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शुक्रवार, 19 जून 2020

अशोकबिन्दु भईया ::दैट इज...?!पार्ट न06


चिंतन, मनन, कल्पना, स्वप्न, लेखन, स्वध्याय, मेडिटेशन हमारे जीवन का हिस्सा हो गया।


विज्ञान प्रगति, आविष्कार जैसी वैज्ञानिक पत्रिकाओं का अध्ययन व उसमें -'हम सुझाएँ आप बनाएं' के अंतर्गत मन सक्रिय हो गया था।

एक बार समाचार आया था कि अनुसंधान केंद्रों में वैज्ञानिकों ,कर्मचारियों की कमी है।

 हम सोचते रहे हैं - हमारे आसपास अनेक विज्ञान विषय के छात्र व अध्यापक उपस्थित हैं लेकिन उनका सोच, चिंतन, नजरिया ,विचार ,भावना आदि वैज्ञानिक नहीं है। तो ऐसे में कैसे अनुसंधान शालाओं की नियुक्तियां भरें ?अभिभावक भी अपने बच्चों को सिर्फ घरेलू व कमाऊ पूत के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन हमारा ऐसा नहीं था ।हम इंटर तक संस्थागत वैज्ञानिक छात्र थे ।नजरिया ,मनन ,कल्पना, सत्य से भी वैज्ञानिक थे ।लेकिन हममें हालातों से संघर्ष करने का चाहत न था और फिर इस मामले में हम देश की व्यवस्था से शिकायत रखते हैं । किसी के वैज्ञानिक होने के लिए ,किसी को शोध में अवसर देने के लिए इस देश के मानक ही गलत हैं। अब जरूरी नहीं है कि शोध, आविष्कार आदि के लिए वही व्यक्ति सफल है - जिसके स्नातक में 50% से ऊपर और स्नातकोत्तर में 55% से ऊपर अंक हो । अंको का खेल खत्म होना चाहिए ।अभ्यार्थी के चिंतन, मनन ,नजरिया ,आचरण,उसका उत्साह ,खोज की प्रवृत्ति ,अन्वेषण की प्रवृत्ति आदि महत्वपूर्ण होनी चाहिए। हमने देखा है - देश के अंदर ऐसे भी कैंडिडेट हैं जो स्कूली शिक्षा से दूर हैं लेकिन उनमें प्रतिभाएं हैं । वे किसी नई वस्तु का आविष्कार कर सकते हैं ,वे  एशिया और ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वालों से कम नहीं है ।हमें दुख होता है- भारत के सिस्टम से ,अफसोस ! इस संबंध में मेरे पास अनेक घटनाएं भी हैं ।



हमने कभी न सोचा था - सरकारी नौकरी ऐसी करें जहां हमारी कल्पनाशीलता ,चिंतन ,मनन आदि रुक जाए । जीवन तो विकास शीलता है, विज्ञान का कभी अंत नहीं होता, विज्ञान कभी विकसित नहीं होता। वह भी निरंतर होता है ,विकासशील होता है। लेकिन रास्ता कक्षा 11 में आकर तब बिगड़ गया जब बायो ग्रुप में न जाकर मैथ्स ग्रुप में आ गया। उससे तो अच्छा था -मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र ,खगोल विज्ञान ,अंतरिक्ष विज्ञान आदि विषयों के साथ हम जो थे हमारे रुचि के  , लेकिन ये विषय नगर में ही न थे, नगर की छोड़ो कुछ विषय तो प्रदेश में ही न थे।

 खैर.....!?

2 महीने के मानसिक खींचतान के बाद हमने कक्षा 12 के बाद आर्टग्रुप में प्रवेश कर लिया यह हमारी दूसरी भूल थी आर्ट ग्रुप में आ तो गए थे लेकिन यहां पर भी हमारे विषय जो हुए वे हमारे न थे।

 अब याद आ रहा था -गृह त्यागी।
 विद्यार्थी के 5 लक्षणों में से 1 लक्षण- गृह त्यागी !

