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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

गुरु-शिष्य परम्परा से वर्तमान शिक्षक व विद्यार्थी परम्परा::अशोकबिन्दु

 वास्तव में किसी का गुरु जाना दिल की अवस्था है, व्यक्ति के रुझान, रुचि ,आत्मीय अवस्था है।समर्पण, शरणागति की दशा है।दीवानगी की दशा है।जो वह होने, उसमें जीने के लिए संसार का सब कुछ त्यागने की अनजानी दशा रखता है।जैसे कि किसी की किसी में आदत पड़ जाती है तो हर हालत में उस आदत में जीता है। शिष्य गुरु से कुछ निचले स्तर पर होता है।जैसे कि चिकित्सा विद्यालय में चिकित्सा की ट्रेनिग करता  व्यक्ति जो समाज में चिकित्सक के छोटे छोटे कार्य देखने लगता है।इससे हट कर उसके सामने एक चिकित्सक होता है।एक चिकित्सक व चिकित्सा विद्यार्थी में जो फर्क होता है, वहीं शिष्य व गुरु में होता है।



आज कल के विद्यार्थीव शिक्षक की दशा हट कर है।

 वर्तमान में  शिक्षक और शिष्य के बीच मर्यादा ए बदल चुकी हैं शिक्षक और विद्यार्थी के आचरण भावनाएं नजरिया बदल चुकी है।



गुरुपूर्णिमा पर विशेष!!#अशोकबिन्दु 


वास्तव में यदि शिक्षा ज्ञान आधारित आचरण में उतरने लगे तो शायद नब्बे प्रतिशत अभिवावक अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दें। तब मानवता हीन समाज का अस्तित्व ही हिल जाएगा।एक व्यक्ति के वैज्ञानिक होने की स्थितियां जो है, ज्ञान के आधार पर आचरण की जो स्थितियां है.... आदिआदि उसे परम्परागत समाज, परम्परागत अभिवावक ही नहीं चाहेगा। देखा जाए तो अब दो ही वर्ण रह गए हैं-वैश्य व शुद्र।व्यापार व नौकरी।।कल्पना चावला, किरण बेदी,ए पी जे अब्दुल कलाम आदि जैसे बनने के लिए उनके जैसा नजरिया, भाव कहाँ से आएगा? #शिक्षाक्रांति हममें शिष्यत्व चाहिए, तब हम पेड़ पौधों, जीव जंतु से तक यहां तक कि हर नगेटिव घटना से तक शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।यदि शिष्यत्व नहीं तो आप कॉम्ब्रिज चले जाएं, निरर्थक!! हर व्यक्ति अपने स्तर पर अपने अंदर गुरुत्व को छिपाए है।प्रश्न ये है कि हम किसके भाव से सामने के व्यक्ति के सामने किस स्तर पर समर्पित हैं, शरणागति है। किसी का शिष्य होना या किसी का गुरु होना एक योगिक दशा है।दिल से हमारा शिष्यत्व किस स्तर पर है?दिल से हमरा गुरुत्व किस स्तर पर है?#हार्टफुलनेसस्टूडेंट्स #हार्टफुलनेसटीचर एक तो दिल से इतना हो जाता है कि उसकी हालत अतिसम्वेदनाशील हो जाती,जिसे अट्ठानवे प्रतिशत स्वीकार ही नहीं सकते। वे इतने अंदर पहुंच जाते हैं कि उनके लिए उसका उभरना उसी स्तर का सघन मनोवैज्ञानिक वातावरण मांगता है। उसके लिए मन की सघन गहरी शांति हेतु वातवरण चाहिए। ऊपर ऊपर जुबान, तर्क, बुद्धि, इंद्रियों ,लोभ लालच आदि से/के सहयोग से कोई भी सक्रिय हो सकता है। जो ज्ञान अंतर्मुखी होता है,वही वास्तविक होताहै लेकिन वह यों ही उजागर नहीं होता। गुरु तत्व है, दशा है। शिष्य एक तत्व है, दशा है। लोभ लालच, जीविका आदि के लिए कोई भी कुछ समय के लिए शिष्य या गुरु की भूमिका में आ सकता है जो सिर्फ कर्मचारी होता है।जो दिल से है, उसके हालात अलग हैं। शिक्षा में शैक्षिक मनोविज्ञान का बड़ा महत्व है। शिक्षा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। क्यो ,कैसे, कब, किसे, कहाँ ,कौन शिक्षा दे यही शिक्षा में मनोविज्ञान का ध्येय है।आज की तारीख।में।अट्ठानबे प्रतिशत शिक्षा लेने व देने वाले दोनों का मनोवैज्ञानिक रुझान शिक्षा में है ही नहीं।उन्हें वास्तव में शिक्षा से मतलब ही नहीं।वे सिर्फ शिक्षा को अन्य रुझान के लिए माध्यम बनाये हैं। समाज व जगत के के प्रति वे भी वही नजरिया, विचार, भाव रखते हैं जो एक अशिक्षित,अज्ञानी, जातिवादी, मजहबी, मानवता हीन सामजिकता, अंधविश्वास युक्त सामजिकता आदि रखती है,चरित्र रखती है।

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