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बुधवार, 20 मई 2020

दिमाग विकास को तो जन्म दे सकता है लेकिन बुद्धिमत्ता का नहीँ, विकास शीलता तो हमारी सम्वेदना में है::अशोकबिन्दु

सम्वेदना@
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ये हमारे हाड़ मास सम्वेदना/आत्मियता की हालत है।
यही सिर्फ हमारा है।
यही का प्रबन्धन हमारा है।
इस हाड़ मास के पीछे अनन्त प्रवृतियों का तन्त्र छिपा है।
हमारी चेतना/आत्मा का सम्वन्ध यही से है।
दिमाग से नहीं।
जीवन दिमाग से संचालित नहीं होता।
दिव्यता का भंडार दिल है।
जब हम इस हाड़ मास से उबर आगामी स्तर पर बढ़ते हैं तो-
कम्पन!स्पंदन!तरंग!प्रकाश!!!
जगदीश चन्द्र बसु उस ओर पहुंचने की कोशिस साइंस के माध्यम से शुरू की लेकिन सुप्रीम साइंस के माध्यम से नहीं।
हमारा सुप्रीम साइंस, हमारा अध्यत्म हमारी यही दशा की ओर लेजाता है,हमारी वर्तमान धारणाओं से निकल कर।वर्तमान धर्म के ईश्वर से हट कर है अध्यत्म का ईश्वर... फिजिक्स में हैं हम अभी।सिर्फ गुरुत्वाकर्षण तक पहुंचे तो हैं लेकिन उस पर भी अनुभव व अहसास को नहीं चमकाया है।
जो स्वतः है निरन्तर है वह  किसी भाषा, पन्थ,जाति, कर्मकांड से परे है।
रूहानी यज्ञ/अभियान हाड़ मास, भाषा, पन्थ, जाति, कर्मकांड आदि से आगे भी है। और भी आगे... और भी आगे... मुरारी या हुसैन या हुसैन क्या गाने लगे व्यास गद्दी से कि लोगों के सनातन की जड़ें हिल गईं, नहीं सनातन की जड़ें नहीं।उनके भ्रम की.....

कबीरा पुण्य सदन




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