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मंगलवार, 10 नवंबर 2020

धूमिल की याद में----अशोकबिन्दु

 देश में लोकतंत्र खोजता हूँ,

कहीं नजर न आता है।

किसी की मेहनत,

किसी का पोषण;

बीच में तीसरा-शोषक।

अब भी सामन्त है,

सम का अंत है,

कोई अपने धर्म स्थल में खुश,

कोई अपनी बिरादरी के -

चमकते उस चेहरे से खुश,

कोई को अपने बिरादरी के अपराधी से नाज।

गांव व शहर का हर गुंडा-

किसी नेता या दल का खास,

1.72प्रतिशत नोटा की खामोशी,

इस खमोशी में छिपे राज,

हर युवा अब भीड़ हिंसा व उन्माद,

शोषण, अन्याय, खाद्य मिलावट पर खामोश,

मेरा देश महान।

#अशोकबिन्दु


जन-चेतना के प्रबल स्वर और जन-जागृति के निर्भीक कवि स्व सुदामा पांडेय 'धूमिल' को उनके जन्मदिवस पर बहुत-बहुत प्रणाम! व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों पर इतनी मारक भाषा में इतना सशक्त प्रहार करने का साहस ही धूमिल को प्रासंगिक बनाता है। 


"एक आदमी

रोटी बेलता है

एक आदमी रोटी खाता है

एक तीसरा आदमी भी है

जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है

वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है

मैं पूछता हूँ--

'यह तीसरा आदमी कौन है ?'

मेरे देश की संसद मौन है।" ( ~ धूमिल)


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