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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

अशोक बिंदु:: दैट इज..?!पार्ट16

 22-25 मार्च 2020ई0!

किशोरावस्था से अब के हमारे बेहतर स्वर्णिम  दिन?! सत्र2002-03,सत्र 2003-04 व सत्र 2004-05ई0 के सिबा अब 22-25 मार्च 2020ई0 से 21 जून 2020ई0 तक।प्रकृति अभियान(यज्ञ) व मालिक की कृपा।

महात्मा गांधी ने कहा है-"स्वच्छता ही ईश्वर है।" भारतीय स्वच्छता अभियान का #लोगो #गांधी का चश्मा  एक व्यापक दृष्टि छिपाए हुए है।

जब 'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर' तो ऐसी स्थिति के लिए सिर्फ स्वच्छता ही काफी है। स्काउट/गाइड का मंत्र #तैयाररहो  का मतलब हमारे लिए है-हर वक्त अभ्यास व सतत में रहो। हमारे अंदर व जगत के अंदर जो है, वह सतत है निरन्तर है।विकसित नहीं विकासशील है।

सन्त कबीर, नानक आदि ने भी कहा है कि पवित्रता व सहजता में ही आत्मा, परम् आत्मा, बसुधैव कुटुम्बकम, अनन्त यात्रा आदि के हम गबाह बनते है, साक्षी होते है। सभी पंथों में पवित्रता व स्वच्छता को महत्व दिया गया है लेकिन  हम सिर्फ शरीर व स्थूल स्वच्छता तक ही सिमट कर रह गए हैं। सहज मार्ग में कहा गया है कि हम अपने शरीर को कितना भी स्वच्छ कर लें लेकिन वह स्वच्छ नहीं हो सकता।लेकिन तब भी शारीरिक स्वच्छता महत्वपूर्ण है।हाँ, ये बात है कि मानसिक व सूक्ष्म स्वच्छता शारीरिक स्वच्छता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।मन व सुक्ष्म प्रबंधन महत्वपूर्ण है।



हमारी साधना के विशेष क्षण में गैरिकता तीब्र हुई है।गैरिकता/भगवत्ता परिवर्तन का प्रतीक है। हमारे लिए यज्ञ का मतलब प्रकृति अभियान/अनन्त यात्रा/ब्रह्मांड की निरन्तरता है। हमारा राम वह अग्नि है जो सभी में है, सर्वत्र व्याप्त है। जो दशरथ पुत्र राम से पहले भी सर्बत्र थी, बाद में भी सर्बत्र है।हम वह अपने दिल में महसूस कर सकते हैं।यदि हम सर्वत्रता/सर्वव्यापकता  पर विश्वास करते हैं तो हम विशेष जाति धर्म,मजहब, धर्म स्थल आदि को महत्व न देकर वसुधैव कुटुम्बकम, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, आर्यत्व,मानवता, सेवा आदि को महत्व देंगे। हमारे 'वेदों की ओर लौटो' , 'विश्व को आर्य बनाओ' , 'एक विश्व राज्य' ,'एक विश्व नागरिकता' , 'एक विश्व सरकार' आदि मतलब यही है। इस लिए हम कहते रहे हैं सन्त किसी जाति मजहब के नहीं होते।वे समाज को जाति, मजहब, किसी विशेष धर्म स्थल आदि में नहीं बांटना चाहते। हम, जगत व ब्रह्मांड एक मकड़ी के जाला को तरह है।

22-25 मार्च 2020 ई0 से लॉक डाउन में शुरुआती एक दिन   सरकार के द्वारा महायज्ञ  था। जो प्रकृति अभियान (यज्ञ)  में मानवीय प्रयत्न था। हर घर उसका केंद्र बन गया था। हमारे लिए यह अति महत्वपूर्ण समय था।  घर वापसी को लेकर अनेक लोग परेशान तो हुए लेकिन ऐसा होता है।इतिहास गबाह है-जब दो व्यवस्थाओं /अभियानों का परस्पर संक्रमण होता है तो परिवर्तन का हिस्सा है - सृजन व विध्वंस। ब्रह्मांड व आकाश गंगाए इस बात का गबाह हैं।एक ओर पूरी पूरी आकाश गंगा ब्लेक होल में समा रही है दूसरी ओर नई आकाश गंगाएं बन रही हैं। अपनी आकाश गंगा व अपने ध्रुव तारा में भी हलचल होने वाली है, जिसका प्रभाव इस धरती पर भी पड़ेगा। मानव इस भ्रम में न रहे कि जैविक विकास क्रम में मानव पराकाष्ठा है।

काश, मानव व सरकारों का ध्यान सदैव के लिए लॉक डाउन की ओर जाए। वह लॉक डाउन जो भीड़ मुक्त सहकारिता, सामूहिकता, आत्मिक प्रेम, मानवता, प्रकृति संरक्षण आदि को जन्म दे। जब प्रकृति मुस्कुरायेगी तभी धरती पर जीवन व मानवता सदा मुस्कुरुएगी। सन्तपरम्परा, आश्रम पद्धति, सहकारिता, मानबता ,ग्रामीण सरकार, कृषि व्यवसाय व कृषि उपज की कीमत निर्धारण हेतु किसानों ,वन बासियों को स्वतन्त्रता, परिवार व स्कूल को समाज व शासन की पहली इकाई मानते हुए उसे सभी सरकारी विभागों से जोड़ना आदि  आवश्यक है।अनेक विभाग रखने की आवश्यकता नहीं।बहुद्देशीय नागरिक समितियां बनाने, परिवारों व स्कूलों को तन्त्र व शासन से जोड़ कर विकास, शिक्षा आदि से जोड़ना।हर व्यक्ति का सैनिकीकरण व योगी करण करना। सभी विभाग खत्म कर सिर्फ चार पांच विभाग से कार्य चलाया जा सकता है।यदि जनसंख्या सात गुनी भी हो जाये तो भी प्रबंधन बेहतर हो सकता है। कर्मचारी व नेताशाही पेट पालने के लिए नहीं संवैधानिक व्यवस्था हेतु जान देने के लिए तैयार चाहिए, क्षत्रिय/ साहसी चाहिए। वे तो शूद्र हैं जो सिर्फ अपने व अपने परिवार के पालन पोषण के लिए सब कुछ निम्न से निम्न स्तर पर भी पहुंचने को तैयार हो जाएं।

सवाल: वसु किसे कहते हैं?ध्रुव किसे कहते हैं?विश्व सरकार से उसका क्या सम्बन्ध है?

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