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सोमवार, 30 मार्च 2020

न काहू से दोस्ती न काहू से वैर!!!

   तीन माह से दुनिया ने पुराना जो त्याग नया स्वीकार किया है,उस के प्रति इंसान को सजग होने की जरूरत है।उसे रोज मर्रे की जिंदगी में आत्म सात करने को जरूरत है। कहावत है आदतें ऐसे नहीं जाती, लॉक डाउन से कितने लोग जागने को तैयार है?वही पुराना की ही आदत है।वे आदतें यो नहीं सुधरने वाली। समाज में कहावत है- कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती, हां उसे काटा जरूर जा सकता है।
         
कहा गया है एक सम्बन्ध ही धर्म है एक सम्बन्ध ही अधर्म है।
इंसानों, प्राणियीं,संसार के वस्तुओं से सम्बन्ध ही धर्म व अधर्म है। जो लोग कुछ को राक्षस व असुर मान कर विरोध, मतभेद या हिंसा का समर्थन करते हैं, वे नहीं देखते कि हमारे आचरण, विचार स्वयं सुर हैं क्या?क्या हम अहंकार में नहीं?क्या हम मांस मदिरा में नहीं? क्या हम आध्यत्मिक ज्ञान में जीते हैं?आत्मा व आत्मा के गुणों ले अहसास, नजरिया ,मन मे न रहने वाला सनातनी कैसे?जगत में सर्फ आत्मा ही सनातनी है। एक तरफ से100 घरों का अध्ययन कर लो,कौन है-देवत्व में,सुरत्व में?सुर/श्वास के अहसास में?प्राण/आत्मा के अहसास में? हमारे आस पड़ोस में व जहां भी भीड़ नजर आती है, वह क्या धर्म में है?सुर में है?आध्यत्म में है?


आस पड़ोस ,समाज में हम देखते हैं लोग अब भी अहंकार, जाति बल, धन बल, तनबल, तन्त्र बल आदि के बलबूते अपनी, अन्य प्राणियों, प्रकृति, हादसों आदि की असलियत से अनजान हैं।
वे जिस पर फूलते हैं,उन्हें नहीं पता कुदरत उनका भी हिसाब किताब करना जानती है।वे नगर व गांव के कुछ लोगों की नजरअंदाज किए बैठे हैं।लेकिन जरूरी नही कि वे कुदरत की नजर में नायक नहीं।


 किसी ने कहा है-धर्म में भी अपना कोई नहीं होता, अधर्म में भी कोई अपना नहीं होता।चरित्र भी क्या होता है?चरित्र होता है-स्थूल नजर में, सूक्ष्म नजर में व कारण नजर में।अट्ठानवे प्रतिशत से भी ज्यादा लोग व्यक्ति के स्थूल आचरण के आधार पर दूसरे का चरित्र गढ़ते हैं।वरन सूक्ष्म व कारण नजर से नहीं। आज हम जिस परिबार में रह रहे हैं, जिनलोगों के साथ है, जिस संस्था में कार्य कर रहे है,कोई हमारे अनुकूल है आदि आदि ,ये इत्तफाक  हो सकता है सिर्फ। सूक्ष्म नजर में हमारा संसार इन सब से हट कर हो सकता है। कारण नजर में हमारा संसार अन्य कहीं हो सकता। स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों के मेल में हमारा न जीना ही हमारी असन्तुष्टि, अशांति,पुनर्जन्म आदि का कारण है।


 सन्त इस भाव से जीते हैं कि न काहू से दोस्ती न काहू से बैर!!
उनकी कुटिया में सभी को सम्मान होता है।वह अंगुलिमानों की गलियों से परहेज नहीं करते। पौराणिक कथाओं में भी मिलता है  कि ऋषियों का किसी से विरोध नहीं था।विरोध एक विचारधारा को मानने वालों से था।उस वक्त कुल व्यवस्था तो थी लेकिन जाति व्यवस्था नहीं।कुछ अपवादों को छोड़ कर।संघर्ष तब चालू हुए जब जंगलों ,जमीनों की बाड़ाबंदी चालू हुई। धरती के सभी संसाधनों पर राक्षसों, असुरों, यक्षों, गन्द्धर्भों आदि का ही रख रखाव था। जब ऋषियों की संतानों/ब्राह्मणों के द्वारा जंगलों की बाड़ाबंदी का विस्तार होना शुरू हो गया तो युद्ध प्रारम्भ हो गए। यक्ष/यक्षणी का पुरोहित कार्य छीनने लगा। प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने वाले राक्षसों के कार्य मे हस्तक्षेप होने लगा। राजनीति सत्तावाद,आवश्यकताओं की पूर्ति पूंजीवाद, निजी धार्मिक कर।कांड पुरोहितबाद ,कर्मविभाजन/वर्णव्यवस्था जाति वाद में बदलने लगा। लेकिन वेद का उद्देश्य सनातन था,वह पुस्तक नहीं स्थिति था, ज्ञान था।आत्मा, परम आत्मा, जगत, ब्रह्मांड आदि का अंतर अहसास। वहां  पर था-सागर में कुम्भ  कुम्भ में सागर।सभी में परम् आत्मा की संभावना की तलाश व अबसर ।यही सनातन धर्म था।सभी मे परम् आत्मा को अबसर। ऐसे में किससे दोस्ती किससे दुश्मनी?

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