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बुधवार, 21 अप्रैल 2021

शिक्षा में आत्म प्रतिष्ठा / आत्म प्रबन्धन की अपूर्णता::अशोकबिन्दु

 सन्दर्भ::स्वतंत्रता है आत्मा::अरविंद घोष

           :: शिक्षा कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है::दाजी

           :: जो जिस स्तर का है, उसे उस स्तर से ही शुरू करने के साथ अभ्यास में रहना चाहिए। तभी सामर्थ्य बढ़ती है। अनन्त प्रवृतियों से जोड़ती है::भीष्म पर्व, महाभारत

             




हम से जब पूछा जाता है कि सबसे बड़ा भृष्टाचार क्या है तो हमारा जबाब होता है -शिक्षा।

शिक्षा में बाल मनोविज्ञान व शैक्षिक मनोविज्ञान का बड़ा महत्व है। कब,क्यों,किसलिए, कैसे, कहाँ, किसके साथ कैसा व्यवहार दिया जाए?यह महत्वपूर्ण है।ऐसे में ज्ञान के प्रति सम्मान या तटस्थता या रुचि आवश्यक है। 


किसको शिक्षित करना है?जो शिक्षित करना है वह कौन है?

पौराणिक कथाओं से स्पष्ट है कि कोई जब शिक्षा प्राप्त करने जंगल/आश्रम जाता था तो सर्वप्रथम उसे इस पर ही केंद्रित किया जाता था कि -तुम कौन हो?हम कौन हैं? इसके बिना शिक्षा की शुरुआत निम्न स्तर की ही रहती है जो भ्रष्टाचार को ही जन्म देती है।


सहज मार्ग में चारी जी कहते है कि किसी की आत्म प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचाए बिना शिक्षा असम्भव है।व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आचरण आदि के आधार पर उसे उपेक्षित, नजरअंदाज, अपमानित करना आदि सरासर गलत है।वह जिस स्तर से है, उस स्तर से ही उसे आगे बढ़ने के अवसर देने की आवश्यकता होती है।

कोई हमारे हिसाब से नहीं है इसका मतलब ये नहीं है उसका अपमान करना, उसकी  उपेक्षा करना नहीं है, उसका सम्मान  न करना।

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