लेकिन.....


अगस्त 1990 ईस्वी !

 B.a. प्रथम वर्ष में हम नए 2 विद्यार्थियों के संपर्क में आए -नरेश राठौर और छत्रपाल पटेल। इस दौरान सुनील संवेदी ,राजेश भारती से भी मिलना जुलना बड़ गया । हालांकि ये दोनों हम से जूनियर थे। कभी कभार प्रभात रंजन नाम का लड़का भी मिलने चल चला आता था लेकिन हम उससे मिलना नहीं चाहते थे।

 उस समय देश के प्रधानमंत्री थे- विश्वनाथ प्रताप सिंह।

 वे देश के आठवें प्रधानमंत्री थे।
 उन्हें भारत की पिछड़ी जातियों में सुधार करने और सामाजिक न्याय की कोशिश के लिए जाना जाता है ।उस वक्त पढ़ा-लिखा पिछड़ा वर्ग उनसे काफी प्रभावित था। इन से पूर्व देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। इनका कार्यकाल 2 दिसंबर 18 सो 89 से 10 नवंबर 1990 तक रहा।

कुछ भोजपुरी जोकि गन्ना सोसाइटी में सुपरवाइजर थे -अरुण सिंह , उमेश राय आदि हमसे कहते रहे थे-बनारस या इलाहाबाद निकल जाओ ,कामयाब हो कर लौटोगे ।तुम्हारी अंदरूनी हालात , समझ अच्छी लगती है।

 लेकिन....

 लेकिन - वेकिन!
 परंतु -वरंतु!

 हूं......

 उन दिनों हमारी खास रचना थी--

 अब क्रांति होगी,
 रोशनी फिर तेज मानव के मशाल में होगी;
 अब क्रांति होगी ।
कृष्ण की भूमिका निभाएगा विश्व में भारत ,
अब क्रांति होगी ।


हमारा माइंड - विश्व सरकार, वसुधैव कुटुंबकम, विश्व बंधुत्व, दक्षेस सरकार आदि को लेकर एक साझा मंच में जीने लगा था। जिसमें सभी आधार आध्यत्म शक्तियां ,मानवतावादी संगठन एक मंच पर थे।

 उन दिनों छत्रपाल पटेल ,नरेश राठौर आदि के साथ आर्य समाज संस्था में आना जाना तेज हो गया था ।
लेकिन एक बार हमें ताज्जुब हुआ- दिल्ली से आए एक प्रचारक ने जब हम सब को बताया- धरती पर मानव की उत्पत्ति गाजर मूली की तरह हुई है ।मानव लाखों वर्ष वनस्पति व जंतु के बीच एक कड़ी रहा है। हमें इस ज्ञान पर ताज्जुब होता है। हमारे मस्तिष्क ने इसे स्वीकार नहीं किया और किसी ने भी इसे स्वीकार नहीं किया था।

 अब हमारी शिक्षा मात्र, स्कूली शिक्षा खानापूर्ति हो गई थी।
 हमारा हेतु डगमगा गया था ।
रास्ता तो और था चल और पर रहा था ।
हमने अपना ध्यान स्वाध्याय, लेखन ,प्रकृति के बीच आना जाना, मेडिटेशन आदि पर जरूर लगा रखा था।
 जयशंकर प्रसाद ,मुंशी प्रेमचंद्र, धूमिल ,फणीश्वर नाथ रेणु आदि का पूरा साहित्य कालेज पुस्तकालय से लेकर पढ़ लिया था ।

स्नातक के 3 वर्ष हमारे वर्तमान में सिर्फ यूं ही गुजर गये बिना किसी लगनता ।

हमारा मकसद तो इंटर करने के बाद नगर छोड़ने के बाद ही आगे बढ़ना था लेकिन ऐसा न हो सका।

