Powered By Blogger

रविवार, 1 नवंबर 2020

खुद से खुदा की ओर:अंतिम संस्कार व देह दान::अशोकबिन्दु

 अंतिम संस्कार व देह दान!

@@@@@@@@@@@@@


अंतिम संस्कार की विभिन्न रीतियों के बीच आधुनिक भारत में एक पध्दति ओर आयी है।वह है देह दान।

जिंदा रहते इस हाड़ मास शरीर की कीमत है ही लेकिन इसके मरने के बाद भी इस शरीर का महत्व है।

देश के अंदर अनेक लोग देह दान कर चुके हैं।देहदान क्या है? देह दान में देह दान करने वाले व्यक्ति का शरीर  मृत्यु के बाद एक विशेष अस्पताल के रुम में पहुंचा दिया जाता है। जो चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है।अन्य के जीवन में सहायक होता है।

.

.


जिंदा हैं तो उनके लिए खास हैं ही,

वे न समझें न जाने तो कोई बात नहीं।

मरने के बाद भी वे कुछ खास अंदाज छोड़ जाते है,

किसी को आंख किसी को गुर्दा दे जाते हैं ;

जिंदा थे तो कदर न की थी हमारी,

मर चले तो काम आया हमारा लाश तन भी ।।

#अज्ञात







हम जिस स्तर पर हैं, उस स्तर से शिक्षा, प्रार्थना, सुधार, सीखने का वातावरण आदि होना आवश्यक है। परिवार, समाज, संस्थाओं का वातावरण ऐसा हो कि ब्यक्ति जिस स्तर पर हो उस स्तर से उबरने,आगे के स्तर पर जाने का अवसर हो।अगले स्तर पर जाने के लिए साहस, रुचि, रुझान चाहिए। हम चाहे धन, तन, जाति, देश ,भाषा आदि से कहीं पर हों लेकिन सवाल उठता है कि हमारी समझ व चेतना का स्तर क्या है?हम अपने को शिक्षित, अमीर, उच्च पद, जन्मजात उच्चता आदि में क्यों न स्वयं को माने लेकिन हम एक गरीब, अशिक्षित, जन्म जात निम्न आदि किसी को मानने वाले के स्तर पर ही अपने समझ, विचार, भावना, चेतना आदि का स्तर रखे हुए हैं, उससे निम्न स्तर भी किसी किसी मामले में रखे हुए हैं तो फिर हमारा सब कुछ उचित नहीं है। समाज व प्रकृति की घटनाओं प्रति व इंसान को पहचानने प्रति हमारी समझ क्या है?हमने अनेक लोग ऐसे देखे हैं जो कि जिंदगी भर सांसारिक चमक दमक, लोभ लालच, शारीरक सुंदरता, जन्मजात उच्चता व जन्मजात निम्नता आदि को महत्व देते रहे, चापलूसी, हाँहजूरी,चाटुकारिता आदि को महत्व देते रहे तो ऐसे में उन्होंने इंसान को पहचानने व जगत की घटनाओं को समझने में धोखा खाया। और दूसरों को अपने नसीब को गलत जताने के सिबा उनके हाथ में कुछ न रहा। लेकिन इसके लिए हमारा नजरिया, समझ, चेतना का स्तर महत्वपूर्ण था।


