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गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

अशोकबिन्दु :: दैट इज..?!पार्ट-20!!अनन्त प्रबुद्धता के बीच हम भीड़ परम्परा की दुर्गमता में?!

 हम 13 अप्रैल 2021 से हम अपने में अनन्त घटित होता महसूस कर रहे हैं।छितिज के पार असीम को महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं।जहां रास्ता तो है लेकिन मंजिल नहीं।और हमें लग रहा है, ईश्वर व धर्म के नाम पर समाज में जो हो रहा है वहां पर रुकावट ही रुकावट है।पूर्णता नहीं।पूर्णता कहीं है ही नहीं।अनन्त की तुलना हमारी बुद्धि से परे है।

10-14 फरबरी 2021 से हमें विशेष मालिक कृपा से गुजरने का वक्त मिल रहा है लेकिन उसके लिए हमें मौन में रहने का निर्देश मिला था।




असलियत दुनिया नहीं है!समाज व संस्थाओं के ठेकेदार नहीं हैं.....
हम तो किशोरावस्था से ही उन कुछ लोगों को सुनते आए हैं जिन्हें दुनिया ने नहीं सुना है।मानव समाज ने नहीं सुना है।विज्ञान प्रगति, अविष्कार, युगनिर्माण आदि अनेक पत्रिकाओं के माध्यम से हम उन्हें पढ़ते नहीं, चिंतन मनन करते रहे हैं । 

हम जो सन1985में 2025 का सुनते आए थे वही हो रहा है। जो सत्य या यथार्थ का ही रूप है,स्तर है। 

हम बचपन से ही महसूस करते रहे हैं कि क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए? बालक अपना दर्द, समस्या को कहां रखेगा?यदि माता पिता के सामने न रखेगा?समाज में, विभिन्न संस्थाओं में आकाओं की कमी नहीं है।उनके सामने समाज व संस्थाओं की समस्याएं न आने का मतलब क्या है? या नजरअंदाज होने का कारण क्या है?

आज का असन्तुष्ट भविष्य के असन्तुष्ट का नायक भी हो सकता है।इतिहास में अनेक बार हुआ है असन्तुष्ट ने इतिहास को बदला है।

हम बचपन से जिन असंतुष्टों को पढ़ते आये हैं,वे आज सत्य साबित होने की ओर हैं।

वर्तमान का सत्य ये नहीं है कि हम अपनी इच्छाओं के लिए दूसरों के सम्मान, दूसरों की इच्छाओं, प्रकृति असन्तुलन को अंजाम दे दें। 

मौन का मतलब क्या है? 
उसको अवसर देना जो सत्य है,जो वर्तमान है।
सत्य हमारी इच्छाएं नहीं है।सत्य तो है जो है।अब स्तर उसका चाहें कोई हो। हर स्तर से हम सत्य उजागर की ओर बढ़ते है।

ज्योतिष क्या है?वह भी विज्ञान है।
जो वर्तमान में दिख रहा है, वही सिर्फ सत्य नहीं है।जो दिख रहा है,वह कल ऐसा न था।जो दिख रहा है-वह कल  ऐसा न होगा। सत्य, ज्ञान ,आत्मा हमारे लिए एक दशा ही हो जाती है कभी कभी।जो त्रिकाल दर्शी है। जो निरन्तर से बंधा है।जो अनन्त सम्भावनाएं छिपाए है। जो कल मर गया, आज देवता बना कर पूजा जा रहा है।यह सरासर गलत है। जो आत्मा है उसको अवसर देने से हमारा अन्तःकरण परम्आत्मा होने की ओर अग्रसर तो हो सकता है लेकिन अनन्त पूर्णता से तुलना असम्भव है।
जो बार बार मरता है,वह प्रकृति व पंच तत्व का विज्ञान है। वह स्पष्ट है।हमारी नजर में स्पष्ट न हो तो अलग की बात। आत्माएं तो अनन्त यात्रा में साहचर्य हैं, जिम्मेदारी हैं।जो हमारे समय चक्र से परे हैं।वह अतीत व भविष्य मुक्त समय में अर्थात वर्तमान में है।जो सत्य है, जो यथार्थ है।


मौन,प्रतिक्रिया व इच्छाएं?
10-14 फरबरी-09-13 मई 2021ई0.....!!

अंदर की शांति को पाने के लिए बाहर को नजरअंदाज करना होता है।तटस्थ रहना होता है। प्रतिक्रिया शून्य होना होता है।
पहिया की धुरी स्थिर होती है। चक्रवात का केंद्र स्थिर - शांत होता है। आत्मा के हालत भी ऐसे होते हैं । 
इच्छाएं हमें  चेष्टावान ,प्रतिक्रियावादी  बनाती है।जो हमारे अंतरमन को मौन होने अर्थात आत्मा केंद्रित होने की गतिशीलता देता है।

अनन्त प्रबुद्धता के    बीच  हम रेत के एक कण का अनन्त हिस्सा भी नहीं हैं। लेकिन जब तक हम इस हाड़ मास शरीर में है तब तक  के लिए ही  हम आत्मा के रूप में अस्तित्ववान नहीं हैं। यह भी सम्भव है कि हम अपने अन्तस्थ से न थकने वाली प्रबुद्धता पा सकते हैं ।जिसे हमारी बुद्धि,मन,शरीर संभाल कर न रख पाए यह अलग बात।



#अशोकबिन्दु

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