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रविवार, 25 जुलाई 2010

ये अभिभावक:बच्चोँ के ��िए फुर्सत नहीँ

रोशन जहाँ व परवेज अली ,जो कि दोनोँ भाई बहिन हैँ तथा दोनोँ एक ही क्लास मेँ पढ़ते हैँ.इस सत्र भी मैँ उनका क्लासटीचर हूँ ,पिछले वर्ष मैँ उनका क्लासटीचर था ही.कुछ अधिभावक ऐसे होते हैँ जिन्हेँ अपने बच्चोँ के लिए फुर्सत नहीँ होती.ऐसे अभिभावकोँ मेँ से एक हैँ-रोशन जहाँ व परवेज अली के अभिभावक.वे बड़े बिजी हैँ,बच्चोँ को समय देने के लिए फुर्सत नहीँ.

मार्केट मेँ 5 रुपये के आलू खरीदते वक्त सब्जीवाला यदि एक आलू खराब तौल देता है तो बौखला पड़ते हैँ लेकिन अपने बच्चोँ पर प्रति माह हजारोँ रुपये खर्च करने के बाबजूद यह फुर्सत नहीँ कि हमारे बच्चे क्या हो रहे हैँ?बच्चोँ के मन का रुझान क्या हो रहा है ?बच्चोँ से उम्मीदेँ तो बड़ी रखते हैँ लेकिन बच्चोँ के लिए समय नहीँ.जो है भी वह सिर्फ भाषणबाजी या फिर बौखलाहट का प्रदर्शन एवं मारपीट.बस,इतने से ही सन्तुष्ट कि हम इतना रुपये खर्च करते हैँ उतना रुपये खर्च करते हैँ.


कक्षा 12 का एक छात्र है-विमल राजा.उसके अभिभावक एक दिन कालेज मेँ आये.उसके क्लासटीचर बीडी मिश्रा के सामने बोले कि मेरा बालक तो किसी काम का नहीँ है.मिश्रा जी बोले कि आप का बालक सीधा है.अभिभावक बोले कि किसी काम मेँ तो होता.मुझे पता है कि वह दस प्रतिशत भी अंक पाने की योग्यता नहीँ रखता.मैँ बोल दिया कि व्यक्ति के विकास मेँ व्यक्ति के मन की दिशा दशा महत्वपूर्ण है,मन का रुझान महत्वपूर्ण है.अभिभावक बोले कि हमेँ तो किसी के प्रति भी उसका रुझान नहीँ मालूम पड़ता.मेरे मन ही मन मेँ काफी कुछ आ गया,लेकिन कहा व्यक्ति के स्तर के आधार पर जाता है.
संकोचवश मेँ धीरे से बोला कि तो क्या मन से शून्य है या अस्थिर है.



हम देख रहे हैँ कि जो अपने बच्चोँ के साथ अपना समय लगाते हैँ,आदर्श वातावरण देते हैँ ,मित्रवत व्यवहार भी रखते हैँ,आदि क्योँ न भौतिक संसाधन कम होँ.जो अभिभावक या अध्यापक सोँचते हैँ कि हम बच्चोँ को पढ़ाते हैं ,वे अज्ञानता मेँ हैँ.यदि ऐसा होता तो क्योँ अनेक विद्यार्थी संसाधनोँ के बाबजूद शिक्षा अधूरी छोड़ देते हैँ.कुछ ऐसे अभिभावकोँ से सामना होता है जो कहते है कि मैं इतना इतना रुपया खर्च करता हूँ,इतनी इतनी ट्यूशन लगवा रखी हैँ;तब भी मेरा बच्चा पढ़ता नहीँ है.भाई,पढ़ाई के लिए मानसिक तैयारी भी तो चाहिए.आज 90प्रतिशत विद्यार्थी आधुनिकता के सामने असफल है ही,मजदूर-चाट खोँन्चे वालोँ के स्तर के भी नहीँ हैँ.यदि उन्हेँ संसाधनोँ से मुक्त कर घर से बाहर धकेल दिया जाए तो ये लेबर स्तर के भी नहीँ होँ.धन्य था -मैकाले.?और आज के काले मैकाले ?! ....और धन्य 'सर्व शिक्षा अभियान'. ..सिर्फ कागजी आंकड़े ठीक कर लो भाई?!कड़ुवा सच से कब तक मुँह फेरते रहोगे?हम जैसे पागलोँ का क्या?बकवास करते करते एक दिन दुनिया से चले जाएँगे.अरे, हम जैसोँ का जीवन क्या जीवन?क्योँ न हम खिलखिलाते मुस्कुराते दुनिया से जाएँ.जीवन तो उसका है जिसके साथ लोग खड़े हैँ,जो धन दौलत गाड़ी बंगला आदि रखते है.




लेकिन मेरे साथ माँ है,जननी-मातृ भूमि-गाय!और गीता का सन्देश!


खैर!


अभिभावक क्या चाहते हैँ?वे चाहते तो है कि हमारे बच्चे 'कुछ 'बन जाएँ लेकिन यहाँ 'कुछ'से मतलब कुछ ही रह जाता है.नौकरी...शादी... धन दौलत.....लेकिन दिशा दशा?!अशान्ति...असन्तुष्टि....अवसाद...? हूँ !