 देखा जाए तो स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम प्रति कर्मठता हाईस्कूल तक ही रही ।इसके बाद हमारी शिक्षा मात्र खानापूर्ति रह गई थी ।जो था उससे दूर था।
 देखा जाए तो हम अकेले पड़ने लगे थे।
 कहने के लिए परिवार ,पास पड़ोस ,समाज ,स्कूल, सहपाठी ...लेकिन हम जो अपने जीवन में चाहते थे उस मामले में हम अपने जीवन में अकेले हो चुके थे।

 ऐसे में पुरानी आदतें -स्वाध्याय, लेखन, मेडिटेशन ,प्रकृति के बीच रहना, छोटे बच्चों के बीच रहना और बढ़ गया था।




मई-नबम्बर 1993ई0!

इन दिनों  हम एक साधना कर रहे थे- हम अपने अतीत को कैसे जाने ?पिछले जन्मों को कैसे जाने? इसकी प्रेरणा हमें बौद्ध धर्म के जातक कथाओं से मिली थी। इसके प्रति जब कुछ सहज होना शुरू हुआ तो हमें सोनभद्र और सोनभद्र के आस पड़ोस में पहाड़ियों और एक तालाब का दर्शन हुआ ।इससे पहले हमने अभी तक सोनभद्र का नाम नहीं सुना था ।हम अपने किसी पूर्वज के  साथ एक रथ पर सवार थे और कोई हमारा पीछा कर रहा था। आगे चलकर हमने जानकारियां एकत्रित की पूर्व डीआईजी एवं पीलीभीत लोक सभा से जनता दल की ओर से प्रत्याशी महेंद्र सिंह से भी वार्ता हुई। हमें कुछ जानकारियां ऐसी मिली ,कुर्मी क्षत्रिय के लिए अनेक गढ़ हैं, चित्रकूट के पास पटना के पास भी। उनका कहना था कुर्मी क्षत्रियों का भी अपना गौरवशाली अतीत है ।


हमने एक सपना और देखना शुरू किया था जो हमें बार-बार अपने किसी पूर्वज के साथ कर्नाटक कोलार मैसूर के जंगलों में ले जाता था। आगे चलकर हमने इस पर शोध किए जानकारियां एकत्रित की ।वह चौंकाने वाली थी ।इस पर हम कभी भविष्य में लिखेंगे ।

b.a. तृतीय वर्ष फाइनल की परीक्षा के बाद एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में बीएड प्रवेश परीक्षा देने आया ।
भाई अवनीश ने उन दिनों बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी वह उसी कॉलेज में छात्र था और वहीं पड़ोस में अजीजगंज में रह रहा था ।हमें उम्मीद नहीं थी हम B.Ed प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर पाएंगे। b.a. फाइनल का रिजल्ट आने के बाद हमने अर्थशास्त्र विषय से एम ए प्रथम वर्ष में एडमिशन करा लिया ।

अक्टूबर में हमें B.Ed में एडमिशन करवाने की सूचना मिली ।

बीएड संकाय एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में जब हम पहुंचे तो विभागाध्यक्ष आकुल जी के व्यवहार से हमका काफी प्रभावित हुए। वैसे तो  हमारी इच्छा B.Ed में एडमिशन की न थी लेकिन फिर भी आकुल जी से करीबी बढ़ने की संभावना से हमने B.Ed में एडमिशन करा लिया और एक ही विचार था की संभावनाओं के नए रास्ते शायद मिल जाए ?यहां नागेश पांडे संजय से परिचय हुआ। यहां के प्राकृतिक वातावरण में हमें मेडिटेशन को और अवसर दिया। इस दौरान- शिक्षा में क्रांति, शिक्षा में प्रयोग, नए भारत की खोज.... आदि पुस्तकों व आकुल जीके संबोधनों ने हमारी समझ को और विस्तार दिया ।मन में जो विचार उठते थे उन्हें व्याख्या मिली।


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