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मंगलवार, 13 जुलाई 2010

बहुसंख्यक मुसलमान:या���ि कि........

सन 570ई0 से पूर्व इस धरती पर शायद 'मुसलमान' शब्द न हो लेकिन 'मुसलमान'शब्द मेँ छिपी फिलासफी पहले भी क्या नहीँ मौजूद थी?आदि काल से चली आ रही सनातन यात्रा का एक पड़ाव है-इस्लाम का उदय.जिसको सजाने सँवारने मेँ लगे हैँ-लाखोँ .हाँ,यह जरुर है कि कुछ लोग इस्लाम को कलंकित करने वाले पैदा होते रहे हैँ और पब्लिक के बीच सामान्य लोगोँ मेँ जरूर अनेक भ्रान्तियां मौजूद हैँ.ऐसा मुसलमानोँ मेँ गैरमुसलमानोँ के लिए तथा गैरमुसलमानोँ मेँ मुसलमानोँ के लिए भी है.इसका कारण मनोवैज्ञानिक विकार व पूर्वाग्रह भी है.धर्म वास्तव मेँ हमेँ करुणा की ओर ले जाता है,जो न ले जाए वह धर्म नहीँ हो सकता .समाज मेँ उपस्थित धर्मोँ को मेँ धर्म नहीँ मानता,ऐ धर्म की ओर ले जाने वाले स्थूल रास्ते हैँ.मनस स्तर पर तो कुछ और ही चाहिए.किसी सूफी सन्त ने ठीक ही कहा है-"मेरा धर्म अन्तस्थ धर्म है".जो वैराग्य,विवेक,समभाव,आदि के बिना सम्भव नहीँ.



हजरत मोहम्मद सा'ब की इस घटना से हमेँ प्रेरणा मिलती रही है कि आप जिस गली से गुजरते थे.गली मेँ एक औरत उनके ऊपर कूड़ा डाल दिया करती थी लेकिन उसके प्रति आप कोई दुर्भावना नहीँ रखते थे.हम आचरण व सोँच से इस किरदार के रूप मेँ कहाँ पर फिट बैठते हैँ ?आम जीवन मेँ यदि हमारे साथ ऐसा हो तो हमारे क्या हालात होँगे?जरा उसको सोँच कर आत्मसाक्षात्कार कीजिए कि हम क्या धर्म मेँ हैँ या धर्म मेँ होने का ढोँग कर रहे हैँ?हमारे मन मेँ यदि माया मोह,लोभ,खिन्नता,द्वेष,जलन,आदि अपना विकास कर चुके हैँ तो हम धार्मिक कैसे? खैर....


रविवार,11.07.2010 ,8.00AM!मैँ एक हेयर कटिँग की दुकान मेँ जा एक कुर्सी पर बैठ गया.अपना मोबाइल निकाल कर मेँ एक मुस्लिम कब्बाली सुनने लगा.दुकानदार इस्लाम मताबलम्वी था.वह बोल पड़ा कि आप यह भी सुनते हो?मैने मन ही मन कहा कि क्योँ नहीँ?मैँ आप लोगोँ की तरह थोड़े ही हूँ.आप लोग कितने सेक्यूलरवादी हो?बहुसंख्यक मुसलमानोँ के बीच कितना जीता है सेक्यूलरवाद?


आज समाचार पत्र मेँ पढ़ा कि मस्जिद के नल से पानी पीने के कारण पाकिस्तान मेँ 400हिन्दुओँ को खदेड़ा गया .एक अन्य समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर समाचार था कि 'गोली मार दो ,लेकिन पाक नहीँ जाएंगे'.भारत लौटना चाहते हैँ प्रताड़ना से तंग15से20लाख हिन्दू और सिक्ख.12 साल पहले घर बार छोड़कर कराची,पेशावर और स्यालकोट से लौटे लोगोँ ने सुनाई व्यथा.मैँ एक होटल पर बैठा था .एक व्यक्ति बोला कि यहाँ भी 25 साल बाद देखना,बहुसंख्यक होने दो इन्हेँ.यहाँ पहली बात स्पष्ट सेक्यूलरवाद है नहीँ,जो है भी वह कुछ वर्षोँ के बाद देखना?अभी भी देख रहे हो ,जहाँ पर उनका वर्चस्व है.


फिर भी....
मैँ गैरमुसलमानोँ से भी सन्तुष्ट नहीँ हूँ.

कहीँ भी धर्म नजर नहीँ आ रहा है.


धर्म धर्मस्थलोँ,मजहबोँ,जातियोँ, रीतिरिवाजोँ,कर्मकाण्डोँ,अहिँसा,दबंगता,कूपमण्डूकता,आदि से नहीँ करुणा, प्रेम, सेवा, त्याग ,समर्पण ,विवेक,आदि से पहचाना जाता है.

1 टिप्पणी:

सुज्ञ ने कहा…

अच्छी सोच,साफ़ अन्तरमन!!
सुन्दर लेख,धन्यवाद्।