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बुधवार, 23 दिसंबर 2020

क्रिसमिस की पूर्व संध्या पर/अपने झरोखों से पूर्णता की ओर झांकिए::अशोक बिंदु



 

नजर भी तीन तरह की होती है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।

इन तीनों में भी प्रथक प्रथक अनेक स्तर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक बार कहा था- पूर्णता की नजर से देखिए।

जगत में जो भी दिख रहा है प्रकृति है। हमारा जीवन भी प्रकृति है। जिसके तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। इसके अलावा दुनिया में जो भी दिख रहा है, वह बनाबटी, कृत्रिम, मानव निर्मित, पूर्वाग्रह, संस्कार, छाप, अशुद्धियां आदि हैं। इसलिए हम कहते रहे हैं-पूंजीवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद, पुरोहितवाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जातिवाद, मजहब वाद, धर्मस्थलवाद आदि से मुक्त को देखना, सुनना व करना शुरू कीजिए। इसके अभ्यास में रहिए।


अपने को किसी जाति या मजहब या किसी धर्म स्थल से बांध कर यदि जीवन जीते हो तो इसका मतलब है कि आप प्रकृति अभियान के खिलाफ हो,हममें व प्रकृति में जो स्वतः निरन्तर है हम उसके खिलाफ हैं।

अब जो ईसाइयत का विरोध करते है, वे उसमें सनातन को नहीं खोज पाते। अब जब कोई ईसाइयत में सीने पर दोनों ओर छुह कर ,माथे को छुह अपने हाथ को चूमता है तो क्या ये सनातन के खिलाफ है ?अनेक लोगों ने सनातन व धर्म को कर्मकांडों से दूर रखने को कहा है।सनातन व आध्यत्म सुप्रीम साइंस है। जो शरीर के चक्रों व ऊर्जा के बिंदुओं के बारे में  परिचित हैं, उन्हें जानकारी होगी उन्हें पता होगा कि हृदय चक्र /अनाहत चक्र के ऊपर भी अनेक बिंदु होते है और दोनों भौहों के बीच भी एक चक्र होता है, जिसे तीसरी आंख भी कहा जाता है।


विद्वानों के हिसाब से भक्ति के दो कारण हैं-भय व अनुशीलन। किसी ने कहा है कि भीड़ का धर्म नहीं सम्प्रदाय व उन्माद होता है।धर्म सिर्फ व्यक्ति का होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई खुद को नास्तिक मानता है या आस्तिक?अपने को हिन्दू मानता है कि ग़ैरहिन्दू?मुस्लिम मानता है कि गैर मुस्लिम?कबीर पंथी मानता है या गैर कबीर पंथी?आदि आदि।महत्वपूर्ण है कि उसकी दिनचर्या, आदतें, अभ्यास उसे किधर ले जा रहा है? वह क्या अनुभव कर रहा है?क्या महसूस कर रहा है?क्या आचरण कर रहा है?


क्रांतिकारी भगतसिंह के पत्र पढ़िए।वे कहते हैं कि हमारी नास्तिकता को सहज ज्ञान ने ओर मजबूत कर दिया है। हम यथार्थवाद पर विश्वास करते है। योग के आठ अंगो मेँ से पहला यम का पहला चरण-सत्य है।हम कहेंगे कि योग की शुरुआत सत्य से होती है। 


हमें ऋषि परम्परा /नबी परम्परा ही सनातन लगती है।जो हमें प्रकृति अभियान से जोड़ती है। हम सब का वर्तमान सत्य सत्य नहीं भ्रम है।भूख, प्यास, झूठ, लोभ लालच, काम, हिंसा, खिन्नता, भेद, ईर्ष्या, जाति, मजहब ,चापलूसी, हाँहजूरी आदि है। हम ने जो शब्द प्रयोग करते हैं उसके पीछे की स्थिति से हम अनजान हैं।उसके सूक्ष्म व कारण से अनजान है। समाज में अनेक शब्द प्रयोग किए जाते हैं। जिनका भाव ही इंसान ने खो दिया है। धर्म वीर भारती ने तो क्राइस्ट, कायस्थ, क्रष्ट, कृष आदि शब्दों की उत्पत्ति प्राचीन मूल आर्य भाषा से ही मानी है।जिसका संकेत आत्मा या आत्मा से जुड़ने से माना गया है।

एक मनोवैज्ञानिक ने तो क्रिसमिस ट्री, कल्प वृक्ष, काम धेनु को हमारे अचेतन मन/अवचेतन मन/हमारी धारणा शक्ति से माना है। मनोवैज्ञानिक बुल्फ़स मैसिंग ने तो पूरा जीवन धारणा शक्ति के प्रयोगों व अनुशीलन पर लगा दिया था। जो अपनी धारणा से दूसरे की भी धारणा बदल देता था।

#अशोकबिन्दु


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