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सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

प्रकृति सम्मान का ही धार्मिक स्वरुप नवरात्र!

आवेश दो प्रकार का होता है-ऋणावेश व धनावेश.सारी सृष्टि इन्हीँ दो आवेशोँ के परस्पर संबंधोँ पर टिकी है.फिजिक्स ,कैमेस्ट्री,भूगोल,खगोल,मनोविज्ञान आदि विषय के मूल मेँ भी यही है.जगत की सारी भौतिक व अभौतिक अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष क्रियाएं इसी पर टिकी हैँ.हिन्दूपौराणिक व अन्य दर्शन मेँ सृष्टि उत्पत्ति का आधार यहीँ से शुरु होता है.मानव उत्पत्ति का श्रीगणेश भी यहीँ से है.आदमहब्बा या शंकरपार्वती उपस्थिति के साथ मानवसत्ता का उदय होता है.सभी प्राणियोँ के शरीर,सूक्ष्मशरीर प्रकृतिअंश ही है.आत्मा व परमात्मा (ब्रह्म) अनन्त भगवान (शून्य के बाद ब्लेक होल व व्हाईट होल के पार) के अंश हैं.प्रकृति मेँ इन दोनोँ के समअस्तित्व को हिन्दूपौराणिक श्री अर्द्धनारीश्वर का स्वरुप मेँ प्रस्तुत किया गया है.हमसब के शरीर व सजीवोँ का अस्तित्व इन्हीँ दोनोँ के समअस्तित्व का परिणाम है .हम पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश. हमसब अपने लिए काफी कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन स्थिति अंधेरे की है.हम न अपने प्रकृतिअंश न ही अपने ब्रह्मांश के लिए ईमानदारी व ज्ञान बोध के साथ नहीँ जीते. किसी का नर या मादा होना प्राकृतिक है.

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