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रविवार, 2 अगस्त 2020

सोवियत संघ व सोवियत नारी पत्रिका और मैं:अशोकबिन्दु

जब हम कक्षा पांच में पढ़ते थे, अनेक पत्र पत्रिकाएं पढ़ने लगे थे।
आर्थिक समस्याएं तो थीं,इससे क्या?महत्वपूर्ण होता है नजरिया व प्राथमिकता। शानशौकत पर जरूर ध्यान न दिया गया लेकिन खाने पीने, स्वध्याय, अतिथि सत्कार पर सदा ध्यान दिया गया।न ही किसी प्रकार का लोभ लालच।घर में गमलों के माध्यम से पौधों से भी रुचि।

रूस देश को लेकर रूस से आने वाली  हिंदी पत्र पत्रिकाओं, पुस्तकों माध्यम भी जुड़े हुए थे।कुछ कुछ ध्यान है उन दिनों हम सोवियत संघ, सोवियत नारी पत्रिका बड़े चाव से पढ़ते थे।
एक पृष्ठ रूसी भाषा सीखने के लिए भी था।अनेक शब्द हम रूसी भाषा के सीख गए थे। रूस से आयी कुछ पुस्तकें पढ़ने का भी हमें मौका मिला।ये सब हमें बड़ा अच्छा लग रहा था। हमे ध्यान है, जव हम कक्षा05 में पढ़ते थे,हमें भूगोल के साथ साथ अन्य विषय पढ़ाते थे-पूरन लाल गंगवार।जब वे इमला बोलते थे तो लगभग चार-पांच शब्द गलत निकलते थे। लेकिन इन  पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ते पढ़ते एक दो साल में सब कैसे ठीक हो गया, पता ही न चला।  स्वाध्याय के विषयों पर हम चिंतन मनन भी करने लगे थे।


  सुमित्रा नन्दन पन्त ने कहा है कि भोग विलास ,गरीबी, अमीरी में सुख या दुख के साथ जीवन सभी जी लेते हैं लेकिन जैसा भी उसमें बड़े ख्वाबों व बादशाहीयत के साथ कम ही लोग जीते हैं।
आर्थिक समस्याओं के बाबजूद हम सब का जीवन किसी से कम न था। हम सब अमीरी गरीबी को महत्व न दे इंसान के वैचारिक स्तर, भावनाओं आदि के आधार पर  इंसानों को महत्व देते थे।ऐसा अब भी है।नगर के ऊंचे व्यक्तियों से भी  मिलना जुलना भी और भिखारी स्तर, रिक्शा चालक आदि स्तर के भी व्यक्तियों से बैठक।ये बैठक किसी सत्संग से कम न होती। हां, सुमित्रानंदन पंत ने कहा है, स्त्री, बच्चे, पुस्तकें व प्रकृति से यदि सहज व पवित्र सम्बन्ध रखो तो जीवन में इनसे बेहतर कोई नहीं।हम स्वयं अपना जीवन बनाते व बिगड़ते हैं।ये जरूर है कि जीवन अनन्त की कठपुतली है लेकिन  जीवन की डोर ढ़ीली व कसी करना हम पर निर्भर है। इस पर कमलेश डी पटेल दाजी ने भी कहा है कि हम स्वयं अपनी नियति का निर्माण करते हैं। लेकिन जब हम अपने से ही दूर हो जाएं ,तो इसमें दोष किसका?  हमें जो प्राप्त है, उसे महानताओं के साथ शेयर करना आवश्यक है।

सोवियत संघ, सोवियत नारी पत्रिकाओं आदि के माध्यम से हम कल्पनाओं, चिंतन से शरहद पार भी जाना शुरू किए।
लेनिन, कार्ल मार्क्स, अब्राहम लिंकन, भारतीय नेताओं व महापुरुषों की विदेश यात्राओं की जानकारी आदि के साथ हम सारे विश्व से जुड़े और हमने विश्व बंधुत्व के मानसिक दर्शन किए।








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