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गुरुवार, 21 मई 2020

मानव व उसकी समीपता::अशोकबिन्दु भईया

समीपता!
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मानव की महानता की ओर उपनयन संस्कार का बड़ा महत्व है।
वह है गुरु के पास जाना। इसके बाद उपनिषद अर्थात गुरु के पास बैठना।उपासना अर्थात उप आसन।इस सब के पीछे एक दर्शन छिपा हुआ है।उस दर्शन को हम सदा 'समीपता'के माध्यम से सिमेटने की कोशिस करते रहे हैं।


हमारी समीपता को समझने के लिए हमें पहले स्वयं को समझना आवश्यक है। हमारी सम्पूर्णता बनती है-हमारे स्थूल, सूक्ष्म व कारण को मिला कर।हमारा अधूरापन हमें जीवन के अस्तित्व का आनन्द नहीं लेने देता।अधूरेपन पर हम बाद में लिखेंगे। यहां हमारा विषय है-समीपता।

हमारा हमारी समीपता का हमारे उन्नति की दशा में बड़ा महत्व होता है।


हमारे समीप क्या होता है?जब हम इस जगत में आते हैं तो हमारी समीपता होते हैं-माता पिता व माता पिता का नजरिया, उस सम्भोग के प्रति माता पिता का नजरिया जो सम्भोग हमारे जन्म का कारण बनता है।इसके बाद गर्भावस्था के दौरान माता को शारीरिक, मानसिक,भावात्मक स्थिति व खानपान।जन्म के वक्त का वातावरण। डेढ़ साल तक कि हमारी परवरिश।देश साल बाद परिवार, समाज, विभिन्न मौसमों ,तापमान आदि को ग्रहण करना।परिवार में माता पिता का आचरण, परिवार के सदस्यों के बीच परस्पर व्यवहार व संवाद। परिवार व परिवार के सदस्यों का पास पड़ोस, समाज के व्यक्तियों से व्यवहार। परिवार से बाहर अन्य व्यक्तियों से व्यवहार रखने के हेतु का स्तर, मानसिकता, दशा आदि।परिवार व परिवार के सदस्यों की जीवन में प्राथमिकताएं  व विभिन्न घटनाओं पर नजरिया। परिवार व परिवार के व्यक्तियों की इच्छाओं, अवश्यकताओं, प्राथमिकताओं  के बीच हमारा नजरिया, विचार, भाव हमारी चेतना व समझ का स्तर।परिवार व परिवार के सदस्यों में सामाजिक कुरीतियों, जातिवाद, मजहब वाद आदि नजरिया व ज्ञान, विज्ञान ,मानवता, आध्यत्म, सम्विधान आदि प्रति हमारा अचरणात्मक पहलू।जीव जंतुओं, पेड़ पौधों आदि के प्रति समझ का हमारा स्तर।गैर जाति, गैर मजहब के प्रति हमारी समझ का स्तर।विभिन्न समस्याओं, परेशानियों,आपात काल आदि के वक्त परिवार व परिवार के सदस्यों की समझ का स्तर।परिवर्तन/बदलाव ,विकास के प्रति परिवार, परिवार के सदस्यों व हमारी समझ। स्वाध्याय, मनोरंजन, शिक्षा, सरकार, सम्विधान आदि के प्रति हमारी अपने व्यक्तिगत जीवन में समझ। इस बात का महत्व कि हमारा अधिकांश वक्त किस भाव, विचार, आचरण में व्यतीत होता है......... आदिआदि।




जब हम वर्तमान में सन्तुष्ट नहीं या हम वर्तमान में अधिकांश वक्त असन्तुष्टि संग गुजरते हैं तो फिर हम भविष्य में आनन्द को प्राप्त करेंगे ,इस पर संदेह है। समीपता हमारी आंतरिक व बाहरी स्थिति, आचरण है।उस आधार पर ही हम अपना पड़ोस जीते हैं।  हमें....

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