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रविवार, 25 अप्रैल 2021

अशोकबिन्दु ::दैट इज...?!पार्ट-21/एक ऊर्ध्वाधर वातवरण बनाने की जरूरत!!

 आश्रम व यज्ञ शालाएं बनाने के पीछे क्या करना थे?

शिव केंद्र ,गिरिजा केंद्र, गुरुद्वारा के क्या उद्देश्य थे?

अकबर के दरबार में किसी दरबारी के गुरु की क्या हालत थी?!



महात्मा गांधी ने कहा था कि वातवरण ऐसा होना  चाहिए कि कोई गुंडा भी मनमानी न कर सके।

हम  अपने बचपन में लौटे हैं तो पाते हैं कि उस वक्त धरती का वातवरण आज से बेहतर था। हम जिधर भी निकल जाते थे उधर बाग बगीचों की भरमार थी। लोगों के बीच उदारता, सेवा का भाव था।जो हमारे अभिवावकों आदि के दुश्मन भी माने जाते थे, वे भी हम बच्चों से लाड़ दुलार में नजर आते थे।आज तो पता ही नहीं चलता कि कोई हमसे खुंदक क्यों खाये बैठा है? 

अकबर के दरबार में क्या होता है?किसी दरबारी के गुरु खमोश थे। अब वे क्या बोलें?वे तो वर्तमान में रहें, यथार्थ में रहें,सत्य में रहें। तीन दिन बीत गए वह कुछ न बोले तीसरे दिन बीरबल ने दरबार में चर्चा करना शुरू किया।तब बीच बीच में गुरु जी बोलने शुरू हो गए।लोग धीरे शांत होते  गए।गुरु जो को बोलने का अवसर देने लगे। गुरु जी बोलते रहे। समाज में, संस्थाओं में होता क्या है?लोग सामने वाले के समक्ष ऊंची आबाज में बोलते हैं, चीखते हैं, सामने वाले को बोलने को अवसर नहीं देते, इसकी बात को काटने की कोशिश करते हैं, मजाक में बात को टालने की कोशिश करते हैं।शरणागति कहाँ पर है?नजीरया कहाँ पर है?समर्पण कहा पर है?अनेक तो टाइम पास चाहते हैं, खाना पूर्ति चाहते हैं। बस ,साहब के सामने या अपने अहंकार को स्थापित करना चाहते हैं। 

यथार्थ में जीने का मतलब क्या है?सत्य में जीने का मतलब क्या है?हमारे वर्तमान का मतलब क्या है? हम चाहें जिस स्तर पर भी हों, हमारी समझ चाहें जिस स्तर पर भी हो,हमारी चेतना चाहें जिस बिंदु पर भी हो.... उस बिंदु, उस स्तर पर रहकर जो पैदा होना शुरू हो रहा है, उसकी अभिव्यक्ति को सम्मान मिलना चाहिए। एक छोटा बच्चा होता है, उसका स्तर क्या होता है?वह अपने स्तर के आधार पर ही बात कहता, आचरण करता है, तुतलाती भाषा में जो बोलता है ,हम उसे स्वीकार करते हैं। उसके प्रति ईमानदारी, उस का सम्मान कब है?उसका मजाक उड़ाकर?उसको चिड़ाकर....?! 

टांग खिंचने वालों की तो कमी नहीं, हर मूर्ति के प्राणप्रतिष्ठा को अवसर नहीं।सामने वाले में बुराइयों को देखने की नजर तो पैनी लेकिन सामने वाले की अच्छाइयों को देखने नजर पैनी नहीं। यह पैनी नजर क्या है?आध्यत्म में पैनी नजर से मतलब है- अपने ,अन्य व जगत के पूर्णता-स्थूल, सूक्ष्म, मनस,कारण आदि को भी देखने की क्षमता।

उस दिन की बात है, कमरे के अंदर एक चूहा मरा।हम चूहे की प्रकाश आकृति को कमरे में लगभग दो तीन फुट  ऊंचे पर उड़ते देख रहे थे। इस नजर को क्या कहेंगे?


ज्ञान के साथ भी क्या हो रहा है?सम्विधान के साथ भी क्या हो रहा है?कुल,समाज, पास पड़ोस,संस्थाओं के खास, वरिष्ठ, पदाधिकारी के बीच क्या हो रहा है?एक जिसमें ज्ञान पैदा होता है, सम्विधान पैदा होता है, चिंतन मनन, कल्पना, नजरिया का, भावना का हिस्सा हो रहा है, कल्पनाओं  में आ रहा है... वह की क्या स्थिति होती है?उसका क्या कैसा सम्मान होता है? देश विश्व तक माफिया, पक्ष या विपक्ष, पूंजीवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद से तन्त्र ग्रस्त होता जा रहा है। 

हम यही देख रहे हैं-वार्ड, गांव, विभिन्न संस्थाओं में दबंग ,जाति बल, चापलूस, हाँहजुर, चाटुकार, नियमों के खिलाफ अनेक विकल्प खड़े करने वाले आदि  सिस्ट्म का हिस्सा हैं।यह हाल अभी से नहीं है, आदि काल से है। ऐसे में गुप्त साधनाओं,प्रयत्नों का ही महत्व बढ़ जाता है।हमें सिर्फ भगवान(एक स्थिति/व्यवस्था) व कर्म(कर्तव्य) प्रति भी भी खामोशी से प्रयत्न शील रहना चाहिए।तीसरे पक्ष की नजर में चालाकी रखने की जरूरत है।


आज की तारीख में जहां हमने सम्मान के साथ सुनने ,हमारे विचारों को स्वीकारने, हमारे समकक्ष वैचारिक वातावरण, आदि को पाया है वहाँ हमारी क्षमता स्वतः उजागर हुई है। यह तो होना ही चाहिए कि कहां पर यथार्थ की स्वीकारता है जो हमें व अन्य को अपने वर्तमान स्तर से ऊपर उठने का अवसर दे?


अफसोस, आज कल माफियाओं, नशा व्यापार, खाद्य मिलावट, विपरीत लिंगाकर्षण विषयों आदि के खिलाफ कोई मुहिम नहीं चलाना चाहता।धर्म ,कानून, समाज सेवा आदि के ठेकेदार भी अंगुलिमानों की गलियों में जाना नहीं।चाहते।

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