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रविवार, 1 जुलाई 2012

जाति तोड़ो समाज जोड़ो !

देश के अंदर विभिन्न अवसरों पर जातिवाद का असर स्पष्ट दिखायी देता आया है.उप्र मेँ इस वक्त स्थानीय निकाय के चुनाव का दौर है.कुछ मतदाता कहते नजर आते हैँ कि अपनी बेटी व अपना वोट अपनी बिरादरी बालोँ को ही देना चाहिए.इसी तरह जब यहाँ बेटियां सयानी हैं तो उनके पिता उनके लिए रिश्ता देखने अपनी बिरादरी मेँ ही जाते हैँ .क्योँ न उन्हेँ अपनी बेटियोँ के लिए अपनी बेटियोँ के अनुरुप उचित वर नजर न आ रहा हो.चुनाव व शादी के अवसरों के अतिरिक्त अन्य अवसरों पर जातिवाद नजर आता है.जातिवाद के मद्देनजर व्यक्ति को गैरजाति के व्यक्तियोँ के पक्षपात व अन्याय करते तक देखा गया है.ये उपर्युक्त व्यवहार क्या भारतीय संविधान के अनुरुप व देश समाज मेँ एकता लाने वाले होते हैँ .यदि नहीँ तो फिर क्या देश मेँ संविधान का उल्लंघन करने वालोँ बहुलता नहीँ है ?यदि ऐसा है तो इन्हेँ अपराधी मान कर सरकारी सुविधाएं पाने का अयोग्य क्योँ न माना जाए?देश के अंदर जाति विरोधी मुहिम युवकोँ को शुरु करना चाहिए.आर्यसमाज,कबीर पंथ आदि संस्थाओँ को इस मुहिम मेँ आनाचाहिए.सवर्ण वर्ग तो इस मुहिम मेँ शामिल हो नही सकता क्योँ न वह जातिगत आरक्षण का विरोधी हो ?

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