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बुधवार, 17 जून 2020

अशोक बिंदु भईया : दैट इज...?! पार्ट 05

क्लासेज सिस्टम में हमारे पास जो विषय थे, उनमें हमें विज्ञान व जीवविज्ञान में रुचि थी।इतिहास के प्राचीन काल खंड में भी।

हाईस्कूल 1998 परीक्षा के बाद जब हमने स्वमूल्यांकन किया तो पता चला, वही के अनुसार अंक प्राप्त किए।

उस समय प्रथम श्रेणी आना बड़ा मुश्किल होता था।
जब हमने सामाजिक विज्ञान,जीवविज्ञान में 60% से ज्यादा अंक प्राप्त किए तो इस पर कुछ अध्यापकों को विश्वास न हुआ। क्योंकि हमारा व्यक्तित्व असामान्य था और बोलचाल भी नाममात्र की थी ।लेकिन ए अध्यापकों में मूल्यांकन हीनता ही थीl

 पहले भी और अब भी देखते हैं कुछ बच्चे उनकी नजर में नहीं होते यहां तक की उपेक्षित भी होते हैं। बे उनसे भी ज्यादा बेहतर स्थिति में थे जिन्हें वे महत्व देते थे। इस विषय पर कभी बाद में लिखेंगे ।

अब हम कक्षा 11 में एडमिशन लेने जा रहे थे ।

अपनी निजता, स्व, आत्मा, अंतर ता आदि से दूर होना हमारा शत्रु है ।हमें कक्षा 11 में बायो ग्रुप ही लेना था जो बिल्कुल तय था। लेकिन एक सहपाठी सर्वेश सिंह कुशवाहा के साथ हमने मैथ्स ग्रुप में एडमिशन करा लिया। उसका साथ तो ठीक था लेकिन उसका फैसला हमारा न था । यहां से हमारे दो रास्ते बनने लगे। हम दो माइंड होने लगे। मन में कुछ और तन में कुछ और.... ऐसे में फिर हमें अंतर्मुखी होना  पड़ा ।

अभी तक सब सही था ।
दुनिया वही थी, परिवार वहीं था, पास पड़ोस वही था लेकिन तब भी सब कुछ बदलना शुरू हो गया था।नजरिया बदलता है तो दुनिया भी बदलती है। यह बदलाव जिधर जाना चाहिए था उधर न था।


आंख बंद करने पर ही सब कुछ ठीक था ।
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पेड़-पौधे, बच्चे ,स्त्रियां, प्रकृति में आकर्षण तो हो सकता है लेकिन  ये आकर्षण की धारा और कहीं से कहीं और जगह जाती है ।कुछ कुछ अनुभव होने लगा था ।

हमारी ओर से विपरीत लिंग आकर्षण किसी के लिए कष्ट देने नहीं जा रहा था ।किसी का चरित्र हनन करने नहीं जा रहा था। लेकिन हमें अवश्य उलझा रहा था ।

पेड़ पौधे ,बच्चे, स्त्रियां, पुस्तके आदि प्रकृति के संग सहचारी का हेतु तो कुछ और है जो एक पागल पथिक ही जान सकता है। अनंत यात्रा ,सच्चिदानंद यात्रा  को महसूस करने वाला ही जान सकता है ।
कुछ है- अदृश्य!
 स्त्री जाति से संबंध की सीमाएं व मर्यादा जातियों - मजहब आदि की भावनाओं में खत्म नहीं हो जाती।
 ये क्या है?
 वह मर जाती है और फिर वह अपने प्रेमी के मां की कोख में जन्म लेकर अपने प्रेमी के ही पास आ जाती है।
क्या है ये?
 ये क्या प्रेम?
प्रेम एक बेनाम रिश्ता है। समाज की निगाहें कितनी गलत है ?लड़का लड़की के बीच के अज्ञात संबंधों को समाज अपनी धारणा के आधार पर गलत अज्ञात या गलत प्रचार या गलत ज्ञान या गलत विचार क्यों बना देता है ?
धन्य ,समाज !
जो पवित्र प्रेम को कलंकित करता है । जिसमें लड़के लड़कियां प्रेम को शारीरिक आकर्षण समझ बैठते हैं ।

हम उस दौरान ही महसूस करने लगे थे- प्रेम तो वह दशा है जो हमें वह दशा देती है जो हमें मन से सब के प्रति सद्भावना सब का सम्मान करना सिखाती है ।

ये विविधताएं  तो हमारे लिए विभिन्न मर्यादा खड़ी करती है बस ।हमारे लिए कर्तव्य पर खड़ी करती हैं बस।
 ये सब आंख बंद कर बैठने से सब ठीक था ।
लेकिन खुले आंखों  हम बनाबटी दुनिया के बीच भ्रम शंका भय प से ग्रस्त थे। मनुष्य द्वारा निर्मित बनावटी पूर्वाग्रह छापे अशुद्धियां आदि हमें परेशान कर देते थे । उन दिनों हम सामाजिक लोकतंत्र ,आर्थिक लोकतंत्र ,सामाजिक न्याय आदि के संबंध में भी सजग होने लगे थे ।

कटरा - तिलहर से सत्यपाल सिंह यादव के माध्यम से हम कॉलेज के कुछ मुस्लिम लड़कों के माध्यम से राजनीति में भी सक्रिय हो गए थे। उस वक्त से ही हम अपने पिताजी श्री प्रेम राज वर्मा के माध्यम से कटरा में श्री हरिशंकर गुर्जर का नाम  सुनते रहते थे लेकिन क्या पता था एक दिन कटरा हमारे कर्म स्थली बनेगा? उस समय हमारा विचार अभी भी हमारा विचार रहा है हमें सरकारी नौकरी नहीं करनी है ।संघ की शाखाओं से हमने जाना है महसूस किया है सरकार, सरकारी संस्थाएं समाज और प्रकृति से बढ़कर नहीं हो सकती ।हम उस वक्त सिर्फ लेखन, समाज सेवा, राजनीति ,स्वरोजगार आदि पर ही सोचते थे। लेकिन परिवार के हालातों ने विशेष कर पिता जी के निर्णयों ने हमें यहां ला पटका। जुलाई 1996ई0 में हम घर छोड़ चुके थे।



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