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गुरुवार, 9 अगस्त 2012

श्रीकृष्णजन्माष्टमी : काहे की कृष्णभक्ति ?

भक्तोँ की कमी नहीँ लेकिन धरती पर भक्ति संतुष्ट नहीँ .उसके पुत्र
वैराग्य व ज्ञान उपेक्षित व कमजोर पड़ ही चुके हैँ .भक्ति भी विछिप्त हो
चुकी है .बिन वैराग्य व ज्ञान के स्वस्थ भक्ति कहाँ ?आज के भक्त भक्ति की
आड़ मेँ शारीरिक व ऐन्द्रिक लालसाओँ मेँ ही लीन हैँ.


श्रीकृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर मैँ कहना चाहूँगा कि महापुरुषोँ को ताख
या लाकेट मेँ लटकाने व उनकी तश्वीरोँ के सामने धूपवत्ती व आरती दिखाने से
क्या लाभ जब हम उन महापुरुषोँ की शिक्षाओँ के विपरीत खड़े हैँ ?मेरा तो
यही मानना है कि महापुरुषोँ ,धर्म व अध्यात्म के आधार पर चलने का मतलब है
-माया,मोह,लोभ व काम पर नियंत्रण .बात है मेरी ,मैँ न महापुरुष हूँ न
धार्मिक व न ही आध्यात्मिक.मैँ साधक बनने के प्रयत्न मेँ हूँ .योग के आठ
अंगोँ मेँ से प्रथम दो अंग यम व नियम अतिआवश्यक हैँ .

श्रीकृष्णभक्तोँ से मैँ कहना चाहूँगा कि लाशोँ व निर्जीव वस्तुओँ के लिए
रोना बंद करो .श्रीकृष्ण जीवन भर मुस्कुराए हैँ रोए हैँ तो सुदामा की दीन
दशा पर रोये है .यदि श्रीकृष्ण के सच्चे भक्त बनना चाहते हो तो किसी को
भी न अपन समझो न पराया .मेरा अनुभव कहता है कि जितना हम धर्म से जुड़ते
जाएंगे उतना भीड़ से दूर होते जाएंगे .भीड़ मेँ हम अभिनयमात्र रहेगे .जब हम
अपने को जान जाएंगे तो हम भी लीलाधर हो जाएंगे .

@ यदुवंशियोँ से निवेदन @
पुराणोँ का अध्ययन करेँ तो वंशावलियोँ से ज्ञात होता है कि चंद्रवंश
अर्थात यदुवंश से अस्सी प्रतिशत पिछड़ी व जनजातियां सम्बंधित है.जिनका
इतिहास गौरबशालीभारत का इतिहास है .अब फिर वक्त आना है जब यदुवंश का शासन
देश मेँ स्थापित हो सकता है लेकिन कैसे ?श्रीकृष्ण की शिक्षाओँ को आचरण
मेँ लाते हुए परोपकार व ईमानदारी की भावना लानी होगी ,कुप्रबंधन व
भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान मेँ सहयोग करना होगा .कालाधन वापस भारत लाने
के लिए आन्दोलन छेड़ना होगा ,सेक्यूलरवाद को स्वीकार करते हुए पुरातत्विक
स्रोतोँ के सच को स्वीकार करना होगा .लोहिया का "जाति तोड़ो समाज जोड़ो
"आन्दोलन को आगे बढ़ाना होगा .

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