हम कहते रहते हैं-खुदा!?खुद में आ, अंतर्मुखी बन।अपनी चेतना, समझ, अनुभव, अहसास करने के स्तर को पकड़। विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा गया,25वर्ष तक मनुष्य सहज होता है, बनावट, कृत्रिमताओं से ज्यादा जुड़ा होता है।उम्र बढ़ने के साथ साथ दुनिया दारी के झूठ फरेब, अपने व परिवार के हाड़ मास शरीर को पालने में तिगड़म, षड्यंत्र आदि भी आ जाता है।बुजुर्ग होते होते समाज की नजर में कुछ और अंदर कुछ और हो जाता है।मन चिड़चिड़ा, खिन्नत आदि में रहने लगता है।सांसारिक कुछ इच्छाएं अंदर बैठ खलबली मचाने लगती हैं लेकिन हाड़ मास शरीर, इंद्रियां काम न करतीं।हाथ मसल कर रह जाते हैं या फिर कृत्रिम संसाधनों के सहारे जीवन जीते हैं।देखा जाए तो हाड़ मास शरीर व इन्द्रियों, सांसारिक लालसाओं से ऊपर उठ कर अंतर के आनन्द, चेतना, शांति,आत्मा आदि से नहीं जुड़ पाते।यदि अल्लाह हूं.... राम राम .....आदि बुदबुदा भी रहे होते है  तो भी अंतर मन को तलहटी में, अंतर मन,अचेतन मन  में सांसारिक इच्छाएं,हाड़ मास शरीर आदि ही हिलोरें मार रहे होते हैं।किशोरावस्था की कुछ आदतें अंदर ही अंदर कचोट रही होती हैं। ऐसे में क्या आत्मा क्या परम् आत्मा?! हम स्व को अपने हाड़ मास शरीर, इन्द्रियों आदि से ऊपर नहीं उठा पाते।समाज में हम क्यों न जन्म जात उच्चता,अमीर, उच्च पद आदि में जिए हों लेकिन चेतना ले स्तर पर किस स्तर पर?अचेतन मन से किस स्तर पर?सिर्फ भूत योनि, नरक योनि को सम्भावनाओं में।पितर योनि  में भी नहीं।इसलिए सेवा,मानवता व आध्यत्म को पकड़ना ही नही वरन उसकी नियमितता में जीना आवश्यक है, पाखण्ड ही ठीक। अन्यथा विकास कैसा?विकास है-आगे के स्तरों पर पहुंचना, वर्तमान स्तर से निकल कर आगे के स्तर पर पहुंचना।ऐसे में विकास नहीं विकास शीलता होता है, निरन्तरता होता है, स्वतःमें परिणित होता है, अचेतनमन में अर्थात आदत में परिणित होता है । हाड़ मास शरीर त्यागने का वक्त आ गया, लेकिन उलझ उसी में, इन्द्रियो में, सांसारिक इच्छाओं में।चेतना किसी इन्द्रिय पर ही टिकी है।अंतिम संस्कार कैसा?क्या है अंतिम संस्कार?मानसिक रूप से न पिंड दान में, न कपाल क्रिया..... सिर्फ स्थूल क्रिया?!विकास कैसा?!टिके कहाँ हो?!गीता में श्रीकृष्ण -कहते हैं,मरने के वक्त चेतना,नजरिया व समझ कहाँ पर टिकी है?रुझान कहाँ पर टिका है?इसी पर तय होता है अगला पड़ाव। कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं, अंदर से क्या हो रहे हो ये  महत्वपूर्ण है।समाज की नजर  में आपका क्या चरित्र है?ये किसी के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन आपके लिए नहीं।आपकी असलियत आपका अचेतन मन है। आपका अंतिम संस्कार क्या है समझो।समाज आपके हाड़मांस शरीर का अंतिम संस्कार कैसे करता है ?इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है, आपने स्वयं व अपने मन, चेतना,समझ की क्या तैयारी है?


समाज में अंतिम संस्कार अर्थात समाज सिर्फ आपके हाड़ मास शरीर का ही अंतिम संस्कार कर सकता है लेकिन अब आपके सूक्ष्म शरीर का संस्कार स्वयं आपको ही करना होगा।शरीर को जला देने से इतना फायदा होता है कि हमारा आत्मा सहित सूक्ष्म शरीर हाड़ मास शरीर जलने के बाद हाड़ मास शरीर की असलियत जान जाता है और उससे मोह त्याग आगे को यात्रा पर बढ़ जाता है। हो सके तो स्वयं ही इस हाड़ मास शरीर के मरने से पहले ही मन ही मन इस हाड़ मास शरीर को मार दो।...योग के आखिरी अंग- प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि।समाधि को दशा  यही है कि किसी खो जाना।सब होता रहे, कोई अन्य सारथी हो जाए, लेकिन हमें स्थूल शरीर व जगत की परवाह न रहे।


अब इस हाड़ मास शरीर की मृत्यु से पूर्व हाड़ मास शरीर के दान की घोषणा क्या है?सुनने मिलता है देश व विदेश में कुछ लोग मरने से पहले शरीर दान करने की घोषणा कर जाते हैं।इसके पीछे का दर्शन जानते हैं आप?! जानो। बाबू जी महाराज ने कहा है, शिक्षित के अधिकार खत्म हो जाते हैं।उसके सिर्फ कर्तव्य ही रह जाते हैं। ये शरीर परोपकार के लिए है।बस, इतना करते जाएं कि हाड़ मास शरीर के मरते वक्त हम भी अचेतन मन से इससे दूर हो जाएं। अब तो देह दान को भी प्रक्रिया शुरू हो गयी है।मरने के बाद भी इस शरीर से हम परोपकार घटित कर सकते हैं।अब तो ऐसा भी है कि इस शरीर को जला कर कृत्रिम हीरे बन जाते हैं।साइंस के विद्यार्थी जानते होंगे कि हीरा कार्बन का ही उच्चतम रूप है।

#अशोक। कुमार वर्मा "बिन्दु"

कोई टिप्पणी नहीं: