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शनिवार, 10 जुलाई 2010

अध्यापक दंश:अब अध्यापक ही बुद्धिजीवी नहीँ?

बुद्धिवादी बनाम बुद्धिजीवी पर चर्चा बाद मेँ होगी आज इस पर चर्चा हो जाए कि अध्यापक क्या बुद्धिजीवी हैँ?क्या वह बुद्धि मेँ जीता है?या फिर वह भी मन इन्द्रियोँ या शरीर मेँ जीता है?वे भी आम आदमी की तरह अन्धविश्वासोँ कुरीतियोँ कूपमण्डूकता आदि मेँ जीता नजर आता है.यदि अध्यापक के मन की दिशा दशा सार्वभौमिक ज्ञान की ओर नहीँ है तो मैँ उसे अध्यापक नहीँ मानता हूँ.उसकी दृष्टि वैज्ञानिक तर्क के आधार पर होनी ही चाहिए.


किसी ने अध्यापक को समाज का मस्तिष्क कहा है लेकिन हमेँ नहीँ लगता कि वह अब समाज का मस्तिष्क रह गया है.आज व्यक्ति परिवार समाज की दशा दिशा का आधार बुद्दि व हृदय नहीँ वरन मन इन्द्रियोँ व शरीर है.मन की दशा दिशा इन्द्रियोँ व शरीर के आधार पर विकास की ओर है न कि बुद्दि व हृदय के आधार पर.अभी हम सब अपने मन को प्रशिक्षित करने की कला नहीँ सीख पाये हैँ.अपने शरीर को प्रशिक्षित करने के सह दुनिया को प्रशिक्षण के साथ साथ अपने मन को प्रशिक्षित करना आवश्यक है.पर उपदेश कुशल बहुतेरे...........?!बीटीसी विशिष्ट बीटीसी आदि के माध्यम से युवक युवतियां अधयापक इसलिए नहीँ बन रहे कि वे अध्यापन के प्रति रूचि रखते हैँ वरन इसलिए कि आय का एक माध्यम मिल रहा है.बी टेक,बी बी ए,एम सी ए,आदि जैसे प्रोफेशनल कोर्स किए भी बीटीसी विशिष्ट बीटीसी आदि करके अध्यापक बनने की राह पर हैँ.आज भी लाखोँ युवक युवतियाँ हैँ जो उच्च शिक्षा प्राप्त या प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भी विचलित हैँ और किसी क्षेत्र प्रति रुचि न रखकर आय स्रोतो की तलाश मेँ हैँ और अरुचिकर क्षेत्र मेँ पहुँच रहे हैँ.ऐसे मेँ वे स्वयँ अपने साथ धौखा दे ही रहे हैँ,अन्य को भी धोखा दे रहे हैँ.

खैर.....


क्या सिर्फ पेट की आवश्याकताएँ काफी है?आज के भौतिकवाद मेँ कैरियर ने आदमी को अन्धा बना दिया है.अध्यापक वर्ण(स्वभाव ,मन की दिशा दिशा व व्यवहार) से ब्राह्मण होना चाहिए न कि वैश्य लेकिन जब ब्राह्मण ब्राह्मणत्व से हीन होता जा रहा तो अन्य से क्या उम्मीद रखी जाए?

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