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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

अशोकबिन्दु: दैट इज....?! पार्ट 12









अतिसंचय प्रकृतिनाश,विश्वासहीन प्रकृति यज्ञह ।
योगांग प्रथम यमदूत, ससम्मान धर्म - अपरिग्रह   ।।

कुल- जाति- देशस्य सदस्य ,नास्तिक चोरह ।
योगांग प्रथम यमदूत, ससम्मान धर्म अस्तेयह।।


अति संचय प्रकृति नाश है, प्रकृतियज्ञ में अविश्वास है।

योग का प्रथम अंग यम का एक दूत अपरिग्रह सम्मान सहित धर्म है।।


कुल जाति देश के सदस्य का चोर नास्तिक है।
योग का प्रथम अंग यम का एक दूत अस्तेय  सम्मान सहित धर्म है।।

इसके साथ...


हम सपरिवार सन2019ई0 के प्रथम सप्ताह सपरिवार श्री रामचन्द्र मिशन, शाहजहाँपुर आश्रम में थे।


हम दोनों पति पत्नी प्रशिक्षण में थे। इससे पहले भी हम हार्टफुलनेस के एक प्रशिक्षण में रह चुके थे।अंदुरुनी हालात अच्छे हो चुके थे।शरीर व मन बड़ा हल्का व बोझमुक्त लगता था।जैसे हवा में उड़ता हो, पीछे से कोई धकेलता हो।हमारा कोई बल न लग रहा हो।जैसे पहाड़ से जब नीचे उतरते हैं।

25दिसम्बर2014ई0 को हमने सपत्नी श्री रामचन्द्र मिशन में  अपनी प्राणाहुति/प्राण प्रतिष्ठा करवायी।।इसके साथ ही हम विश्व बंधुत्व, वसुधैब कुटुम्बकम, विश्व सरकार,सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर.... की भावना से मजबूत हुए। ऐसे में जाति मजहब के नाम पर आचरण, भीड़ हिंसा के खिलाफ भावना और तेज हुई।



अभी हम मामूली से इंसान हैं।इस लिए अभ्यासी हैं।

बाबूजी महाराज ने एक अच्छा नाम दिया है हम सबको हम सब अभ्यासी ।
हम किसी के शिष्य नहीं है ।
उन्होंने अपने को गुरु भी नहीं माना। हम किसी के शिष्य कैसे हो सकते हैं ?शिष्य कौन है?

 शिक्षा और गुरु दो शरीर एक जान होते हैं।




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