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सोमवार, 4 मई 2020

फतेहगढ़ वाले श्रीरामचन्द्र जी जिनकी याद में स्थापित श्रीरामचन्द्र मिशन के गुरु हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी को नमन!

https://youtu.be/0Tiyc51PkvA


हजरत जनाब मौलवी फज्ल अहमद खां साहब
जन्म : 1857
समाधि : 1908

हम सब लोग हजरत जनाब शाह फज्ल अहमद खां साहब रायपुरी के प्रति कृतज्ञ है कि उन्होंने अपनी असीम व उदार आध्यात्मिक चेतना के द्वारा नक्श्बंदिया सिलसिले की अति गुह्म व अनमोल आध्यात्मिक विद्या को मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य धर्मं के लोगो को बिना धर्म परिवर्तन कराए फैजयाब करने का अत्यंत साहसिक कदम उठाया | यह एक क्रांतिकारी घटना थी | इस महान पाक हस्ती ने विश्व के सम्पूर्ण मानव समाज के लिए महान उपकार का कार्य किया | उन्होंने धर्म की ऐसी नूतन व सर्वग्राही परिभाषा व संकल्पना की कि जिसके आधार पर धर्मं को दो हिस्सों में  शरीयत व रूहानियत में बांटा | शरीयत (कर्मकाण्ड) का स्वरुप  निर्धारित है, पर रूहानियत (आध्यात्म) प्राप्त करने के लिए धर्म का कोई बंधन नहीं है | हजरत ने यह भी समझाया कि यह सूफी संतो की विद्या, प्राचीन हिन्दू आर्य ऋषि मुनियों की विद्या है जो अब पुनः उन्ही को वापस हो रही है |

आपके गुरुदेव ने एक बार आपको अपने गुरुदेव (श्रीमान कुतुब साहब) का बतलाया हुआ यह रहस्य भी बतलाया था कि ”तुम्हारे पास एक दिन एक लड़का आयेगा, उससे इस आध्यात्म का बहुत-बहुत प्रचार होगा, परन्तु मेरे पास तो ऐसा कोई लड़का नहीं आया, संभवतः (शायद) उन्होंने तुम्हे मुझमे देखा होगा| अब तुम इस बात का ध्यान रखना और इस आज्ञा का पालन अक्षःरशः करना|”

आप जिला फर्रुखाबाद में कायमगंज से चार मील दूर रायपुर गाव के निवासी थे | आपको आपके गुरदेव ने अपना पुत्र बना लिया था व गुरुदेव के साथ ही रहते थे | गुरुमाता भी अपने अंतिम समय तक आपके ही साथ रही और आपने गुरुमाता की बहुत सेवा की | आप अपने गुरुदेव की सेवा में २२ वर्ष रहे उन्होंने ब्रह्म विद्या से मालामाल कर दिया |अंत समय में गुरुदेव ने भविष्यवाणी की कि तुम्हारे पास एक हिन्दू लड़का आएगा, उसका ख़ास ख्याल रखना | उस लड़के से ब्रह्म विद्या का प्रचार हिन्दुओ में खूब होगा | ये लड़के स्वनामधन्य महात्मा रामचन्द्रजी साहब (फतेहगढ़) थे| आपने अपना ख़ास खलीफा पूज्य महात्मा जी (महात्मा रामचन्द्र जी साहब) को बनाया व साथ ही पूर्ण आचार्य पदवी अपने छोटे गुरु भाई पूज्य मौलवी अब्दुल गनी खां साहब को प्रदान की|

आपका जन्म सन् 1857 में हुआ था | आपका जीवन करामातो से भरा है | सदाचार आपका परम सीमा पर था | सब्र व संतोष की आप साक्षात मूर्ति थे | आपके गुरुदेव ने किसी और को ख़ास खलीफा नहीं बनाया | कहा, तुम जैसा एक शेर हजारो से अच्छा है | आपकी आत्मिक धारा (तवज्जोह) हजरत ख्वाज़ा बाकी बिल्ला साहब (रह) की तवज्जोह से हूबहू मिलती हुई थी |

कोई आपसे धर्म परिवर्तन करने के लिए कहता तो उन्हें बहुत बुरा लगता | कहते “अब तुम मेरे काम के नहीं रहे | मैं अपनी फकीरी पर धब्बा नहीं लगने दूंगा | तुम जिस धर्म में हो उसी में रहो और आध्यात्म प्राप्त (रूहानियत हासिल) करो |”

आप न किसी से पैर छुआते थे न किसी से भेंट लेते थे बल्कि अपने शिष्यों के पैर दबाते | अक्सर कई दिनों तक फाका (उपवास) रहता | फिर अगर कहीं से पैसे भी आते तो बाँट देते | अभ्यास इतना करते कि एक बोतल चमेली का तेल कुछ दिन में ही सर में जज्ब हो जाता | एक बार आपने दवाखाना खोला व शीशियों में कुएँ का पानी भर दिया  | उन दवाओ को पीकर, जो आया उसके असाध्य रोग ठीक हो गए | फिर जो कमाई होती उसका सिर्फ चालीसवां हिस्सा रख कर, सब बांट देते  | फिर कुछ दिन बाद शोहरत ज्यादा होने से, दवाखाना बंद कर दिया |

