Powered By Blogger

रविवार, 24 मई 2020

क्या हम सोलहवीं सदी की ओर लौट रहे हैं:::विलियम थॉमस

नशे की लत भारत में भी महामारी बनती जा रही है.
-----------------------------------------------------------
पंजाब तो इस का बुरी तरह शिकार है. पंजाब में 4 दशकों पहले जब बिहारी मजदूर आने लगे थे तो उन्हें काम पर लगाए रखने के लिए किसानों ने उन्हें नशा कराना शुरू किया था ताकि उन्हें दर्द महसूस न हो और वे 12-14 घंटे काम कर सकें. पंजाब में अफगानिस्तान से आने वाली अफीम आसानी से मिलती थी. इसीलिए मजदूरों के लिए ड्रग जमा करना कोई मुश्किल काम न था.
.
अब यह आदत मजदूरों से किसानों के बच्चों में घुस गई है. पूरा पंजाब ड्रग की मंडी बन गया है. हर दूसरा घर नशेड़ी का है. नशे के चलते सब नष्ट हो रहा है. नशे से ज्यादा पैसा उगाहने के लिए अब पंजाब से उस की तस्करी दूसरे राज्यों में की जा रही है और दिल्ली नशे का बड़ा केंद्र बन रहा है. यहां विदेशी भी आ कर धंधा कर रहे हैं.
.
दिल्ली में हर दूसरे रोज एक जघन्य अपराध होता है जिस में मर्डर तक होता है केवल इसलिए कि अपराधियों को नशे की आदत थी. जेलें नशेडि़यों से भरने लगी हैं और अमेरिका जैसा हाल होने लगा है जहां कोकीन और हेरोइन घरघर में मिलने लगी है और दक्षिण अमेरिका का ड्रग माफिया कितने ही इलाकों में पैर फैलाए हुए है.
.
ड्रग्स का चलन अभी तक या तो बहुत गरीबों में है या फिर बहुत अमीर घरों के बिगड़ैलों में. लेकिन इस को फैलते देर न लगेगी. जिन्हें सिगरेट और शराब पीने का चस्का लगा हुआ है उन में ड्रग्स लेने की आदत डलवाना आसान है. फिल्मों और पार्टियों से शराब का जिस तरह प्रचार हो रहा है वह चौंकाने वाला है. आजकल छोटे बच्चों की बर्थडे पार्टियों में भी जाम छलकने लगे हैं. ये बच्चे लिमिट जानते ही नहीं हैं लिमिट का पता हो, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
.
बिहेवियोरल ऐक्सपर्ट यानी व्यवहार के विशेषज्ञ कहते हैं कि शराब पीने, नशा करने में लिमिट जैसी कोई बात नहीं होती. शराब के समर्थक अकसर कहते हैं कि वे सिर्फ सोशल ड्रिंकिंग करते हैं यानी लिमिट में शराब पीते हैं. वहीं विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि लिमिट का कोई पैमाना नहीं होता और यह बदली जाती रहती है. ड्रग्स भी इसी तरह आदत में शामिल हो जाती है. बस, टेस्ट करने से शुरू हो कर नशेड़ी बनने में समय नहीं लगता.
.
ड्रग्स पर कंट्रोल करना है तो शराब पर कंट्रोल आवश्यक है. यह अगली पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए जरूरी है. इस बारे में ढीलढाल देश को महंगी पड़ेगी. चीन एक बार 17वीं सदी में अफीम की गिरफ्त में आया था और उस को 150-200 साल गुरबत में बिताने पड़े.
.
हमारे यहां धर्म व जाति का नशा तो है ही, भांग, अफीम, कोकीन, मेरीजुआना का नशा ज्यादा चढ़ा तो हम 16वीं सदी में लौट जाएंगे.




कोई टिप्पणी नहीं: