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शनिवार, 10 अप्रैल 2021

मुंबई क्रांति:: पहले सिनेमा, फिर टीवी अब सोशल मीडिया...!?पूंजीवाद, माफिया, अंडरवर्ड की मिलीभगत ?दिल्ली कलकत्ता से ही नहीं मुंबई से एक बड़ा खेल खेला गया::अशोकबिन्दु

 नेता, माफिया, जातिवाद, मजहबवाद,क्षद्म सेक्यूलरवाद, भीड़ हिंसा?!  और बेचारा जनतंत्र?!

----------------------------------------------------अशोकबिन्दु


सन 1935 से ही देश की राजनीति निम्न स्तर की होने लगी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,सरदार पटेल, अम्बेडकर आदि जैसे लोग जो राजनीति सिर्फ देश सेवा के लिए ही करना चाहते थे उनको हटाने के षड्यंत्र चलने लगे थे। सन 1947ई0 में सत्तापरिवर्तन के बाद भी क्या हुआ? सामन्तवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि नई शक्ल में आगया।कुछ अलगाववादी, लुटेरे पन्थ परिवर्तन कर धर्म की पताका ले,कुछ समाज सेवा की पताका लिए, कुछ मुंबई में सिनेमा स्टार बन, कुछ कुछ विश्व विद्यालयों में  इतिहासविद हो गए.....आदि आदि।एक बड़ा खेल तो बालीबुड के माध्यम से खेला गया।

तन्त्र के नाम से देश में सामंतवादी  जनतंत्र का उदय हुआ। तन्त्र को जनता के हित में न बना कर पूंजीपतियों, सामंतवादियों, मजहबीयों ,माफियाओं आदि के लिए खड़ा किया गया। 73 सालों में ईमानदार, सम्विधान प्रेमी, मानवतावादियों आदि को ही संरक्षण व आरक्षण की व्यवस्था न कर पाया। गांव व वार्ड का गुंडा, दबंग आदि किसी न किसी नेता या दल का खास होता है या जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात पुरोहितवाद आदि से प्रभावित होता है।



मुंबई की ओर जब निगाह डालते हैं तो वहां से हमें भारत की बर्बादी की चमक दिखाई देती है। 


एक मनोवैज्ञानिक जानता है कि सन 1947 के बाद जो सामाजिक मनोविज्ञान बनाया गया है,उसमें वे भी शामिल हैं जो समाज में सम्माननीय भी हैं।

विभिन्न समस्याओं पर समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है? अब एक समस्या है- दहेज।दहेज के खिलाफ समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है? एक समस्या है- औरत जाति के प्रति बनती सोंच। जिसके खिलाफ समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है?बालिकाओं, युवतियों  को तो अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं आदि से समझौता करना पड़ रहा है,उन पर बंदिशें लगाई जा रहीं है, उनको आत्म निर्भर व सशक्त बनाने की मानसिकता अब भी समाज व सामाजिकता की नहीं है। ऊपर से 99 प्रतिशत बालकों, युवकों की दशा क्या हो रही है?नशा व्यापार, सेक्स, बिरादरी के अपराधियों, माफियाओं की हाँहजुरी आदि.... समाज व सामाजिकता इसके खिलाफ क्या एक्शन ले रही है?

महाभारत के बाद क्रांति का पहला बिगुल बजाया था-हजरत इब्राहीम (ईसा पूर्व 2000 वर्ष) ने !! प्रिय की कुर्बानी?!प्रिय की कुर वाणी ???!! शब्दों के पीछे बड़ा महान व अनन्त पथ छिपा है लेकिन शब्दों पर भी राजनीति हो जाती है लेकिन उसके पीछे के अनन्तता की खोज नहीं।


#अशोकबिन्दु




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