Powered By Blogger

शनिवार, 22 सितंबर 2012

दधीचि जयन्ती : सत्ता दंश

किसी ने कहा है कि जगत को विकारयुक्त करने के लिए पूँजीवाद और सत्तावाद दोषी है . सत्ता रुपी इन्द्र वैसे तो सुरा अप्सरा मेँ व्यस्त रहता है लेकिन जब उसका सिंहासन हिलता है तो दधीचि की अस्थियां तक लेने को दौड़े चले आते हैँ .

आचार्य चतुरसेन अपने रचित वयं रक्षाम : पुस्तक मेँ 19 इन्द्र पर लिखते हैँ कि इन्द्र ने नारद और दूसरे मित्रोँ की सहायता ले देवभूमि मेँ एक नई वैदिक संस्कृति की नीव डाली . यद्यपि इन्द्र का यह प्राधान्य आदित्योँ को पसन्द न था . परन्तु इन्द्र एक खटपटी और धूर्त व्यक्ति था . उसने मान पुरस्कार देकर आदित्योँ को अपने अनुकूल बना रखा था . इन्द्र का राज्य दैत्योँ और दानवोँ की राज्य सीमाओँ से लगा हुआ था , जो काश्यप सागर तट पर दूर तक फैले हुए थे .बेबीलोनिया जाति के जत्थेदारोँ से इन्द्र की मित्रता थी .ईरान व पाक ही कभी देवलोक रहा होगा .
दैत्य दानव देव आदि सब कश्यप की ही सन्ताने थे .सत्तावाद ने इन सबके बीच खाईंयां पैदा कीं .और कुल व जन विभिन्न जातियोँ मेँ बदल गये .

----------
Sent from my Nokia Phone

कोई टिप्पणी नहीं: