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शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

श्राद्व पक्ष : क्या सनातन धर्म के पक्ष मेँ आज की सोंच !

पुरखोँ व बड़ोँ का सम्मान कैसे ?


वर्तमान मेँ श्राद्ध पक्ष चल रहा है.हिन्दुओँ मेँ कुछ हट कर इस समय चल रहा है.
पुरखोँ का सम्मान हम कैसे कर सकते हैँ ? बड़ा कौन है ?श्राद्ध करने का क्या सर्वोच्च ज्ञान समर्थन करता है? तरक्की का मतलब क्या ये है कि हम समाज का अंधानुकरण करेँ व महापुरुषोँ के संदेशोँ को नजरअंदाज कर देँ ?संश्लेषण व विश्लेषण मेँ जाने के बाद पाता हूँ कि उपर्युक्त सवालोँ के जबाब के अनुरुप श्राद्ध मनाने वालोँ का आचरण , हेतु ,नजरिया व ज्ञान नहीँ होता .श्राद्ध करने से पितरोँ का उद्धार होता है ,ऐसा कहने वाले गीताज्ञान के क्या विरोधी नहीँ हैँ? श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ ,बरेली,उप्र के संस्थापक भैया जी का भी कुछ ऐसा ही मानना है कि श्राद्ध करने या न करने से पितरोँ के उद्धार का कोई मतलब नहीँ है.यदि मतलब है तो गीता के ज्ञान का विरोध है .पितरोँ का उद्धार कैसे ?काम,क्रोध,लोभ,माया ,मोह आदि पर नियंत्रण कर महापुरुषोँ के संदेशों पर चल कर ही हम भूत व पितर योनि की सम्भावनाओँ से निकल कर पितरोँ का उद्धार कर सकते हैँ.जो जैसा कर्म करता है,वह वैसी योनि पाता है .पितरोँ को उनकी योनि से कैसे उद्धार ... ?

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