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गुरुवार, 14 मई 2020

85-90 प्रतिशत व्यक्ति बेहतर इलाज बेहतर शिक्षा से बंचित!उनका जीवन जीना मुश्किल:::अशोकबिन्दु भईया

देश की दिशा व दशा!
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शहर में नब्बे प्रतिशत सिर्फ जिंदा है।दस प्रतिशत की चमक ही शहर है।ऐसा ही कुछ गांवों में है।
गांव व शहर में दो-तीन परिवार की ही चलती है।इस लिए हम वर्तमान तन्त्र व व्यवस्था को जनतन्त्र नहीं मानते।सामन्तवाद, जातिवाद, मजहब वाद ,मफियातन्त्र, धन बल आदिआदि मानते हैं।

देश में जनतंत्र तभी होगा जब हर व्यक्ति व हर परिवार सिस्टम का हिस्सा होगा। सरकार व व्यक्ति/परिवार के बीच अन्य कोई न होगा।होगा तो वह सिर्फ सेवक,जनप्रतिनिधि।

देश के अंदर ऐसे दृश्य देखने को मिल रहे है जो इंसानियत,सामजिकता,देश भक्ति के लिए कलंक है।
कूड़े के ढेर से भूख की तृप्ति तलाशते अब भी मिल जाते है। ऊंची ऊंची कुछ हवेलियां भी देखी है,जो चमक में तो है लेकिन राशन कार्ड के बल पर भूख मिटा रही हैं।या राशन कार्ड खत्म तो भूख मिटाने में भी दिक्कत!!
समीकरण अनेक हैं जो गड़बड़ हैं। 85-90 प्रतिशत व्यक्ति बेहतर इलाज, बेहतर शिक्षा से वंचित हैं।

बार बार जयगुरुदेव/सन्त तुलसी दास की बातें याद आ जाती हैं-देश के हालात ऐसे हो जाएंगे जैसे कुत्ते के गले में फंसी हड्डी।दिल्ली की गद्दी देश का भला नहीं कर सकती।
देश!क्या है देश?देश स्वयं क्या है?यदि उसके मनुष्यों, जीवजंतुओं, वनस्पतियों को निकाल दो।देश पूंजीपति की फैक्ट्रियां नहीं,सड़के,इमारते नहीं।मनुष्य, जीवजंतुओं, वनस्पतियों के संरक्षण के बिना सब निरर्थक।

दीनदयाल उपाध्याय क्या कहते हैं?जब तक नीचे पायदान के व्यक्ति का जीवन मुस्कुराते हुए आगे के पायदान पर जाने के अवसर नहीं पाता ,सब कुछ निरर्थक। लोहिया कहते है-जब तक वार्ड/गांव में अकेला लाचार व्यक्ति भी सीना तान कर आत्म निर्भर हो जीवन जीना शुरू नहीं करता तबतक  सुप्रबन्धन नहीं। महात्मा गांधी कहते हैं- वातावरण ऐसा होना चाहिए कि कोई गुंडा मनमानी न कर सके।

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