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शुक्रवार, 26 मार्च 2010

लघु कथा: नक्सली छाँव.......





1857 क्राति की 150वीँ वर्षगाँठ पूरे देश मेँ मनायी जा रही थी.इस अवसर पर कुछ भारतीय युवक युवतियोँ नेँ भारतीय संविधान की शपथ ले कर एक दल 'सैक्यूलर फोर्स'की स्थापना कर रखी थी.जिस पर नक्सली दबाव डाल रहे थे कि हमसे मिल जाओ लेकिन निर्दोष लोगोँ की हत्या करने वाले नक्सलियोँ से देशभक्त कैसे मिल सकते थे?सैक्यूलर फोर्स का एक युवा सदस्य आलोक वम्मा को किसी काम से शहर राँची जाना हुआ जहाँ उसक़ी एक युवा शिष्या शिवानी ने उसे राजो मण्डल से मिलवाया.आलोक वम्मा ने उससे पूछा-"आखिर ऐसी क्या मजबूरियाँ थीँ कि तुम्हेँ नक्सलियोँ की शरण मेँ जाना पड़ा?"राजो मण्डल बोली-"मैने किशोरावस्था मेँ कदम ही रखे थे.मेरी भाभी ने पूरे परिवार पर दहेज एक्ट लगा रखा था.सब जेल मेँ थे .बस मैँ ही घर मेँ अकेली बची थी.गाँव मेँ मेरा एक मुँहबोला भाई था. मैँ उसी के साथ कचहरी अदालत आदि के चक्कर लगा रही थी और खेती के कार्य देख रही थी.एक दिन मुझे अकेले ही अदालत जाना था. जाने के लिए कोई सवारी नहीँ मिल रही थी.जल्दी के चक्कर मेँ मेँ एक ट्रक पर बैठ गयी . हमेँ क्या पता था कि यह ट्रक ड्राईवर कामान्ध होते हैँ. " फिर राजो महतो की आँखोँ मेँ आँसू आ गये.वह फिर सिसकते हुए बोली-"पहले ट्रक मेँ ही फिर आगे जा एक ढाबा पर अनेक ट्रक ड्राईबरोँ ने मेरे साथ कुकर्म किया.मैँ बेहोश हो चुकी थी जब मुझे होश आया तो फिर मैने एक कमरे मेँ युवकोँ एवं किशोरोँ से अपने को घिरा पाया जो दारू पी रहे थे.जिन्होंने फिर हमारे शरीर के साथ खूब मनमानी की .जब छक गये तो मुझे बाहर निकाल एक चौराहे पर छोड़ आये.सुबह जब कुछ टहलने वालोँ ने देखा तो मुझे पुलिस के अधीन कर दिया गया . थाने मेँ मुझे दो दिन रखा गया फिर पुलिस वाले एवं शायद कुछ नेता बारी बारी से मेरे ऊपर उतरते गये.इत्तफाक से उस थाने पर नक्सलियोँ ने धावा बोल दिया.थाने मेँ कुछ नक्सली बन्द थे.नक्सली मुझे भी साथ लेकर जंगल मेँ अपने ठिकाने पर आ गये. मेरे स्वस्थ हो जाने पर मुझे अन्य किशोरियोँ युवतियोँ के साथ ट्रेनिँग दी जाने लगी. मैने दोषियोँ को खोज खोज कर विकलांग बना दिया एवं अपने परिवार को न्याय दिलवा दिया लेकिन सात आठ सालोँ के दैरान नक्सलियोँ के द्वारा निर्दोष लोगो की हत्याऔ पर विचलित एवँ परेशान होती रही.अभी एक महीना पहले मेरी शिवानी से मुकालात हुई. पहली मुलाकात तब हुई थी जब इसे नक्सलियो के बीच लाया गया था लेकिन आप इसे तथा इसके भाई अरमान को राँची मेँ ला आये थे और इनके पढाई की व्यवस्था की थी.जब दुवारा मेरी शिवानी से मुलाकात हुई तो मैने अपनी भड़ास निकाल डाली. तब शिवानी बोली-सब ठीक हो जाएगा , सर जी को आने दो.मैँ तो गुजरात के गोसार की रहने वाली थी . गोधरा काण्ड के बाद मेरे साथ क्या क्या नहीँ हुआ तुम्से कुछ छिपा नहीँ है.हाँलाकि कुप्रबन्धन भ्रष्टाचार अन्याय आदि के कारण नक्सलवाद को बड़ावा मिल रहा है लेकिन उनके द्वारा निर्दोषोँ के कत्ल एवं परेशान करना मुझे दिल गवाही नहीँ देता."आलोक वम्मा बोला-हम पर तो वे काफी दबाव डाल रहे है हमे अपने साथ लेने के लिए लेकिन वहाँ की छाँव छाँव है नहीँ.

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