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बुधवार, 31 मार्च 2010

अध्यापक दंश:जो बोले व��ी कुण्डी खोले.

यदि 20प्रति शत अध्यापक भी आचरण मेँ कानून- ज्ञान को उतार लेँ,पुलिस- वकील भी. खैर......!?प्रकृति असन्तुलन ,भ्रष्टाचार, कुप्रबन्धन के लिए हम सबकी शूद्रता दोषी है.सिर्फ अर्थ काम की लालसा रखने वाला शूद्र ही है.
पुरूषार्थ की आज अति आवश्यकता है.धर्म ,अर्थ ,काम, मोक्ष मेँ सन्तुलन ही पुरुषार्थ है. परिवार समाज देश व विश्व की बिगड़ती दिशा दशा के लिए हम सब की सोँच ही उत्तरदायी है.मात्र शिक्षा से काम नहीँ चलने वाला शिक्षा के चारो रूपोँ शिक्षा, स्वाध्याय(स्वाध्याय की सीख भगत सिँह से लेनी चाहिए कि जिस दिन उन्हे फाँसी लगने वाली होती है उस दिन भी वह स्वाध्याय करना नहीँ भूलते) , अध्यात्म, ,तत्वज्ञान पर ध्यान देना आवश्यक हैँ. वह सोँच जो सिर्फ अर्थ काम मेँ लिप्त है और सांसारिक चकाचौँध मेँ विचलित हो अपने ऋषियोँ नबियोँ के त्याग समर्पण व परिश्रम को भूल गयी है जो कि मानव को महामानव की यात्रा पर ले जाने के लिए थी.अभी हम सच्चे मायने मेँ मानव नहीँ बन पाये हैँ,महामानव बनना तो काफी दूर है. दुनिया के शास्त्रोँ को रट लेने से कुछ न होगा,अपने को भी जानना होगा.हमारे सनातन नबी ऋषि ने शिक्षा का प्रारम्भ अक्षर ज्ञान से नहीँ वरन योग नैतिक शारीरिक खेल कथा कहानियोँ से प्रारम्भ करवाया था लेकिन आज.....?व्यक्तित्व का निर्माण सिर्फ अंकतालिकाएँ नौकरी धन तक सीमित नहीँ होना चाहिए.विद्या ददाति विनयम् ,लेकिन विद्या किसे विनय देती है?

देश के आदर्श पुरुष डा. ए पी जे अब्दुल कलाम से एक बार एक बालक ने पूछा कि क्या भ्रष्टाचार रहते महाशक्ति बनने का सपना देखा जा सकता है?बालक से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर अपने माता पिता से पूछो.राष्ट्रपति जी के सामने बालक के माता पिता घबरा गये. दरअसल मनुष्य के जीवन मेँ बेसिक एजुकेशन व्यक्तित्व निर्माण का आधार ही नहीँ दिशा है.इसलिए डा.ए पी जे अब्दुल कलाम ने कहा माता पिता एवं बेसिक अध्यापक ही व्यक्तित्व निर्माण करता हैँ.

लेकिन......?!
यहाँ पर हमेँ धर्मराज युधिष्ठिर को भी स्मरण मेँ लाना होगा."सदा सत्य बोलो"पाठ याद करने के लिए युधिष्ठिर को काफी दिन लग गये.जिससे उनकी मजाक बनती है.अब तो युधिष्ठिरोँ की मजाक बालक ही नहीँ बड़े भी बनाते हैँ.वर्तमान मेँ हमेशा से ही जो याद कर ' डालते ' हैँ और भौतिक लाभ उठा लेते है वे वर्तमान मेँ सम्माननीय होते हैँ लेकिन जो याद कर 'लेते' हैँ वे मजाक के ही पात्र होते हैँ.जिस कालेज मेँ मैँ अध्यापन कार्य कर रहा हूँ वहाँ एक अध्यापक हैँ- विशाल मिश्रा .वह मन वचन कर्म से एक हैँ,ऐसा सभी का विश्वास है और ऐसा वास्तव मेँ है भी . मन वचन कर्म से एक होना क्या मूर्खता है?वह ड्रामाबाज नहीँ हैँ तो क्या मूर्ख हैँ . कुछ प्रतिष्ठित अध्यापकोँ तक को मुँहपीछे उनकी आलोचना एवं मजाक बनाते देखा गया है.जिन अध्यापकोँ का उद्देश्य विभिन्न माध्यमोँ से धन कमाना है न कि अध्यापन कार्य . जिस वर्ष विशाल मिश्रा कालेज मेँ आये थे उस वर्ष कालेज का माहौल सुधरता दिख रहा था . जिसके लिए प्रतिष्ठित या वरिष्ठ अध्यापक ही सहयोगात्मक नहीँ रहे वरन आलोचनात्मक रहे .मेरा विचार है कि ब्रेन रीडिँग नारको परीक्षण आदि का प्रयोग विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ विभिन्न विभागोँ मेँ
अनिवार्य किया जाए.
मनुष्य तो अब न्यायवादी रहा नहीँ. कुप्रबन्धन भ्रष्टाचार की जड़ तो मनुष्योँ के मन मेँ है. ऐसे मेँ जिसका हेतु सिर्फ अर्थ- काम है, वे कुण्डी कैसे खोलेँ ?जो बोले वही कुण्डी खोले.हमेँ जो करना है वह करेँ यदि हम सत्य के पथ पर हैँ.धर्मगुरु रब्बी उल्फ का नाम सुन रखा होगा.किसी ने उसका चाँदी का पात्र चुरा लिया.उसकी पत्ऩी ने अपनी नौकरानी पर आरोप लगा कर मामला यहूदी धर्म न्यायालय मेँ पहुँचा दिया. रब्बी उल्फ नौकरानी के पक्ष मेँ न्यायालय चल दिया.गीता मेँ ठीक ही कहा है कि धर्म के पथ पर अपना कोई नहीँ होता है.हमेँ ताज्जुब होता है कि कोई हमसे कहता है कि मै धार्मिक हूँ या ईश्वर को मानता हूँ.उनका आचरण तो कुछ और ही कह रहा होता है.

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