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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

जो सत्य से मुकरे वही दुख पाये ....?

सुप्रबंधन के लिए प्रतिपल आन्दोलनरत रहने की आवश्यकता होती है अर्थात प्रतिपल जेहाद की आवश्यकता होती है .देश के हालातोँ के लिए हम सब दोषी हैँ.हमसब क्या अपने ईमान की हिफाजत कर रहे हैँ ?

मर्यादाओँ के लिए हम अपनी भौतिक लालसाओँ का त्याग करने को तैयार नहीँ .हम होते तो क्या करते?क्या जंगल जंगल भटकना पसंद करते ?रामचंद्र शुक्ल का कहना है-"महाराणा प्रताप जंगल जंगल मारे मारे फिरते थे ,अपनी स्त्री और बच्चोँ को भूख से तड़पते देखते थे ,परन्तु उन्होने उन लोगोँ की बात न मानी जिन्होँने उन्हेँ आधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्मति दी,क्योँकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है ,उतनी दूसरे को नहीँ. "

लेकिन हम ?!

हम चंद रुपयोँ की खातिर क्या नहीँ कर सकते ?सिर्फ हर हालत मेँ मर्यादाओँ को स्वीकार नहीँ कर सकते .

हम महापुरुषोँ के संदेशोँ को जीवन मेँ उतारना नहीँ चाहते.वर्तमान हालातोँ के लिए हम नेताओँ को दोषी मानते हैँ लेकिन प्रजातंत्र मेँ हम ही दोषी हैँ ,हम सत्य से मुकरे हुए हैँ अर्थात हम काफिर हैँ.हम जाति जाति मेँ बंट अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड करते रहे है .


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