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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

अशोक बिंदु::दैट इज..?!पार्ट17

 बसुधैव कुटुम्बकम!

.................#अशोकबिंदु


सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!

हमारी सभ्यता व संस्कृति मजहबीकरण नहीं सीखाती।

आज से 600वर्ष पूर्व काबा हो या योरुषलम, रोम हो या वोल्गा .....सन्त परम्परा का मजहबीकरण न हुआ था।कोई भी कहीं आ जा सकता था।


हमारे अपने अपने मकान व झरोखे अलग अलग हो सकते है, आसमान को ताकने का मतलब अपने मकान के झरोखे से सिर्फ चिपक जाना नहीं है। #गुरुनानक हम आसमानी यों ही नहीं हो सकते?हममें आसमानी यों ही नहीं उतर सकता? हमारा ये #शरीरपांच तत्वों से बना है। #आकाश/आसमानी तत्व में हम केंद्रित यों ही नहीं हो सकते? 

कक्षा आठ में आते आते हम आत्म अभिव्यक्ति लेखन करने लगे। #किशोरावस्था एक तूफानी दशा होती है। अनेक विकृतियों, छापों, विकारों, प्रतिकूलता आदि के जंगल में #आत्मकेन्द्रण की कोशिसों ने हमें एक अज्ञात/शून्य/आकाश की ओर का आभास कराया है। धर्मस्थलों से जुड़ने के साथ ही प्रकृति के बीच हम आँख बंद कर तुरन्त ही एक अज्ञात आनन्दित दशा के आभास के अस्तित्व की उम्मीद में रहने लगे। इस जीवन तनबल, कुलबल, धनबल, जाति बल, पन्थ बल,जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद आदि के प्रभाव से मुक्त रहे हैं।पूर्व जन्मों का संस्कार था हम होश संभालते ही ध्यान के अनेक क्रियाओं व विभिन्न प्रयोगों से गुजरने लगे।अनुभव में आया कि समाज, समाजिकता से परे स्वतंत्र मन से आत्मकेंद्रित होने से हम आसमानी शक्तियों को अपने अंतर में उतरते देख सकते हैं। गांधी ने कहा है-स्वच्छता ही ईश्वर है। गीता का विराट स्वरूप ,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, सात शरीर व कुंडलिनी जागरण, अनन्त यात्रा को ओर, नए भारत की खोज,क्रांति बीज आदि पुस्तकों ने हमें समाजिकता से परे मानवता, आध्यत्म की ओर की प्रेरणा को विश्वस्त किया। #शांतिकुंज,#आर्यसमाज,#निरंकारीसमाज आदि का प्रभाव बचपन में रहा ही जहां हम जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जाति गत #पुरोहितवाद की भावना से मुक्त होने का अवसर मिला।



धर्म स्थलों में हम आश्रम पध्दति, गुरुद्वारा को ही महत्व देते रहे हैं।साहित्य मजहबी करण, कर्मकांड आदि से मुक्ति युक्त।


वसुधैव कुटुम्बकम!

ये भाव कहाँ से आता है?गीता में #समदर्शी का भाव आता है।#बुद्ध व #महावीर के दर्शन से हमें ये भाव प्राप्त होता है।

हम किस कर्मकांड, जिस पन्थ से जुड़े हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है कि हमारा हमारे शरीर व जगत के प्रति क्या नजरिया बन रहा है?

हमारी #धारणा अति महत्वपूर्ण है।


हमारी धारणा सार्वभौमिक ज्ञान हो। #सहजमार्ग #राजयोग में हम सर्वोच्च अन्नतजगत की धारणा स्वीकार कर प्रयत्न शील रहते हैं।

#शेष


#अशोकबिंदु


@अशोकबिंदु::दैट इज..?! पार्ट01....n!!

www.ashokbindu.blogspot.com


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