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गुरुवार, 15 जुलाई 2021

जनतंत्र ,देश भक्ति व सरकार हित::अशोकबिन्दु


 मुंशी प्रेम चन्द्र ने सरकार को अवैध बताया है।

हम सब प्रकृति की धरोहर हैं।

हमारा कर्तव्य बनता है कि हम प्रकृति के खिलाफ न जाएं।

ऐसे में देशभक्ति क्या है?देशभक्ति प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी धरती के लिए एक वह भावना है जो कि धरती के प्रति उसे श्रद्धा से भरती है।उसे भोगवाद से बचाती है।मातृभूमि की भावना जो उसे धरती को,प्रकृति को मां मानने के लिए प्रेरित करती है, उसे भोगवाद से बचाने का चरमोत्कर्ष है।


इस धरती पर मातृदेवी की उपासना के अवशेष पहले मिलते हैं, अन्य के बाद में।

देशभक्ति किसी भूभाग के रहने वाले हर व्यक्ति का कर्तव्य व अधिकार है।उस भूभाग पर शासन करने का औचित्य सिर्फ उस भूभाग के प्रबंधन के लिए, सेवा भाव के लिए है न कि अपना अधिकार व प्रभुत्व जमाने के लिए जो कि उस भूभाग की प्रकृति, जीव जंतु, मनुष्यों के नैसर्गिक आवश्यकताओं, जिजीविषा, सम्मान, कर्तव्यों, सर्व हित, बसुधैव कुटुम्बकम भावना आदि में अवरोध हो।


सरकार, सत्ता, शासन का मतलब भूभाग पर अपना या कुछ समुदायों के लिए नियोजन, प्रबन्धन न होकर सारी प्रकृति का सम्मान है।जिसमें जाति, मजहब, धर्म स्थल, मूर्तियों आदि कृत्रिमताओं का कोई स्थान नहीं है। 

शासन प्रणालियों में जनतंत्र प्रणाली का मतलब यही है, सबको जीने दो।सबका साथ सबका विकास और सबकी भागीदारी।

जनतंत्र में बहुमत को स्वीकार करने का मतलब ये नहीं भीड़ में खड़ा अकेला व्यक्ति को उपेक्षित कर देना।उसके अंदर भी वह है जो शाश्वत, निरन्तर, स्वतः है।बहुमत को स्वीकार करने का मतलब ये नहीं है कि जो अल्पमत है वह व्यक्ति, प्रकृति, जगत, ब्रह्मांड में सर्वव्याप्त, स्वतः निरन्तर, शाश्वत आदि को नजर अंदाज कर देना।जगत में जो भी है ,उसकी नैसर्गिकता की उपेक्षा प्रकृति व ब्रह्मांड का विरोध है।

वास्तव में प्रकृति,जगत, ब्रह्मांड की सत्ता में जो है, साक्षी है वही राजन्य व राज्य का हकदार है।क्यों न वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक।

सर्वव्याप्त, स्वतः, निरन्तर, शाश्वत व हम सब व जगत के नैसर्गिक सत्ता में यह महत्वपूर्ण नहीं हैं कि कौन अल्पसंख्यक है ,कौन बहुसंख्यक है? राजा तो वास्तव में वही है जो बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर आदि की भावना में जीते हुए मानव व मानव समाज, प्रकृति को परिवार के मुखिया की तरह सभी के हित में द्वेष, मतभेद से मुक्त हो देखता है।वह भूभाग पर एक पिता के समान होता है।

जन तन्त्र का मतलब वह तंत्र खड़ा करना नहीं है जिसमें सिर्फ पूंजीपति,माफिया, नेता, जातिवादी, मजहब वादी, भीड़ हिंसा, अन्याय, शोषण, एकल व्यक्ति की उपेक्षा, अल्पसंख्यक व्यक्ति की उपेक्षा, आराध्यों के वाणियों की उपेक्षा ,जन सामान्य के विकास को अवसरों की उपेक्षा आदि हो।देश भक्ति का मतलब सरकार के पक्ष या विरोध में जीना नहीं है।


ऐसे में आजादी का मतलब क्या है?एक मजदूर, किसान, बेरोजगार, भूखा, गरीब मरीज, गरीब शोषित, जन्मजात निम्न जातिवाद आदि के लिए आजादी का मतलब क्या है?आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं?हूँ..?!एक अल्पसंख्यक के लिए आजादी का मतलब क्या है?भीड़ में अकेला खड़ा व्यक्ति के लिए आजादी का मतलब क्या है?



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