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गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद से उपाय

विभिन्न समस्याओँ की जड़ मनुष्य का मन है जो भौतिक चकाचौँध मेँ विचलित हो चुका है और शान्ति व सन्तुष्टि के पथ से अन्जान है.सुख दुख तो मन का खेल है.संसार की वस्तुओँ से प्रभावित मन कब तक प्रफुल्लित रख सकता है?संसार मेँ तो रहना ही है लेकिन संसार को मन मेँ रखना ठीक नहीँ.गीता मेँ ठीक कहा गया है कि-


"कर्मेँन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् !
इंद्रियार्थान्विमूढ़ात्मा मिथ्याचार स उच्चते !!"

जिसके मन की दिशा दशा धर्म व मोक्ष के स्थान परअर्थ व काम की ओर रहती है एवं धर्म अर्थ काम मोक्ष मेँ सन्तुलन नहीँ रहता ,वह आखिर मेँ दुख व रोगोँ को प्राप्त होता है.

धर्म व अध्यात्म का सम्बन्ध रीतिरिवाजोँ कर्मकाण्डोँ से नहीँ वरन आचरण व्यवहार व मन की स्थिति से है.ऐसे मेँ वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का महत्व कम नहीँ है. अध्यात्म का सम्बन्ध ईश्वर को मानने या न मानने वालोँ के विरोध से नहीँ वरन आत्म दर्शन तथा अपनी चेतना पर पकड़ बनाने से है.वैज्ञानिक प्रफुल्लचन्द्र राय का कहना था कि आध्यात्मिक साधना से मन:स्थिति मेँ एवं आध्यात्मिक वातावरण से परिस्थिति मेँ सृजनशीलता अंकुरित होती है.फ्रांस से वाल्टेयर का कहना था कि ईश्वर अनुभूति है लेकिन वर्तमान मेँ कितनोँ को ईश्वर की अनुभूति है?ताज्जुब है किप्रभुभक्त या धार्मिक बनते है लेकिन अहँकार मेँ है और दुखी हैँ.विज्ञान के माध्यम से निरन्तर आध्यात्मिक प्रयोगोँ व अभ्यास के बिना ईश्वरता को प्राप्त होना असम्भव है.

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