एक रईस के सुपुत्र आपके पास आते थे | कुछ दिनों बाद निवेदन किया मैं एक स्त्री से शादी करना चाहता हूँ | आप मुझे कोई ऐसा मंत्र बता दीजिये जिससे वह मुझसे शादी करने को तैयार हो जाए | उस समय आप चुप रह गए | बाद में एक दिन चांदनी रात थी, सत्संगी भाई बैठे हुए थे व रईस के सुपुत्र भी बैठे थे | हजरत साहब बहुत साफ़ सफ़ेद कपडे पहने हुए थे, इत्र लगा हुआ था, चमेली बेला के फूल पास में रखे थे,अचानक उन सुपुत्र को संबोधित करके बोले “बेटे हमारी तरफ देखो, क्या वह औरत हमसे भी ज्यादा खूबसूरत है ?” आप उस समय बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ते थे | उन साहबज़ादे ने आपकी तरफ देखा तो देखते रह गए, मानो पत्थर की कोई मूर्ति हो | उस रोज़ से हालात बदल गए व स्त्री की मोहब्बत के बदले में गुरु महाराज की मोहब्बत ने घर कर लिया |

एक शाह साहब ने कुछ सिद्धिय हासिल कर ली थी | एक बार हजरत साहब फर्रुखाबाद से कानपुर जा रहे थे | शाह साहब जब भी ट्रेन रूकती हर स्टेशन पर प्रकट हो जाते हुक्का पेश करते और हजरत साहब से बातें करते मानो बतला रहे हो कि मै यह चमत्कार जानता हूँ | ऐसे ही तीन स्टेशन तक वह बराबर आते रहे | आखिर हुज़ूर महाराज ने कहा – “शाह साहब यह क्या खेल दिखा रहे हो ? यह हरकत फकीरों को शोभा नहीं देती | अब आप अगले स्टेशन पर न आ सकेंगे |” अगले स्टेशन पर शाह साहब के दर्शन नहीं हुए उनकी यह सिद्धि हमेशा के लिए जाती रही |

आपकी करामातो का कहाँ तक वर्णन किया जाए | आपकी ज़िन्दगी ही करामातो और बरकात की ज़िन्दगी थी | जा काम था वह करामात था | जहाँ जाते थे वहां बार्कर फैल जाती थी |

आप एक नज़र में शिष्यों को आध्यात्म की ऊँची से ऊँची अवस्थाओं में ले जाते थे | जब आपने अपने शिष्य महात्मा रामचन्द्र जी महाराज (फतेहगढ़) को उत्तराधिकारी बनाया तो एक जलसा किया जिसमे हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, नानक पंथी, कबीर पंथी आदि सभी बुलाये और कहा कि मैंने सारी उम्र में यह दरख़्त (पेड़) तैयार किया है | आप इस उत्तराधिकारी की पुष्टि करें | फिर महात्मा जी को कहा कि इन सब साहेबान को ध्यान कराएँ | ऐसा कहा जाता है कि उस सभा में अजीब कैफियत थी जो फिर कभी देखने में नहीं आई | सभी वंश के बुज़ुर्ग उस सभा में बैठें नज़र आते थे | सब जगह नूर ही नूर छाया हुआ था और अजीब कशिश व आनंद था | आंखो में आंसू जारी थे और अजीब हालात सोजो गुदाज़ (द्रवित होकर रोने) की थी | बाद में सभी ने कहा, “क्या नमूना तैयार किया है | और इन्होने क्या कमाल हासिल किया है | आपका शिष्य ईश्वर में पूर्ण रूप से लय ही नहीं बल्कि इनकी सतपद में पूर्ण स्तिथि भी है |”

जब आपकी उम्र 69 वर्ष की हो गयी तो कहते थे मै इस जिस्म की कैद से आज़ाद होना चाहता हूँ उसके बाद में आप सब की ज्यादा मदद कर सकूँगा | आप कहते थे दुनिया में कोई ऐसा कोई काम नहीं है जिसे हम हिम्मत करे और न हो | जब आपकी माताजी बहुत वृद्ध हो गईं व कहने लगी बेटा फर्रुखाबाद 25 मील दूर है व हमें खरीददारी को जाना पड़ता है बहुत समय लगता है तो आपने कोई मंत्र माताजी को बता दिया तो वे आधे घंटे में फर्रुखाबाद से खरीददारी करके वापस आ जाया करती थीं | वे बहुओं आदि के लिए चूड़ियाँ वगैराह खरीद लाती थीं |

आपका कश्फ (त्रिकालदर्शिता) विशेष थी | आप अपने शिष्यों के घर जाते तो बता देते कि शिष्य कहाँ पर, कितने बजे बैठ कर क्या पूजा करते है |

सन् 1908 में जब आपका अंत समय आया तो आप बराबर बताते जाते कि “अब हमारी आत्मा पैर से निकल गई, अब जिस्म के निचले हिस्से से, अब हाथों से,” फिर फरमाया “अब सभी मौजूद लोग आंख बंद करके परमात्मा का ध्यान करो और हमारी आखिरत (मोक्ष) के वास्ते दुआ करो |” सब परमात्मा का ध्यान करने लगे तो देखा शरीर मौजूद है व आत्मा परमपिता परमात्मा की गोद में वापस लय हो चुकी है |

समाधि – आपकी समाधि कायमगंज से 5 मील दूर रायपुर गाँव में ईदगाह के पास है | आपके पौत्र हजरत मंजूर अहमद खां साहब ने बड़ी लगन से समाधि पर कमरा बना दिया है | जहाँ गुड फ्राइडे के तीसरे दिन बाद भंडारा होता है | यह ऐसा स्थान है जहाँ बैठने से जन्मो जन्मो के पाप धुल जाते है व अपूर्व कृपा कि अनुभूति होती है |


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