेशडीपटेल #दाजी से सम्बद्ध हैं। जिस बीच हम जातिवाद मुक्त मजहब मुक्त अन्य अंधविश्वास मुक्त जीवन जी सकते हैं।लेकिन यहाँ भी ऐसे लोग नहीं है जो जातिवाद विहीन व मजहबवाद विहीन जीवन जीते हों।कुछ अपवादों को छोंड़।लेकिन तब भी ये तो है कि हमारी चेतना व समझ को वैसा आगे बढ़ने का अबसर है, जैसा हम पसन्द करते हैं। हम #सहजमार्ग अंतर्गत #राजयोग  से सम्बद्ध हैं।जहां सन्तों  की वाणियों के आधार पर आचरण करने के अबसर हैं। राष्ट्रभक्त बाबा रामदेव भी कह चुके हैं अन्य भी कह चुके है-यहाँ खामोश आध्यत्मिक क्रांति घटित हो रही है। जिधर कभी पूरी दुनिया को आना होता है।जहां से ही सबको भेद मुक्त हो देखा जा सकता है। सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर। और हम आर्य व देवत्व, सुर व सुरत्व से आगे भी छलांग लगा सकते हैं। उस #असुर की ओर छलांग लगा सकते हैं जो सुर व आर्य से भी ऊपर है।जिसमें सब समाए हैं।सुर से नीचे का भी असुर भी।

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