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सोमवार, 9 मार्च 2020

सन्त परम्परा में ही धर्म, अध्यात्म व जीवन...

असुर अर्थात एक असुर सुर से नीचे दूसरा असुर सुर से ऊपर...




हम अपने पास पड़ोस, समाज में जो कर्म कांड, रीति रिवाज देखते हैं उनमें हम अब धर्म व अध्यात्म नहीं देखते।

उसके त्यौहारों  में सादगी, सात्विकता नजर नहीं आती। हमारे पूर्वजों का हेतु अब खोता नजर आ रहा है।

होली के नाम पर हुड़दंग,कमर के झटके, सीने की उछालें...टीवी होली के नाम पर क्या परोस रहे हैं?
गरिष्ठ भोजन....
 पूंजीपतियों की बल्ले बल्ले....
भौतिकता को ही बढ़ावा.....

मन व आचरण की शुद्धता पर बल नहीं...

मानवता को मुस्कान नहीं....
गरीब आदमी पर  त्यौहारों के नाम पर भी बल....

पूंजीवाद, पुरोहितबाद .....
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हमें आप लोगों का धर्म समझ में नहीं आता?
कर्मकांड समझ नहीं पाते हम....
हमें जीवन में अनेक तथ्य निरर्थक नजर आते हैं!!

असुर हम किसे कहें?
निशाचर हम किसे कहते हैं?
रात्रिचर हम  किसे कहते है?
आज कल के असुर, निशाचर, रात्रिचर किसे कह सकते हैं???
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#अशोकबिन्दु

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