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बुधवार, 4 मार्च 2020

अकेला खड़ा इंसान पर भीड़ तन्त्र समझौता पर अड़ा है....

दिल्ली के हादसे की जिम्मेदारी कौन ले?
वे आतंकवादियों से भी बड़े हो गए हैं,
वे आतंकवादी हादसे की जिम्मेदारी तो ले लेते हैं?
अंदर का आतंक  बड़ा खामोश है,
 आतंक हो तो परिभाषित, हम ये कहते रहे हैं।
जाति-पन्थ के नाम पर षड्यंत्र कम नहीं हैं पुराने,
हमारी जाति के हिंसक हमें प्यारे को लगते रहे हैं?
हमने देखा है अपराधियों को बचाने-
उनकी जाति के लोगों को थाना में खड़े,
एक अकेला दलित जब उठा-
तो भीड़ की भीड़ थाना में उससे समझौता पर अड़े हैं,
हम तो इस पर अड़े हैं-
आतंक हो परिभाषित,हम ये कहते रहे हैं।
दीनदयाल का वो अकेला इंसान,
लोहिया का वो भीड़ में खड़ा वो अकेला इंसान,
वह कब दलित होने से ऊपर उठा है?
इसलिए हम अल्पसंख्यक की परिभाषा के पुनर्विचार पर अड़ा है,
हिंदुओं के गांव मे न देखा कोई मुसलमान,
मुसलमानों के गांव में न देखा कोई हिन्दू,
तब भी उन गांव में वो तन्हा कौन मरा है?
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मानते हैं उनमें हजार गलतियां हैं,
गलतियां हम सब में भी कम नहीं हैं,
हम तो गुरु नानक के शिष्य अब भी हैं,
दूसरा जो था उनका खास वह आज कहाँ है?
कहते है उनका एक सिख हिन्दू दूसरा मुसलमान है।
जानते हैं विदेशी मेहमान भी रहे है हमारे,
मगर जो व्यापारी बन यहां ठहर गए,
एक जाति के दूसरी जाति पर के जो जहर-
वे उनके अमृत हो गए हैं,
वे दलित उनकी क्यों ढाल हो गए हैं?
मानते हैं गौरी के पुरखों में हजार गलतियां होंगी,
लेकिन तुम्हारे बहिष्कार यवनों के लिए हथियार हो गए हैं।
ये जंग आज भर की नहीं है,
कौन थे यवन आज वे क्या हो गए हैं?
गर वसुधैब कुटुंबकम की भांति था हमारा मकसद,
वह पश्चिम के पुराणों का शैतान कौन है?
चतुरसेन वयम रक्षाम: में क्या कह गए-
अवेस्ता में वो शैतान कौन है?
तुम कहते थे जिसे असुर,
वे भी  त्रिदेव की उपासना करते देखे गए है,
तो फिर ये धर्म आज क्या हो गया है?
कर्मकांड कब धर्म हो गए हैं?
मानते हैं उनमें हजार गलतियां हैं;
मगर हम कब जाति पन्थ से परे हो गए हैं?





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