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मंगलवार, 31 मार्च 2020

कोरो-ना संक्रमण ने हमारी धारणाओं को और मजबूत किया है आपकी धारणाओं को झकझोर??!!

हमारे अंदर कुछ है।
जो इस शरीर को छोड़ देता है तो ये शरीर लाश हो जाता है।
उससे जुड़ना है तो इसके लाश होने से पूर्व इसको लाश होने का अभ्यास तेज हो जाना चाहिए।
बुद्ध क्या कहते हैं?
मृत्यु व वैराग्य/मोक्ष दोनों में मृत्यु होती है।
लालसाएं जिंदा रहे और शरीर मर जाए तो मृत्यु, यदि मृत्यु से पूर्व लालसाएं खत्म हो जाएं तो मोक्ष/वैराग्य।
इसलिए कोई कहता है-आचार्य है मृत्यु अर्थात आचरण से शिक्षा देना है मृत्यु।
कोई कहता है-योग का एक पहला अंग यम है-मृत्यु।
ये इतना आसान नहीं है।
ये स्तर दर स्तर कोशिस से आता है।
इसके लिए हमें किसी की शरण जाना होता है।उसके वाणी/सन्देश को फॉलो करना होता है, हर हाल में । हर हाल में?बस, यही से शरुआत........प्राण जाएं  पर वचन न जाए।
स्वीकार्य! किसका स्वीकार्य???इसमें लीप पोती नहीं!!लेकिन, परन्तु नहीं!!!बस, हो गयी शुरुआत.....
समर्पण!यदि अमुख ठीक है तो ठीक है।माता पिता क्या कहते है?समाज क्या कहता है?इससे हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।झेलना.... बस, हो गयी शुरुआत.....
आदि आदि!!
ये मृत्यु से कम नहीं!!महान क्षत्रियत्व!!!पहला पन्थ-जैन!!जिन...!!!
सिक्ख! सिक्ख होना भी साहस का काम है।अभ्यासी होना साहस का काम है।

कमलेश डी पटेल 'दाजी' कहते है हार्टफुलनेस शिक्षा कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। समाज व संस्थाओं के वरिष्ठ भी कहते हैं बुद्धि की बात करो, दिमाग की बात करो।बुद्धि व दिमाग ने आधुनिक विकास के नाम स्व क्या दिया? वास्तव मे कोई महान दिल से होता है दिमाग से नहीं।इस बच्चा पढ़ता रहता है।उसे खेलने की फुर्सत नहीं।एक को पढ़ने की फुर्सत नहीं ।खेलता रहता है।  कक्षा आठ तक 8 विषय बनते है ।आधा आधा घण्टा पढ़ें, और होमवर्क..... तो खेलने की भी फुर्सत नहीं।कम्पटीशन के लिए भी लगभग 08 विषय बनते है। अपने को हम किस ओर होने को अग्रसर कर रहे हैं ?ये हमारे दिल पर निर्भर करता है।दिमाग तो उधेड़ बुन में रहता है। हम अधिकतर अपना वक्त जिसमें लगते हैं, वह हमारी असलियत है।

अनेक असफल व्यक्तियों ने लोगों को सफल बनाया है।असफलता में भी सफलता छिपी होती है।आगे बढ़ने की प्रेरणा छिपी होती है।ईसा मसीह अपने जिंदा रहते सफल थे कि असफल?सुकरात अपने समय में असफल थे कि सफल?गुरु गोविंद, भगत सिंह आदि असफल थे कि सफल? योगी समीरा सफल थे कि असफल?अनेक ऐसे अध्यापक, बिल्डर, बैज्ञानिक, लेखक,विचारक, उद्योगपति आदि अपने जिंदा रहते आपके जमाने की नजर में असफल थे लेकिन....??!!उन से भी अनेक ने प्रेरणा पायी।


आज मानव समाज  कोरो-ना  संक्रमण से ग्रस्त है।
इस संक्रमण ने हमसब को अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार को विवश कर दिया है।जो पुनर्विचार को तैयार नहीं हैं और अपने जाति, मजहब, देश आदि के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे हैं वे मानवता के लिए खरनाक हैं। आज हमें बदलने की जरूरत है।सिर्फ आवश्यकताओं,अनुशासन, मानवता,आध्यत्म, चिकित्सा, प्रकृति संरक्षण आदि में जीने की जरूरत है।



हम पहले से ही कहते रहे हैं।
क्या कहते रहे हैं? धर्मस्थलों,जातियों, मजहबों, बडे बडे तोंद वालों को दाबतों,वर्तमान सामाजिकता आदि का मानवता में क्या योगदान है? हम कहते रहे है कि आपने लाखों रुपए त्यौहार,जन्म,मृत्यु,शादी आदि के नाम से खर्च कर दिए इससे क्या लाभ?आप ने इसे कार्यक्रम में हमारी दावत कर दी, इससे हमें क्या लाभ, इससे हमारी व समाज की कौन सी समस्या हल हो रही है?भूखे को रोटी दो, मरीज को औषधि दो, वस्त्रहीन को वस्त्र दो, बेरोजगार को रोजगार दो.... बगैर बगैरा चलता है।मानवता इससे विकसित होती है। शिक्षा दान दो... अब तो देह दान, अंग दान ,रक्त दान का भी सिलसिला चल गया है, अच्छा है। हम जो भी कमा रहे हैं, चाहें ज्ञान हो या धन.... यों ही सबको नहीं बांटना चाहिए।यों ही ऐसे खर्च नहीं करना चाहिए। कमलेश डी पटेल दाजी तो कहते है -  खूब धन कमाओ लेकिन यात्रा के लिए ,क्या आप समझेंगे?!!

हमने एक वर्ष से  धर्म स्थलों, पूजा पाठ, जागरण आदि में दान करना छोड़ दिया है।सिर्फ गुरुद्वार, आश्रम, गरीब बच्चों की फीस, भूखे को भोजन.... बगैरा बगैरा सिवा।लेकिन इसका प्रदर्शन क्यों?हमने देखा है-एक अस्पताल में कुछ लोग  मरीज़ों को फल बांटने।एक मरीज को एक केला दिया जाता है और उसको पकड़ चार लोग फ़ोटो खिंचवाते है।दान दे दे फ़ोटो खिंचवाना दान नहीं है। दान दिल से दिया जाता है हाथ से नहीं।

आज कल कहीं कहीं शादियां हो रहीं है। 10 /20 लोगों के बीच अंदर ही अंदर घर में।अच्छा है। भीड़ व भीड़ तन्त्र के स्थान पर अब मानवता, आध्यत्म, सेवा ,शिक्षा,हेल्थ क्लब, आक्सीजन बार, जिम, अस्पताल, हर वार्ड/गांव में हर विभाग के प्रतिनिधि,पुस्तकालय, पार्क ,सार्वजिनक रसोई, सराय आदि की जरूरत है।







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