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सोमवार, 11 मई 2020

गीता व वेद की बातों के आधार पर चलने वाले व वर्तमान में हिन्दू की सोंच में फर्क नहीं क्या???अशोकबिन्दु

वेद व गीता में जो लिखा है, उसके आधार पर जब हम बोलते है, चलने की कोशिश करते हैं तो हिन्दू ही हमारे विरोध में खड़े होते हैं?


मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९१)
अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )।


किसी हिन्दू की सोच हमें सनातन नहीं दिखती

हमने तो अध्ययन से यही जाना है   कि सनातन है आत्मा/परम् आत्मा। अपने अंदर की आत्मा की ओर अपने मन को मोड़ना जरूरी है। धर्म,ईश्वरता व आध्यत्म का सम्बन्ध कर्म कांड ,जातियों, धर्म स्थल आदि से नहीं वरन हमारे नजरिया, रुझान, कर्तव्य आदिआदि से है। अपने को पहचाने बिना सब निरर्थक।सभी ग्रंथो का हेतु है आत्म प्रबन्धन व समाज प्रबन्धन। आत्मा से ही परम आत्मा की यात्रा शुरू होती है।मार्टिन लूथर ने कहा था हम पुरोहितों, धर्म स्थलों की क्यों सुने?हमें ग्रंथो व ईश्वर से मतलब है।

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